रांचीः झारखंड विधानसभा में 81 सीटें हैं, जिसमें 44 सीटें सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों के लिए है. 28 सीटें अनुसूचित जनजाति और 9 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. जनसंख्या के लिहाज से देखें तो झारखंड में 60.71 फीसदी लोग सामान्य वर्ग हैं जबकि 28.55 फीसदी अनुसूचित जनजाति और 10.72 अनुसूचित जाति की आबादी है. इस बार कुल 1,216 प्रत्याशियों ने अपनी सियासी किस्मत आजमाई है.
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कितने जागरूक मतदाता
पांच चरणों में हुए चुनाव में 2 करोड़ 30 लाख मतदाताओं ने अपना फैसला सुना दिया है. हालांकि वोट प्रतिशत पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में कम रहा. इस बार चुनाव में 65.17 फीसदी लोगों ने मताधिकार का इस्तेमाल किया जबकि 2014 के विधानसभा चुनाव में 66.53 फीसदी लोगों ने वोटिंग की थी. इसी तरह 2009 में 56.96 और 2005 में 57.03 मतदान प्रतिशत रहा था.
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महिलाओं की दावेदारी
विधानसभा चुनावों में इस बार 1,216 प्रत्याशियों में 128 महिलाएं हैं. चुनाव दर चुनाव महिला उम्मीदवारों की संख्या बढ़ रही है. 2005 में 94 महिलाओं ने चुनावी रण में हिस्सा लिया था, जिसमें 3 को जीत मिली थी और 85 महिला उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी. इसी तरह 2009 में 107 महिलाएं चुनावी मैदान में कूदीं लेकिन सिर्फ 8 सफलता मिली और 94 की जमानत जब्त हो गई. 2014 के चुनाव में महिला उम्मीदवारों की संख्या 111 थी लेकिन 8 को ही कामयाबी मिली और 93 की जमानत जब्त हो गई.
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विधानसभा चुनाव 2014 के नतीजे
झारखंड विधानसभा चुनाव 2014 कई मायनों में निर्णायक साबित हुआ था. पहली बार राज्य में किसी एक गठबंधन को बहुमत मिला था. इस चुनाव में बीजेपी की झोली में 37 सीटें आई थीं. इसके साथ ही सहयोगी आजसू को 5 सीटों पर कामयाबी मिली. जेएमएम को 19, कांग्रेस को 7, जेवीएम को 8 और अन्य को 5 सीटें हासिल हुईं. ये पहला ऐसा चुनाव था जब वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, राज्य के सबसे पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा सभी को जनता ने हार का स्वाद चखा दिया. सुदेश महतो, सिमोन मरांडी, हेमलाल मुर्मू, अन्नपूर्णा देवी और सुखदेव भगत जैसे कई दिग्गज भी अपनी सीट नहीं बचा सके. इसके साथ ही आरजेडी, जेडीयू का सूपड़ा साफ हो गया. जनता ने चुनाव में खड़े 6 पूर्व प्रशासनिक अधिकारियों को भी नकार दिया था. वोट प्रतिशत की बात करें तो बीजेपी को 30.07 फीसदी वोट मिले थे. आजसू को 2.01, जेएमएम को 19.05, कांग्रेस को 8.92, राजद को 3.13 और जेवीएम पर 9.99 फीसदी वोटरों ने भरोसा जताया था. इसके साथ ही चुनाव जीतने के बाद जेवीएम के 6 विधायकों ने बाबूलाल मरांडी का साथ छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए थे.
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आंकड़ों के बाजीगर
2014 के विधानसभा चुनाव में जेएमएम नेता पौलुस सुरीन आंकड़ों के बाजीगर साबित हुए. खूंटी जिले के तोरपा विधानसभा से पौलुस सुरीन ने अपने प्रतिद्वंदी बीजेपी उम्मीदवार कोचे मुंडा को महज 43 वोटों के मामूली अंतर से हराया था. वहीं बोकारो विधानसभा से बीजेपी उम्मीदवार विरंची नारायण ने सबसे ज्यादा 72,643 मतों के अंतर से अपने निकटतम प्रतिद्वंदी समरेश सिंह को मात दी.
