रांची: वैश्विक महामारी कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन का प्रभाव हर सेक्टर में देखने को मिल रहा है. उसी क्रम में कंस्ट्रक्शन सेक्टर में गतिविधियां थम सी गई है. एक तरफ निर्माण कार्य में लगे दूसरे राज्यों के मजदूरों ने अपने घरों की तरफ रुख कर लिया है. इधर दूसरे राज्यों से लौटे मजदूरों को लेकर सरकार अभी तक निर्णय नहीं ले पाई है.
एक अनुमान के हिसाब से झारखंड में निजी और सरकारी निर्माण कार्य बंद होने से लगभग 3000 करोड़ रुपए के नुकसान का आकलन किया जा रहा है. हालांकि आंकड़े अनुमान के आधार पर हैं.
सरकारी और निजी निर्माण कार्य पर लगा है विराम
दरअसल, प्रदेश के अलग-अलग इलाकों में सरकार के बहुत सारे निर्माण कार्य चल रहे थे, उनमें बड़ी संख्या में पुल-पुलिया निर्माण, सड़क निर्माण, सरकारी भवनों के देखरेख और निर्माण जैसी योजनाएं शामिल हैं. वहीं अगर निजी क्षेत्र की बात करें तो बड़ी संख्या में हाउसिंग सेक्टर को लेकर प्रोजेक्ट चल रहे थे. कोरोना संक्रमण की वजह से इन सभी निर्माण कार्य पर विराम लग गया है.
एक तरफ जहां इसका असर उन प्रोजेक्ट में लगे बिल्डर और कॉन्ट्रैक्टर पर पड़ रहा है तो वहीं दूसरी तरफ इन क्षेत्र में निवेश करने वाले लोग अब संशय में हैं. जबकि इन प्रोजेक्ट में काम कर रहे मजदूर बेरोजगार हो गए हैं.
क्या कहते हैं निर्माण क्षेत्र से जुड़े संघ
बिल्डर एसोसिएशन ऑफ इंडिया के झारखंड चैप्टर के पूर्व चेयरमैन और क्रेडाई के ईस्ट जोन के जॉइंट सेक्रेटरी चंद्रकांत रायपत के अनुसार झारखंड में कंस्ट्रक्शन सेक्टर में उतना नुकसान नहीं हुआ है जितना अन्य राज्यों में हो रहा है. उन्होंने कहा कि सरकार के कई प्रोजेक्ट्स भले ही रुक गए हैं, लेकिन यहां श्रमिकों की कमी नहीं है. उन्होंने कहा कि झारखंड में लॉकडाउन 3 के बाद जारी दिशा-निर्देश के बाद अब इन इलाकों में काम शुरू हो सकेगा.
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उन्होंने कहा कि निवेशक और प्रोजेक्ट हैंडल कर रहे लोगों की सुविधा के लिए सरकार को कुछ ऐसी आर्थिक सहायता लेकर आगे आना चाहिए जिससे दोनों राहत की सांस ले सकें. हालांकि रायपत ने कहा कि सरकार से किसी तरह की ऋण माफी की योजना की मांग नहीं होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि मजदूरों के कल्याण के लिए राज्य सरकार ने जो कदम उठाए हैं उसका भी पॉजिटिव असर देखने को मिलेगा.
बीजेपी की सलाह, मजदूरों का बनाएं डेटा बैंक
बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने कहा कि झारखंड में बड़ी संख्या में मुर्शिदाबाद और पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती इलाकों के कारीगर आकर काम करते हैं. कोरोना संक्रमण के दौर में सभी अपने इलाकों में वापस चले गए हैं. ऐसे में रियल स्टेट में मजदूरों की कमी हो गई. उन्होंने कहा कि ऐसे में सरकार को वापस लौट रहे प्रवासी मजदूरों में कुशल कारीगरों को छांट कर उनका उपयोग करना चाहिए.
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उन्होंने कहा कि लौट रहे मजदूरों का रजिस्ट्रेशन कराया जाए और उनका एक डाटा बैंक बनाकर बिल्डर एसोसिएशन को भी उपलब्ध कराएं, ताकि उन मजदूरों से सीधे संपर्क कर उन्हें साइट पर बुला लिया जाये. इससे सरकार का भी फायदा होगा और मजदूरों का भी.
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श्रम मंत्री का दावा, जिलावार तैयार हो रहा है डाटा
राज्य के श्रम मंत्री सत्यानंद भोक्ता ने कहा कि वापस लौट रहे मजदूरों का जिलावार वर्गीकरण किया जा रहा है. किस जिले में कितने मजदूर थे और कितने बाहर थे इस दौर में कितने लौटे हैं, सब की कैटेगरी बनी हुई है. उन्हें किस क्षेत्र में काम आता है यह भी डाटा तैयार किया जा रहा है. एक बार तैयार हो जाए उसके बाद उन्हें उनकी योग्यता के आधार पर काम दिया जा सकेगा.
सरकार की आंकड़ों पर यकीन करें तो करीब 7 लाख ऐसे लोग हैं जो झारखंड से बाहर जाकर अलग-अलग सेक्टर में काम करते हैं. उनमें से कई ऐसे हैं जो दूसरे प्रदेशों के निर्माण कार्य में भी सक्रिय हैं. ऐसे में वापस लौट रहे प्रवासी श्रमिकों के डाटा बैंक का निर्माण कर उन्हें उनके कुशलता के अनुसार काम दिए जाने पर राज्य से पलायन की समस्या भी समाप्त हो सकेगी.