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विजय दिवस: शहीद के परिवारों का सरकार से एक सवाल, आखिर कब मिलेगा हमें उचित सम्मान

कारगिल युद्ध के 20 साल बाद भी शहीद नागेश्वर महतो की पत्नी संध्या देवी अपने पति की तस्वीर को देखकर रो देती हैं. उन्हें पति के खोने का गम तो है, लेकिन उससे ज्यादा फक्र है कि नागेश्वर भारत माता की सेवा में खुद को बलिदान कर देश के लिए शहीद हो गए.

शहीद को श्रद्धांजलि देता परिवार का सदस्या
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Published : Jul 25, 2019, 7:50 PM IST

Updated : Jul 26, 2019, 11:35 AM IST

रांची: भारत-पाकिस्तान के बीच 1999 के कारगिल युद्ध की लड़ाई के दौरान मिली एक खबर ने सबके दिलों को कचोट कर रख दिया. इसमें किसी के मांग का सिंदूर उजड़ गया, तो किसी की गोद सूनी हो गई. वहीं, कई बच्चे अनाथ हो गए. इसमें संयुक्त बिहार के वक्त झारखंड से शहीद हुए वीर सपूत शहीद नागेश्वर महतो भी शामिल हैं.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

आज कारगिल युद्ध के 20 साल बाद भी शहीद नागेश्वर महतो की पत्नी संध्या देवी अपने पति की तस्वीर को देखकर रो देती हैं. उन्हें पति के खोने का गम तो है, लेकिन उससे ज्यादा फक्र है कि नागेश्वर भारत माता की सेवा में खुद को बलिदान कर देश के लिए शहीद हो गए. कई साल से उनके दिल में दबी कसक एक भी है, जो रह-रहकर एक सवाल के रूप में उभरती कि आखिर कब युद्ध में शहीद परिवारों को उचित सम्मान मिलेगा.

संयुक्त बिहार के पहले शहीद नागेश्वर महतो की पत्नी संध्या देवी का कहना है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने शहीद के परिवारों के सम्मान में कई घोषणाएं की थी. इसके साथ ही एकीकृत बिहार की तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने भी कई घोषणाएं की. हालांकि बिहार से झारखंड अलग होने के बाद सभी घोषणाएं धीरे-धीरे ठंडे बस्ते में चली गई. इसके बाद राज्य में कई सरकारें आई और चली गई, लेकिन शहीद परिवारों के आंसुओं को किसी ने भी नहीं पोछा.

घोषणाओं के बावजूद भी अब तक कारगिल में हुए वीर सपूत शहीद नागेश्वर महतो की आदमकद प्रतिमा नहीं लगी है. उन्होंने कहा कि नेताओं से लेकर अफसरों तक कई बार पत्र लिखकर प्रतिमा लगाने की मांग की है, लेकिन इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया और ना ही उनके परिवार से किसी को सरकार की ओर से नौकरी दी गई. हालांकि सरकार की ओर से एक पेट्रोल पंप दिया गया है और हाल के दिनों में उनके नाम से एक सड़क का उद्घाटन किया गया.

वहीं, उनके सबसे छोटे बेटे आकाश कुमार का कहना है कि पिता को खोने का दर्द बहुत बड़ा होता है, लेकिन उससे ज्यादा फक्र की बात होती है कि उनके वजह से आज कहीं भी सिर उठाकर खड़े हो सकते हैं. नागेश्वर महतो देश के लिए शहीद हुए हैं. हर युवा को देश के प्रति निष्ठा रखने की जरूरत है.

रांची: भारत-पाकिस्तान के बीच 1999 के कारगिल युद्ध की लड़ाई के दौरान मिली एक खबर ने सबके दिलों को कचोट कर रख दिया. इसमें किसी के मांग का सिंदूर उजड़ गया, तो किसी की गोद सूनी हो गई. वहीं, कई बच्चे अनाथ हो गए. इसमें संयुक्त बिहार के वक्त झारखंड से शहीद हुए वीर सपूत शहीद नागेश्वर महतो भी शामिल हैं.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

आज कारगिल युद्ध के 20 साल बाद भी शहीद नागेश्वर महतो की पत्नी संध्या देवी अपने पति की तस्वीर को देखकर रो देती हैं. उन्हें पति के खोने का गम तो है, लेकिन उससे ज्यादा फक्र है कि नागेश्वर भारत माता की सेवा में खुद को बलिदान कर देश के लिए शहीद हो गए. कई साल से उनके दिल में दबी कसक एक भी है, जो रह-रहकर एक सवाल के रूप में उभरती कि आखिर कब युद्ध में शहीद परिवारों को उचित सम्मान मिलेगा.