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विधानसभा चुनाव 2009 के नतीजे
झारखंड विधानसभा चुनाव 2009 में कोई भी पार्टी बहुमत के करीब नहीं पहुंच सकी थी. बीजेपी ने 67 सीटों पर चुनाव लड़ा और 18 सीटों पर जीत हासिल की. जेएमएम ने 78 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए और 18 सीटों पर जीत हासिल की. आजसू को 5, कांग्रेस को 14, राजद को 5 और जेवीएम को 11 सीटें मिलीं. 2009 के चुनाव में बीजेपी का जनाधार कम होता दिखा. वोट प्रतिशत 23.57 से घटकर 20.18 फीसदी पर चला गया. वहीं जेएमएम को 14.29 से 15.2 यानी करीब 1 फीसदी ज्यादा वोट मिले थे.
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इससे पहले 15 नवंबर 2000 को झारखंड के गठन के वक्त बीजेपी के पास 32 विधायक थे, जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा के 12, कांग्रेस के 11, राष्ट्रीय जनता दल के 9, जनता दल यूनाइटेड के 8 और 9 अन्य विधायक थे. तब बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने संताल समुदाय के नेता बाबूलाल मरांडी पर भरोसा जताया और बाबूलाल मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बनाए गए थे. हालांकि बाद में बाबूलाल मरांडी ने पार्टी में उपेक्षित होने पर 2006 में खुद की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा का गठन कर लिया.
संथाल की सियासत
संथाल परगना प्रमंडल में 6 जिलें हैं जिसमें कुल 18 विधानसभा सीटें हैं. वर्तमान में बीजेपी के पास 7, जेएमएम 6, कांग्रेस 3 और जेवीएम के पास 2 सीटें हैं. कहा जाता है कि झारखंड की सत्ता तक पहुंचने के लिए संथाल को साधना बेहद जरूरी है.
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कोलहान का किला
कोलहान प्रमंडल में 3 जिले की 14 विधानसभा सीटें हैं. यहां जेएमएम की अच्छी पकड़ है. पिछले चुनाव में जेएमएम मे 7 सीटों पर फतह हासिल की थी जबकि बीजेपी के हिस्से सिर्फ 5 सीटें आईं. एक पर आजसू और एक सीट दूसरे के खाते में चली गई थी.
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उत्तरी छोटानागपुर का गढ़
उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल में 5 जिले की 25 विधानसभा सीटें हैं. ये प्रमंडल बीजेपी के गढ़ के रूप में माना जाता है. 2009 में यहां बीजेपी को अच्छा नुकसान हुआ था लेकिन 2014 में बीजेपी ने वापसी करते हुए 13 सीटों पर जीत दर्ज की थी. तब सहयोगी रही आजसू को 2 सीटें मिली थीं. जेएमएम 3, कांग्रेस 2, जेवीएम 3 और अन्य को 2 सीटें मिली थीं.
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दक्षिणी छोटानागपुर की दीवार
दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल में 5 जिले की 15 विधानसभा सीटें हैं. इस प्रमंडल में भी बीजेपी की अच्छी पकड़ रही है. पिछले चुनाव में इस जोन से बीजेपी को 8 सीटें मिली थीं. जेएमएम को 3, आजसू को 2, जेवीएम को 1 और अन्य के पास 1 सीट गई थी.
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पलामू की पॉलिटिक्स
पलामू प्रमंडल में 3 जिले की 9 विधानसभा सीटें हैं. इस प्रमंडल में जेएमएम नेता आज तक एक भी सीट नहीं जीत सके हैं. 2014 में यहां 4 सीटों पर कमल खिला था. एक सीट पर कांग्रेस और 2 सीटों पर जेवीएम ने बाजी मारी थी, जबकि 2 सीटें अन्य के खाते में चली गई थीं.
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