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11 गैर-अनुसूचित जिला में शिक्षक नियुक्ति मामलाः हाई कोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता ने किया आश्वस्त, सरकार ले रही नीतिगत फैसला

11 गैर-अनुसूचित जिला में शिक्षक नियुक्ति मामले पर झारखंड हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. हाई कोर्ट को सरकार का पक्ष रखते हुए सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता ने आश्वस्त करते हुए बताया कि सरकार जल्द ही नीतिगत फैसला लेने जा रही.

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झारखंड हाई कोर्ट
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Published : Sep 23, 2021, 10:43 PM IST

रांचीः झारखंड के गैर-अनुसूचित घोषित किए गए 11 जिला में शिक्षक नियुक्ति पर लगी रोक को हटाने की मांग को लेकर दायर याचिका पर हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. जिसमें सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने इस मामले में पक्ष रखा.

इसे भी पढ़ें- हाई स्कूल शिक्षक नियुक्ति मामले में झारखंड हाई कोर्ट गंभीर, सरकार से दो सप्ताह में मांगा जवाब

अदालत ने मामले में सभी पक्षों को सुनने के बाद महाधिवक्ता से यह जानना चाहा कि जब अदालत के द्वारा 11 गैर-अनुसूचित जिला की शिक्षक नियुक्ति में किसी भी प्रकार की रोक नहीं लगाई गई है तो नियुक्ति क्यों नहीं की जा रही है, सरकार नियुक्ति प्रक्रिया प्रारंभ क्यों नहीं कर रही है, क्यों नियुक्ति पर रोक लगा दी गई है. इसको लेकर महाधिवक्ता ने कोर्ट को आश्वस्त किया कि 10 दिन में सरकार नीतिगत फैसला लेने जा रही है. जिससे अदालत को अवगत कराया जाएगा. अदालत ने उन्हें समय देते हुए मामले की अगली सुनवाई 8 अक्टूबर को निर्धारित की है.

जानकारी देते अधिवक्ता

झारखंड हाई कोर्ट के न्यायाधीश डॉ. एसएन पाठक की अदालत में इस मामले पर सुनवाई हुई. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने याचिकाकर्ता की ओर से पक्ष रखा. उन्होंने अदालत को बताया कि जब गैर-अनुसूचित जिलों के शिक्षकों की नियुक्ति पर किसी भी प्रकार का कोई रोक नहीं लगायी गयी है तो राज्य सरकार कैसे नियुक्ति पर रोक लगा दी है. राज्य सरकार के द्वारा लगाए गए रोक नियम संगत नहीं है.

झारखंड सरकार के नियोजन नीति सोनी कुमारी के द्वारा जो चुनौती दी गई थी, उसमें जो आदेश दिया गया है. उस आदेश के तहत पारा 66 स्पष्ट है कि गैर अनुसूचित जिला में किसी भी प्रकार की कोई रोक नहीं लगाई गई है. इसलिए राज्य सरकार को उन जिलों के अभ्यर्थी की नियुक्ति करनी चाहिए. आशा करते हैं कि राज्य सरकार इस मामले में नीतिगत फैसला लेगी. सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता अजीत सिन्हा ने भी पक्ष रखा.

इसे भी पढ़ें- हाई स्कूल के शिक्षकों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत, झारखंड हाईकोर्ट के आदेश पर लगाई रोक


राज्य में वर्ष 2016 में स्थानीय नीति बनाकर 13 अनुसूचित जिला को सिर्फ उसी जिला के अभ्यार्थी के लिए आरक्षित कर और 11 जिला को गैर-अनुसूचित घोषित कर जिसमें सभी अभ्यर्थी आवेदन कर सकते हैं, यह कहते हुए हाई स्कूल शिक्षक की नियुक्ति के लिए झारखंड कर्मचारी चयन आयोग के द्वारा विज्ञापन निकाला गया. परीक्षा प्रक्रिया पूर्ण कर नियुक्ति प्रक्रिया प्रारंभ की गई. इस बीच राज्य सरकार के 13 अनुसूचित जिला को आरक्षित किए जाने के फैसले को हाईकोर्ट में सोनी कुमारी ने चुनौती दी थी.

इस पर हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए सरकार के इस नियोजन नीति को रद्द कर दिया. वहीं उस फैसले में 11 जिलों के लिए किसी भी प्रकार की कोई रोक नहीं लगाई गई. राज्य सरकार द्वारा उस 11 जिला के अभ्यर्थी की भी नियुक्ति प्रक्रिया बंद कर दी गई. सरकार के उस फैसले के खिलाफ सुनील कुमार वर्मा एवं अन्य अभ्यर्थी झारखंड हाई कोर्ट में याचिका दायर की. उस याचिका की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर है. इसलिए फिलहाल इस मामले पर सुनवाई ना किया जाए.