संयुक्त बिहार के पहले शहीद नागेश्वर महतो की पत्नी संध्या देवी का कहना है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने शहीद के परिवारों के सम्मान में कई घोषणाएं की थी. इसके साथ ही एकीकृत बिहार की तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने भी कई घोषणाएं की. हालांकि बिहार से झारखंड अलग होने के बाद सभी घोषणाएं धीरे-धीरे ठंडे बस्ते में चली गई. इसके बाद राज्य में कई सरकारें आई और चली गई, लेकिन शहीद परिवारों के आंसुओं को किसी ने भी नहीं पोछा.

घोषणाओं के बावजूद भी अब तक कारगिल में हुए वीर सपूत शहीद नागेश्वर महतो की आदमकद प्रतिमा नहीं लगी है. उन्होंने कहा कि नेताओं से लेकर अफसरों तक कई बार पत्र लिखकर प्रतिमा लगाने की मांग की है, लेकिन इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया और ना ही उनके परिवार से किसी को सरकार की ओर से नौकरी दी गई. हालांकि सरकार की ओर से एक पेट्रोल पंप दिया गया है और हाल के दिनों में उनके नाम से एक सड़क का उद्घाटन किया गया.

वहीं, उनके सबसे छोटे बेटे आकाश कुमार का कहना है कि पिता को खोने का दर्द बहुत बड़ा होता है, लेकिन उससे ज्यादा फक्र की बात होती है कि उनके वजह से आज कहीं भी सिर उठाकर खड़े हो सकते हैं. नागेश्वर महतो देश के लिए शहीद हुए हैं. हर युवा को देश के प्रति निष्ठा रखने की जरूरत है.

Intro:
नोट - विजुअल में शहीद नागेश्वर के पैतृक गांव स्थित घर का विजुअल, उन्होंने जहां जन्म लिया उस घर का विजुअल, उन्होंने जहां प्रारंभिक शिक्षा हासिल की उस स्कूल का विजुअल, उनके जीवन गाथा से जुड़ी यादगार तस्वीरें, शहीद के मित्र और भाई की बाइट के साथ क्लोजिंग पीटीसी भी है।

रांची

कारगिल विजय दिवस स्पेशल सीरीज -1

साल 1999 में करगिल युद्ध के समय भारत माता के लिए सैकड़ों जाबाजो ने अपनी जान की आहुति दी थी । उस दौर में एकीकृत बिहार से शहादत देने वाले पहले वीर सपूत बने थे रांची के पिठोरिया के नागेश्वर महतो। कारगिल विजय दिवस के मौके पर जब शहीद नागेश्वर महतो का पार्थिव शरीर रांची लाया गया था तब भारत माता की जय कार से पूरी रांची गूंज उठी थी।

शहीद नागेश्वर महतो की जीवनी

शहीद नागेश्वर महतो मूल रूप से रांची के पिठौरिया के रहने वाले थे। पिथोरिया में आज भी वह मकान है जहां नागेश्वर के पिता ने अपने जीवन की शुरुआत की थी। इस मकान में अक्सर नागेश्वर महतो आया करते थे और गांव के अपने बचपन के दोस्तों से मिलते थे। शहीद नागेश्वर महतो का जन्म कांके स्थित इंडियन वाटर लाइन में साल 1961 में हुआ था इनके पिता स्वर्गीय भुनेश्वर महतो एवं माता श्रीमती बुधनी देवी थे इनके परिवार में पांच भाई और एक बहन भी थी भाइयों में यह चौथे स्थान पर थे इनका पैतृक निवास पिठोरिया है और शहीद नागेश्वर महतो का पालन पोषण वाटर लाइन के क्वार्टर में ही हुआ था। शहीद नागेश्वर महतो बचपन से ही चंचल प्रवृत्ति के थे जिनकी प्रारंभिक शिक्षा कांके स्थित संत जेवियर विद्यालय से हुई थी। मैट्रिक परीक्षा सन 1979 में उत्तीर्ण होने के बाद उन्होंने रांची में आईटीआई का कोर्स किया । तकनीकी शिक्षा ग्रहण करने के साथ ही रांची में सेना की बहाली में इनका चयन हो गया और दिनांक 29.10.1980 को सेना की भर्ती हुई और देश की सेवा में लग गए।


