रांची: भारत-पाकिस्तान के बीच 1999 के कारगिल युद्ध की लड़ाई के दौरान मिली एक खबर ने सबके दिलों को कचोट कर रख दिया. इसमें किसी के मांग का सिंदूर उजड़ गया, तो किसी की गोद सूनी हो गई. वहीं, कई बच्चे अनाथ हो गए. इसमें संयुक्त बिहार के वक्त झारखंड से शहीद हुए वीर सपूत शहीद नागेश्वर महतो भी शामिल हैं.
आज कारगिल युद्ध के 20 साल बाद भी शहीद नागेश्वर महतो की पत्नी संध्या देवी अपने पति की तस्वीर को देखकर रो देती हैं. उन्हें पति के खोने का गम तो है, लेकिन उससे ज्यादा फक्र है कि नागेश्वर भारत माता की सेवा में खुद को बलिदान कर देश के लिए शहीद हो गए. कई साल से उनके दिल में दबी कसक एक भी है, जो रह-रहकर एक सवाल के रूप में उभरती कि आखिर कब युद्ध में शहीद परिवारों को उचित सम्मान मिलेगा.
संयुक्त बिहार के पहले शहीद नागेश्वर महतो की पत्नी संध्या देवी का कहना है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने शहीद के परिवारों के सम्मान में कई घोषणाएं की थी. इसके साथ ही एकीकृत बिहार की तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने भी कई घोषणाएं की. हालांकि बिहार से झारखंड अलग होने के बाद सभी घोषणाएं धीरे-धीरे ठंडे बस्ते में चली गई. इसके बाद राज्य में कई सरकारें आई और चली गई, लेकिन शहीद परिवारों के आंसुओं को किसी ने भी नहीं पोछा.
घोषणाओं के बावजूद भी अब तक कारगिल में हुए वीर सपूत शहीद नागेश्वर महतो की आदमकद प्रतिमा नहीं लगी है. उन्होंने कहा कि नेताओं से लेकर अफसरों तक कई बार पत्र लिखकर प्रतिमा लगाने की मांग की है, लेकिन इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया और ना ही उनके परिवार से किसी को सरकार की ओर से नौकरी दी गई. हालांकि सरकार की ओर से एक पेट्रोल पंप दिया गया है और हाल के दिनों में उनके नाम से एक सड़क का उद्घाटन किया गया.
वहीं, उनके सबसे छोटे बेटे आकाश कुमार का कहना है कि पिता को खोने का दर्द बहुत बड़ा होता है, लेकिन उससे ज्यादा फक्र की बात होती है कि उनके वजह से आज कहीं भी सिर उठाकर खड़े हो सकते हैं. नागेश्वर महतो देश के लिए शहीद हुए हैं. हर युवा को देश के प्रति निष्ठा रखने की जरूरत है.