रांची: झारखंड हाई कोर्ट में आज तीन अहम मामलों की वैधता पर सुनवाई हुई. केस के मेंटेनेबिलिटी पर याचिकाकर्ता के अधिवक्ता राजीव कुमार ने अपना पक्ष रखा. वहीं मुख्यमंत्री की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी केस के मेंटेनेबिलिटी के विरोध में अपनी बातें रखी. इसके बाद ईडी की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता तुषार मेहता ने अपना पक्ष रखा. सभी पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. कोर्ट तीन जून को अपना फैसला सुनाएगी.
बता दें कि 24 मई के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में सुनवाई हुई. पहला मामला खूंटी में हुए मनरेगा घोटाले से जुड़ा है. इसी मामले में मनी लाउंड्रिंग के कारण सीनियर आईएएस पूजा सिंघल की गिरफ्तारी हुई है. इस मामले के याचिकाकर्ता अरूण दुबे द्वारा 10 मई के अमेंडमेंट पिटीशन के जरिए सीबीआई को पार्टी बनाने की मांग पर सरकार सवाल खड़े कर चुकी है.
सरकार ने हस्तक्षेप याचिका के माध्यम से हाई कोर्ट को बताया था कि इस मामले की जांच ईडी पहले से कर रही है. ऐसे में सीबीआई को प्रतिवादी बनाने का कोई औचित्य नहीं है. ऐसा करने से केस का नेचर बदल जाएगा, जो हाई कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं है. दरअसल, 19 मई को अरूण दुबे की हस्तक्षेप याचिका पर सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि वह इस मामले में सीबीआई को प्रतिवादी बनाना चाहती है या नहीं. सरकार की ओर से शपथ पत्र में कहा गया है कि यह मामला 2019 से हाई कोर्ट में लंबित है. इस मामले में किसी भी प्रतिवादी को अभी तक नोटिस नहीं जारी हुआ है. ऐसे में हस्तक्षेप याचिका पर जवाब मांगना सही नहीं है.
दूसरा मामला सीएम के नाम खनन पट्टा आवंटित करने और तीसरा मामला शेल कंपनियों में सीएम और उनके करीबियों की भागीदारी से जुड़ा है. इन दोनों मामलों के याचिकाकर्ता शिवशंकर शर्मा हैं. लेकिन मनरेगा से जुड़ी याचिका के प्रार्थी का उद्देश्य इन दोनों मामलों को एक साथ शामिल करने का है. इससे केस का नेचर ही बदल जाएगा. शपथ पत्र में यह भी कहा गया है कि तीनों मामलों के एक ही वकील हैं. जिससे पता चलता है कि इसे अन्य उद्देश्य से दाखिल किया गया है. हाई कोर्ट को यह भी बताया गया है कि शिवशंकर शर्मा की दस से ज्यादा जनहित याचिकाएं हाई कोर्ट में लंबित हैं. पूर्व में कोर्ट कई आदेशों में जनहित याचिकाओं के उद्देश्य की जांच की बात कह चुकी है.