अदालत ने महाधिवक्ता के इस आग्रह को स्वीकार करते हुए मामले की सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट से आदेश आने तक सुनवाई को स्थगित कर दिया. हाई कोर्ट के द्वारा सुनवाई को स्थगित किए जाने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. सुप्रीम कोर्ट ने भी 11 गैर अनुसूचित जिला में किसी भी प्रकार की कोई रोक से इनकार करते हुए याचिका को निष्पादित कर दिया है.

रांचीः झारखंड के गैर-अनुसूचित घोषित किए गए 11 जिला में शिक्षक नियुक्ति पर लगी रोक को हटाने की मांग को लेकर दायर याचिका पर हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. जिसमें सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने इस मामले में पक्ष रखा.

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अदालत ने मामले में सभी पक्षों को सुनने के बाद महाधिवक्ता से यह जानना चाहा कि जब अदालत के द्वारा 11 गैर-अनुसूचित जिला की शिक्षक नियुक्ति में किसी भी प्रकार की रोक नहीं लगाई गई है तो नियुक्ति क्यों नहीं की जा रही है, सरकार नियुक्ति प्रक्रिया प्रारंभ क्यों नहीं कर रही है, क्यों नियुक्ति पर रोक लगा दी गई है. इसको लेकर महाधिवक्ता ने कोर्ट को आश्वस्त किया कि 10 दिन में सरकार नीतिगत फैसला लेने जा रही है. जिससे अदालत को अवगत कराया जाएगा. अदालत ने उन्हें समय देते हुए मामले की अगली सुनवाई 8 अक्टूबर को निर्धारित की है.

जानकारी देते अधिवक्ता

झारखंड हाई कोर्ट के न्यायाधीश डॉ. एसएन पाठक की अदालत में इस मामले पर सुनवाई हुई. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने याचिकाकर्ता की ओर से पक्ष रखा. उन्होंने अदालत को बताया कि जब गैर-अनुसूचित जिलों के शिक्षकों की नियुक्ति पर किसी भी प्रकार का कोई रोक नहीं लगायी गयी है तो राज्य सरकार कैसे नियुक्ति पर रोक लगा दी है. राज्य सरकार के द्वारा लगाए गए रोक नियम संगत नहीं है.

झारखंड सरकार के नियोजन नीति सोनी कुमारी के द्वारा जो चुनौती दी गई थी, उसमें जो आदेश दिया गया है. उस आदेश के तहत पारा 66 स्पष्ट है कि गैर अनुसूचित जिला में किसी भी प्रकार की कोई रोक नहीं लगाई गई है. इसलिए राज्य सरकार को उन जिलों के अभ्यर्थी की नियुक्ति करनी चाहिए. आशा करते हैं कि राज्य सरकार इस मामले में नीतिगत फैसला लेगी. सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता अजीत सिन्हा ने भी पक्ष रखा.

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राज्य में वर्ष 2016 में स्थानीय नीति बनाकर 13 अनुसूचित जिला को सिर्फ उसी जिला के अभ्यार्थी के लिए आरक्षित कर और 11 जिला को गैर-अनुसूचित घोषित कर जिसमें सभी अभ्यर्थी आवेदन कर सकते हैं, यह कहते हुए हाई स्कूल शिक्षक की नियुक्ति के लिए झारखंड कर्मचारी चयन आयोग के द्वारा विज्ञापन निकाला गया. परीक्षा प्रक्रिया पूर्ण कर नियुक्ति प्रक्रिया प्रारंभ की गई. इस बीच राज्य सरकार के 13 अनुसूचित जिला को आरक्षित किए जाने के फैसले को हाईकोर्ट में सोनी कुमारी ने चुनौती दी थी.

इस पर हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए सरकार के इस नियोजन नीति को रद्द कर दिया. वहीं उस फैसले में 11 जिलों के लिए किसी भी प्रकार की कोई रोक नहीं लगाई गई. राज्य सरकार द्वारा उस 11 जिला के अभ्यर्थी की भी नियुक्ति प्रक्रिया बंद कर दी गई. सरकार के उस फैसले के खिलाफ सुनील कुमार वर्मा एवं अन्य अभ्यर्थी झारखंड हाई कोर्ट में याचिका दायर की. उस याचिका की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर है. इसलिए फिलहाल इस मामले पर सुनवाई ना किया जाए.

अदालत ने महाधिवक्ता के इस आग्रह को स्वीकार करते हुए मामले की सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट से आदेश आने तक सुनवाई को स्थगित कर दिया. हाई कोर्ट के द्वारा सुनवाई को स्थगित किए जाने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. सुप्रीम कोर्ट ने भी 11 गैर अनुसूचित जिला में किसी भी प्रकार की कोई रोक से इनकार करते हुए याचिका को निष्पादित कर दिया है.

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