रांची: वैश्विक महामारी कोरोना की वजह से न केवल अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ा है बल्कि राज्य सरकार के खजाने की स्थिति भी अच्छी नहीं है. इसकी सबसे बड़ी वजह कथित तौर पर राज्य सरकार की आमदनी और खर्च के बीच महामारी के वजह से आए असंतुलन को माना जा रहा है. वित्त वर्ष 2020-21 की शुरुआत से पहले ही कोरोना ने राज्य की अर्थव्यवस्था को भी जकड़ लिया. नतीजा यह हुआ कि अप्रैल और मई, 2020 में राज्य सरकार की आमदनी तय लक्ष्य का महज 36-40% ही हो पाई, जबकि उसका खर्चा कहीं से नहीं कमा.
कोरोना महामारी की वजह से लगे लॉकडाउन में नए प्रोजेक्ट शुरू नहीं हो पाए और पुराने प्रोजेक्ट भी कंटिन्यू नहीं किए जा सके. बता दें कि राज्य सरकार ने विधानसभा के बजट सत्र के दौरान वित्त वर्ष 2020-21 के लिए 85,429 करोड़ का बजट पेश किया था. केंद्रीय करों की हिस्सेदारी और पीएसयू के पास बड़ा बकाया केंद्रीय करों में हिस्सेदारी के रूप में झारखंड सरकार को अप्रैल महीने में 2200 करोड़ रुपए मिलने का अनुमान था. हालांकि जीएसटी मद में राज्य सरकार के हिस्से 1525 करोड़ मिले हैं. इतना ही नहीं, कोल इंडिया लिमिटेड और अन्य पब्लिक सेक्टर यूनिट के पास भी राज्य सरकार का बड़ा बकाया है. इस वजह से खजाने के ऊपर लाल बत्ती जल रही थी. हालांकि, राज्य सरकार ने इस बाबत केंद्र के साथ पत्राचार किया है.
लॉकडाउन के दौरान टैक्स कलेक्शन में आई गिरावट
लॉकडाउन के कारण राज्य सरकार के रेवेन्यू में काफी गिरावट आई है. अनुमान के अनुसार अप्रैल और मई में उसे 9500 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होना था, लेकिन यह महज 4000 करोड़ रुपये तक ही पहुंच पाया. अप्रैल महीने में राज्य अपने आंतरिक राजस्व का 900 करोड़ रुपए भी हासिल नहीं कर पाया., जबकि राज्य सरकार को वेतन के लिए 1400 करोड़ रुपए, पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ के लिए 800 करोड रुपए, सूद अदायगी के लिए 300 करोड़ रुपए का दायित्व है. 2500 करोड़ के अनिवार्य दायित्व भुगतान के बदले राज्य सरकार अपने राजस्व से केवल 850 करोड रुपए ही जुटा पाई.
राजस्व बढ़ाने के लिए उठाए गए ये कदम
हालांकि, झारखंड सरकार ने अपने राजस्व को बढ़ाने के लिए कुछ कदम भी उठाए हैं. उनमें सबसे पहला कदम 12 मार्च को उठाया गया जब राज्य सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर 2.50 रुपये की वैट समाप्त कर दी. सरकार के अनुमान के अनुसार इससे 400 करोड़ों रुपए के एक्स्ट्रा रेवेन्यू प्राप्त होने की संभावना है, जबकि दूसरा कदम 15 मई को उठाया गया, जिसके तहत महिलाओं के नाम पर एक रुपए में जमीन और फ्लैट रजिस्ट्री की योजना को समाप्त कर दिया गया.
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इससे मौजूदा वित्त वर्ष में 400 करोड़ रुपए से अधिक के राजस्व की प्राप्ति की गणना की गई है. वहीं, तीसरे कदम के रूप में राज्य सरकार ने शराब की दुकानें खोलने और उन पर वैट बढ़ाने के साथ-साथ स्पेशल टैक्स लगाने का फैसला लिया. सरकार के इस कदम से 400 करोड़ रूपए अतिरिक्त आमदनी प्राप्त होने की गणना की गई है. सरकार फिर से पेट्रोल और डीजल पर टैक्स बढ़ाने के मूड में है जिससे लगभग 350 करोड़ अतिरिक्त राजस्व की प्राप्ति होगी.
