रांची: प्रदेश के प्रमुख विपक्षी दल जेएमएम के लिए दुमका विधानसभा सीट प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है. लोकसभा चुनावों में दुमका संसदीय सीट से शिबू सोरेन की हार के बाद संताल परगना की पॉलिटिक्स में अपना सिक्का मजबूत रखने के लिए जेएमएम के लिए दुमका विधानसभा सीट पर जीत हासिल करना जरूरी माना जा रहा है.
JMM के किले का दरवाजा है दुमका
दरअसल, सोरेन दुमका संसदीय सीट से 8 बार सांसद रह चुके हैं इसके साथ ही यह इलाका जेएमएम के किले का दरवाजा माना जाता है. संताल परगना के डिविजनल हेडक्वार्टर दुमका जिले की यह विधानसभा सीट पर पूर्व में जेएमएम के प्रत्याशी स्टीफन मरांडी जीतते रहे हैं.
2005 में बदला दुमका का राजनीतिक समीकरण
दुमका का राजनीतिक समीकरण 2005 में बदला जब स्टीफन मरांडी ने जेएमएम छोड़ निर्दलीय चुनाव लड़ा. मरांडी ने बीजेपी के मोहरील मुर्मू को हराकर वहां से निर्दलीय चुनाव जीता. जबकि जेएमएम के उम्मीदवार हेमंत सोरेन तीसरे स्थान पर रहे. हालांकि 2009 में हेमंत सोरेन दुमका विधानसभा सीट से विधायक बने लेकिन 2014 में बीजेपी की लुईस मरांडी से शिकस्त खा गए.
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2014 में बीजेपी ने जीती सीट
2014 में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित इस सीट पर बीजेपी की लुईस मरांडी जीत कर आई. लुईस मरांडी को 44.65% वोट मिले थे जबकि सोरेन को 41.51 मत मिले थे. वहीं 2009 में जेएमएम के हेमंत सोरेन 30.98% वोट लाकर विजय हुए थे. उनकी और बीजेपी की लुईस मरांडी के बीच लगभग 2700 वोटों का फासला था.
क्यों जरूरी है दुमका में JMM का जीतना ?
दरअसल, दुमका विधानसभा मुख्य रूप से जेएमएम के ट्रेवल पॉलिटिक्स का केंद्र रहा है. उपराजधानी दुमका के खिजुरिया स्थित पार्टी सुप्रीमो शिबू सोरेन के आवास से पूरी पार्टी संचालित होती रही है. इसके साथ ही हर साल 2 फरवरी को जेएमएम का स्थापना दिवस कार्यक्रम दुमका में ऐतिहासिक रूप से मनाया जाता रहा है. इतना ही नहीं संथाल के अन्य इलाकों में जेएमएम की मजबूती के लिए यहीं से ब्लूप्रिंट बनाया जाता रहा है.
क्या कहते हैं पार्टी के नेता ?
पार्टी के केंद्रीय प्रवक्ता विनोद पांडे साफ तौर पर कहते हैं कि दुमका जेएमएम के सीट थी और रहेगी. उन्होंने कहा कि हर हाल में इस सीट पर जेएमएम का उम्मीदवार इस बार जीतेगा और यह राज्य की पॉलिटिक्स में टर्निंग प्वाइंट साबित होगा.