सेना में भर्ती होने के बाद इन्हें ईएमई(EME) कोर्स बेसिक प्रशिक्षण के लिए भोपाल भेजा गया । प्रशिक्षण समाप्त होने के बाद इनका तबादला श्रीनगर हो गया। 1986 में इनका तबादला रांची के दीपाटोली में हुआ । अपने कर्तव्य का निष्ठापूर्वक निर्वाहन करते रहे और श्रीनगर से तबादले के बाद दीपाटोली रांची आ गए। जिसके बाद 10.5.1986 को अपने दांपत्य जीवन शुरू की और संध्या देवी के साथ परिणय सूत्र में बंध गए। सन 1989 मे इनका हैदराबाद तबादला हुआ । इसी क्रम में शहीद नागेश्वर महतो के घर में बच्चों की किलकारियां सुनाई देने लगी और साथ ही इनके पदों में पदोन्नति भी होने लगी। जिसके बाद फोर्स की तरफ से इन्हें एचएमटी कोर्स के लिए बरौदा भेज दिया गया। कोर्स क्वालीफाई होने के बाद इन्हें एचएमटी की पदोन्नति मिल गई। फिर इन्हें कलिंग भेज दिया गया। वहां पर भी इन्होंने अपने कर्तव्य को ईश्वर की पूजा के सामान निभाया। 1996 में इनका तबादला 79 फील्ड राइट झांसी में हुआ। झांसी में पदोन्नति के साथ नागेश्वर महतो नायब सूबेदार बन गए । इस पदोन्नति के बाद नागेश्वर महतो फोर्स तोप के मेक्निकल के रूप में चयनित हुए।


Body:वर्ष 1999 फरवरी में इनको बोफोर्स टॉप एम्युनिशन ट्रायल के लिए राजस्थान भेजा गया जिसमें विदेश के 3 सदस्य भी थे। वहां उनकी कार्यकुशलता की विदेशी टीम ने काफी प्रशंसा की। वर्ष 1999 अप्रैल में इनका 108 मध्यम रेजिमेंट नौशेरा में तबादला हो गया। इस दौरान भारत पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध शुरू हो गया , जिसमें इन्हें बोफोर्स तोप पर तैनात किया गया। युद्ध के दौरान लगातार हो रही फायरिंग के बाद बोफोर्स तोप में कुछ तकनीकी खराबी आ गई थी । दुश्मन पर हमला जारी रखने के लिए नागेश्वर महतो अपने तो उसको ठीक करने में जुटे थे तभी 13 जून 1999 को दोपहर के वक्त दुश्मन के गोले का स्प्रिंटर जांबाज नागेश्वर के पूरे शरीर में समा गया। रविवार का दिन था और उस वक्त दोपहर के 3:00 बज रहे थे। रांची का यह सपूत भारत माता पर अपनी आहुति दे चुका था। उस वक्त फायरिंग रेंज में कैसा मंजर रहा होगा इसकी सिर्फ कल्पना की जा सकती है।





Conclusion:कारगिल विजय दिवस विशेष के इस सीरीज में आज शहीद नागेश्वर महतो की जन्मभूमि और उनके सेना में जाने से पहले की गाथा आपने देखी। आने वाली सीरीज में हम आपको बताएंगे जांबाज नागेश्वर की शहादत से पिठोरिया में क्या बदलाव आया। आगे बताएंगे कि किस हाल में है इस शहीद का परिवार।
Last Updated : Jul 26, 2019, 11:35 AM IST
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