रांचीः पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइलमैन डॉ एपीजे अब्दुल कलाम एक महान वैज्ञानिक ही नहीं, बल्कि वह एक महान प्रेरक भी थे. वर्ष 2009 में सुनामी के चलते देश के कई हिस्सों में त्राहिमाम की स्थिति के बीच आईआईटियन के वर्कशॉप में डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने आईआईटी के छात्रों का आह्वान किया था कि वो जॉब क्रिएटर बनें ना कि जॉब सीकर. मिसाइल मैन के इस आह्वान पर कई युवा आईआईटीयन ने स्टार्टअप शुरू किया जिसमें एक थे कल्याण चक्रवर्ती. जिन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक संस्था की नींव डाली जो आज 35 आईआईटियन का ग्रुप बन गया है.
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प्रेझा फाउंडेशन Pan IIT Alumni Reach For Jharkhand Foundation नाम का यह संगठन आज झारखंड की फिजा में बदलाव ला रहा है. जिसे क्रांति कहा जाए तो गलत नहीं होगा. IIT खड़गपुर से पढ़ाई कर प्रेझा में सेवा दे रहे तरुण शुक्ला बताते हैं कि कैसे मिसाइलमैन के आह्वान ने उन जैसे सैकड़ों युवाओं के सपने में यह सोच ला दी कि पैसा कमाना ही जीवन का लक्ष्य नहीं होता बल्कि समाज के प्रति दायित्व निभाना ज्यादा महत्वपूर्ण होता है. आंध्र प्रदेश के कुन्नूर के नागा रेड्डी ईटीवी भारत से कहते हैं कि IIT रुड़की से पढ़ाई करने के बाद वो जॉब कर रहे थे पर हमेशा लगता था कि किसान का बेटा होने बावजूद जिस समाज और सरकार के सहयोग से वह IIT में पढ़ाई कर सके, उस समाज के प्रति उनका भी कर्तव्य है. इसलिए लाखों रुपये की नौकरी छोड़ प्रेझा से जुड़ गए.
प्रेझा फाउंडेशन के तहत 8 नर्सिंग कॉलेज, ITI, कल्याण गुरुकुल और कलिनरी(Culinary) में प्रशिक्षण देकर अब तक 7000 से ज्यादा छात्राओं को विश्वस्तरीय ट्रेनिंग दिलाई है. पहले जिस झारखंड से ज्यादातर लड़कियां नौकरानी या दाई जैसे कामों के लिए बड़े शहर और महानगर जाती थीं. वहीं आज फिजा में बदलाव आया है. आईआईटियन छात्रों के संगठन का असर है कि बेटियां दूसरे राज्य जा तो रही हैं पर हुनर के साथ सम्मान की नौकरी करने.
झारखंडी बेटियां देखने लगी हैं गगनचुंबी सपने
रांची के कौशल कॉलेज में होटल मैनेजमेंट, शेफ का प्रशिक्षण लेने वाली गुमला की चमेली हो या ITI इलेक्ट्रिकल का प्रशिक्षण ले रही पश्चिमी सिंहभूम की चमंती, नर्सिंग की प्रशिक्षण लेकर बेंगलुरु के रेनबो हॉस्पिटल में जॉब पाने वाली ललित बोबोंगा हो या फिर ममता सुंडी. सभी गांव और दूर दराज के खेतिहर मजदूर परिवार की बेटियां आज स्वावलंबी बन रही हैं. अपने परिवार को बेहतर जीवन उपलब्ध कराने की दिशा में भी अग्रसर हैं.
IIT गुवाहाटी से पास आउट रवीश कहते हैं कि आज झारखंड से लोगों का पलायन तो हो रहा है पर वह बेहतर जीवन के लिए है. उनकी संस्था से ट्रेनिंग लेकर लड़कियां न सिर्फ बेहतर संस्थान में अच्छी सैलरी पर जॉब कर रही हैं बल्कि अब उनका जॉब का समय भी बढ़ा है यानि वह छुट्टी लेकर घर आती हैं और फिर जाकर बड़े शहरों में जॉब कर रही हैं. वहीं खुद IHM से होटल मैनेजमेंट कर प्रेझा से जुड़कर छात्राओं को होटल मैनेजमेंट, शेफ और culinary का प्रशिक्षण देने वाले साकेत सिंह कहते हैं कि उनके यहां से प्रशिक्षण लेकर बच्चियां देश के बड़े बड़े शहरों में जॉब कर रही हैं और उनमें इतनी क्षमता और आत्मविश्वास आ गया है कि वह दुनिया के किसी भी देश के होटल उद्योग में काम कर सकती हैं तो कई छात्राओं का सपना इंटरप्रयोनर बनने की है यानि जिस मूल सिद्धांत के साथ प्रेझा बना था वह सिलसिला आगे बढ़ा है.
सरकार से मिल रही है मदद
IIT के पास आउट छात्रों के एलुमनाई की संस्था के काम की राज्य के संसदीय और ग्रामीण विकास मंत्री तारीफ करते हैं. अभी भी राज्य में प्रेझा को भवन और इंफ्रास्ट्रक्चर सरकार उपलब्ध करा रही है तो बिना लाभ के प्रेझा झारखंड के युवाओं का भविष्य गढ़ रहा है. आलमगीर आलम कहते हैं कि और भी किसी मदद की जरूरत होगी तो सरकार इन युवाओं को देगी.
करीब 7हजार से ज्यादा बच्चों के जीवन में बदलाव लाना इसलिए संभव हुआ क्योंकि मिसाइलमैन के एक प्रेरणा दायक आह्वान ने IIT पास युवाओं के जीवन जीने की सोच में बदलाव ला दी. उम्मीद की जानी चाहिए कि यह कारवां और आगे बढ़ता जाएगा और झारखंड से मानव तस्करी का कलंक मिटने के साथ साथ देश और दुनिया में हमारा नाम हुनरमंद और जोशीले युवाओं के चलते होगा.