ऐसे हो सकती है राजस्व की बचत
राज्य सरकार के पास कुछ ऐसे साधन है जिन पर गंभीरता पूर्वक विचार करने से उसके राजस्व की प्राप्ति में बढ़ोतरी हो सकती है. उनमें सरकार माइंस के ऑक्शन पर विचार कर सकती है. इसके अलावे राज्य में ऑपरेशनल केंद्र सरकार के अलग-अलग उपक्रमों पर बकाए को लेकर केंद्र सरकार पर दबाव डाल सकती हैं. वहीं, माइंस से जुड़ा एक मामला सरफेस रेंट का है. जिन इलाकों में माइनिंग होती है वहां कंपनियां सरफेस रेंट नहीं देती हैं. हालांकि इसको लेकर सैद्धांतिक रूप से बात हुई है और उम्मीद की जा रही है कि अब से लगान का पैसा भी राज्य सरकार के खाते में जाएगा. यह भी एक राजस्व प्राप्ति का बड़ा माध्यम साबित हो सकता है.
ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट में रजिस्टर्ड होने वाली महंगी गाड़ियों से लिया जाने वाला टैक्स बढ़ाकर भी राज्य सरकार अपना खजाना भर सकती है. हालांकि, यह एक पॉलिसी डिसीजन का मामला होगा लेकिन राज्य सरकार इस बाबत फैसला ले सकती है.
फिजूलखर्ची पर लगाम हो सकता है लाभकारी
कोविड-19 के इन दौर में राजस्व बढ़ाने के लिए राज्य सरकार अपनी फिजूलखर्ची पर लगाम लगा सकती है. इसके साथ ही अलग-अलग विभागों में टैक्स लीकेज को रोककर भी सरकार अपने खजाने में इजाफा कर सकती है. इस क्रम में राज्य सरकार के अलग-अलग विभागों में आउटसोर्सिंग पर काम कर रहे लोगों के रिन्यूअल को लेकर भी विचार किया जा रहा है.
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एक आंकड़े के अनुसार राज्य सरकार के अलग-अलग विभागों में 30,000 ऐसे कर्मचारी हैं जो आउटसोर्सिंग पर काम कर रहे हैं. अलग-अलग एजेंसियों के मार्फत कॉन्ट्रैक्ट पर काम कर रहे इन कर्मियों के ऊपर बड़ी मात्रा में खर्च होता है सिर्फ स्वास्थ्य विभाग में आउटसोर्सिंग कंपनियों को सालाना सरकार 135 करोड़ रुपए भुगतान करती है.
क्या कहते हैं मंत्री और विशेषज्ञ
राज्य के वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव साफ कहते हैं कि कोरोना महामारी के दौरान रेवेन्यू कलेक्शन में निश्चित तौर पर गिरावट आई है लेकिन राज्य सरकार अपने राजस्व प्राप्ति को बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास में लगी है. उन्होंने कहा कि इस बाबत कुछ पुरानी योजनाओं को बंद भी किया गया है जो जन उपयोगी नहीं थी. इसके साथ ही राज्य सरकार फिजूलखर्ची पर रोक लगाने के लिए भी प्रयासरत हैं. वहीं, राजधानी स्थित एमिटी यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र पढ़ाने वाले अभिरूप मुखर्जी का दावा है कि केंद्र सरकार के पैकेज में बहुत सारे एलिमेंट में हैं. ऐसे में झारखंड सरकार को इस पैकेज से एलिमेंट निकालना होगा.
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उन्होंने कहा कि 6,000 करोड़ रुपये का कैंपा फंड है. इसको झारखंड सरकार आगे बढ़ कर ले सकती है. जिसमें स्मॉल इंडस्ट्रीज के मामले में झारखंड आगे बढ़ सकता है. मजदूरों के रिवर्स माइग्रेशन को शॉर्ट टर्म और लांग टर्म स्कीम बनाकर उससे लाभ उठाया जा सकता है. राज्य सरकार रेशम, केंदुपत्ता का कलेक्शन, फूड प्रोसेसिंग इंडस्टरीज, फॉरेस्ट कमोडिटीज और फॉरेस्ट गुड्स को ध्यान में रखकर इकॉनमी को मजबूत करने के लिए कदम उठा सकती है.