रांचीः झारखंड सरकार में शामिल दो बड़े दल झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस में भले ही सत्ता के लिए बंधन हो लेकिन इस बंधन में गांठ भी हैं. यही वजह है कि सत्ता में शामिल होने के बावजूद दोनों दलों के बीच दूरियां बड़ी होती दिख जाती हैं. पिछले महीने राज्यसभा चुनाव के दौरान जिस तरह से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से हेमंत सोरेन की मुलाकात के बाद पार्टी ने गुरुजी की इच्छा बता अपना उम्मीदवार एकतरफा खड़ा कर दिया, उससे साफ हो गया है सहयोगी दल का कितना ख्याल झामुमो रखता है. अब फिर एक बार राष्ट्रपति चुनाव को लेकर तमाम अटकलें लगनी शुरू हो गयी है. द्रौपदी मुर्मू के NDA उम्मीदवार बनने के बाद से झामुमो के कुछ बदले बदले से रुख देखकर यह कयास अनायास भी नहीं है.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में शामिल होने और विपक्ष के साझा उम्मीदवार के रूप में यशवंत सिन्हा के नाम पर सहमति जताने वाला झारखंड मुक्ति मोर्चा और उसके नेताओं के बोल झारखंड की राज्यपाल रहीं द्रौपदी मुर्मू के नाम की घोषणा के साथ ही पूरी तरह बदल गए हैं. अब पार्टी के नेता उचित समय पर उचित फैसले लेने की बात कहने लगे हैं तो मुख्यमंत्री आवास पर झामुमो विधायक दल और संसदीय दल की बैठक में एक बार फिर राष्ट्रपति चुनाव को लेकर पार्टी के स्टैंड पर फैसला लेने का भार पार्टी सुप्रीमो शिबू सोरेन पर छोड़ दिया गया है.
यानी साफ है कि पार्टी और खासकर कार्यकारी अध्यक्ष मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन महागठबंधन में रहकर यह फैसला खुद करने में झिझक रहे हैं कि विपक्ष के साझा उम्मीदवार को समर्थन करने की जगह भाजपा या NDA की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को समर्थन कैसे किया जाए. ऐसे में हर बार की तरह यही तय हुआ कि दिशोम गुरु शिबू सोरेन के ऊपर यह जिम्मेवारी सौंप दी जाए कि राष्ट्रपति चुनाव में वह किसका समर्थन करें, ऐसे में उम्मीद यही है कि अंत में गुरुजी की इच्छा और आदिवासी कार्ड खेलते हुए शिबू सोरेन द्रौपदी मुर्मू के समर्थन की घोषणा कर दे. झामुमो में सुप्रियो भट्टाचार्य जैसे नेता तो साफ कहते हैं कि जब गुरुजी फैसला करते हैं तो वह सटीक और दूरगामी होता है. पार्टी और राज्य के हित मे होता है. ऐसे में जब हम दुविधा में होते हैं तो दिशोम गुरु का मार्गदर्शन अहम हो जाता है.
झामुमो के बदले बदले रुख को समझ रहे हैं कांग्रेसी, सत्ता चलाने की मजबूरी में विरोध का स्वर भी पड़ा है धीमाः राष्ट्रपति चुनाव में समर्थन को लेकर झारखंड मुक्ति मोर्चा के बदले बदले रुख को कांग्रेस भी भांप रही है. परंतु साथ में सत्ता चलाने की मजबूरी कहिए या कुछ और पर कांग्रेस नेता अभी खुलकर बोल भी नहीं पा रहे हैं. झारखंड कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने कहा कि यह विचारधारा की लड़ाई है. विपक्ष की संयुक्त बैठक में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने साझा उम्मीदवार देने के प्रस्ताव पर सहमति दी थी अब उनके नेतृत्व को तय करना है कि वह गांधी के विचारधारा के साथ हैं या गोडसे के विचारधारा के साथ. वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के कद्दावर नेता सुबोधकांत सहाय, झामुमो के बदले-बदले रुख पर सिर्फ इतना कह पाते हैं कि उनसे उम्मीद करना बेकार है परंतु उनके फैसले का इंतजार रहेगा.