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सीवरेज-ड्रेनेज के डीपीआर में गड़बड़ी: HC ने 29 मार्च तक मांगा जवाब

सीवरेज ड्रेनेज के डीपीआर में गड़बड़ी के मामले को लेकर झारखंड हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. इस मामले में कोर्ट ने सरकार से 29 मार्च तक जवाब पेश करने का आदेश दिया है. याचिकाकर्ता पंकज कुमार यादव की याचिका पर कोर्ट ने सुनवाई करते हुए सरकार को जवाब पेश करने को कहा है.

झारखंड हाईकोर्ट
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Published : Mar 8, 2019, 8:00 AM IST

रांची: सीवरेज ड्रेनेज के डीपीआर में गड़बड़ी के मामले को लेकर झारखंड हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. मामले की सुनवाई न्यायाधीश अमिताभ गुप्ता की कोर्ट में होगी. कोर्ट ने कहा कि सीवरेज ड्रेनेज मामले में जिसने गड़बड़ी की फिर उसे ही जांच क्यों दिया गया. अभियोजन की स्वीकृति क्यों नहीं दी गई.

जवाब पेश करने का आदेश

बता दें कि इस मामले में कोर्ट ने सरकार से 29 मार्च तक जवाब पेश करने का आदेश दिया है. याचिकाकर्ता पंकज कुमार यादव की याचिका पर कोर्ट ने सुनवाई करते हुए सरकार को जवाब पेश करने को कहा है. सीवरेज ड्रेनेज के पांच करोड़ की डीपीआर बनाने वाली पुरानी कंपनी को हटाकर मैनहर्ट को 19 करोड़ में डीपीआर बनाने के लिए दिया गया.

29 मार्च को सुनवाई की तिथि
इस मामले में तत्कालीन नगर विकास मंत्री को भी दोषी बनाया गया है, क्योंकि विजिलेंस जांच में गड़बड़ी का मामला सही पाया गया. इस गड़बड़ी पर प्राथमिकी दर्ज करने के लिए सरकार से अनुमति मांगी गई. लेकिन प्राथमिकी दर्ज करने की जगह नगर विकास विभाग को फिर से जांच का जिम्मा दे दिया गया. इसी मामले में याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर प्राथमिकी दर्ज कराने की मांग की है. सीवरेज ड्रेनेज मामले में 29 मार्च को सुनवाई की तिथि निर्धारित किया है.

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मैनहर्ट को डीपीआर बनाने का आदेश दिया गया
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता राजीव कुमार ने कहा कि वर्ष 2004-5 में पहले वाली कंपनी ने ही मैनहर्ट को डीपीआर बनाने का आदेश दिया. 5 करोड़ की पहली वाली कंपनी को डीपीआर का काम तत्कालीन नगर विकास मंत्री ने मैनहर्ट को 19 करोड़ में दे दिया. क्या वर्ष 2008 में पूरे प्रकरण की जांच विधानसभा कमेटी के द्वारा किया गया.

कमेटी की रिपोर्ट में क्या कहा गया
कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया कि स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराया जाए, लेकिन राज्य सरकार ने स्वतंत्र एजेंसी से जांच नहीं कराया. जिसके बाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई. तत्कालीन चीफ जस्टिस भगवती प्रसाद ने साक्ष्य के साथ विजिलेंस ब्यूरो से जांच की.

ये भी पढ़ें- ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ तीसरा वन-डे आज, रांची में सीरीज फतह करने उतरेगा भारत

नगर विकास विभाग को दिया गया जांच का जिम्मा
जांच में याचिकाकर्ता के द्वारा दिए गए साक्ष्य सही पाए गए. प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए तत्कालीन आईजी एमवी राव ने राज्य सरकार से अनुमति मांगी, लेकिन सरकार से प्राथमिकी दर्ज की अनुमति नहीं मिली. नगर विकास विभाग को फिर से इस मामले की जांच का जिम्मा दे दिया गया.

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रांची: सीवरेज ड्रेनेज के डीपीआर में गड़बड़ी के मामले को लेकर झारखंड हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. मामले की सुनवाई न्यायाधीश अमिताभ गुप्ता की कोर्ट में होगी. कोर्ट ने कहा कि सीवरेज ड्रेनेज मामले में जिसने गड़बड़ी की फिर उसे ही जांच क्यों दिया गया. अभियोजन की स्वीकृति क्यों नहीं दी गई.

जवाब पेश करने का आदेश

बता दें कि इस मामले में कोर्ट ने सरकार से 29 मार्च तक जवाब पेश करने का आदेश दिया है. याचिकाकर्ता पंकज कुमार यादव की याचिका पर कोर्ट ने सुनवाई करते हुए सरकार को जवाब पेश करने को कहा है. सीवरेज ड्रेनेज के पांच करोड़ की डीपीआर बनाने वाली पुरानी कंपनी को हटाकर मैनहर्ट को 19 करोड़ में डीपीआर बनाने के लिए दिया गया.

29 मार्च को सुनवाई की तिथि
इस मामले में तत्कालीन नगर विकास मंत्री को भी दोषी बनाया गया है, क्योंकि विजिलेंस जांच में गड़बड़ी का मामला सही पाया गया. इस गड़बड़ी पर प्राथमिकी दर्ज करने के लिए सरकार से अनुमति मांगी गई. लेकिन प्राथमिकी दर्ज करने की जगह नगर विकास विभाग को फिर से जांच का जिम्मा दे दिया गया. इसी मामले में याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर प्राथमिकी दर्ज कराने की मांग की है. सीवरेज ड्रेनेज मामले में 29 मार्च को सुनवाई की तिथि निर्धारित किया है.

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मैनहर्ट को डीपीआर बनाने का आदेश दिया गया
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता राजीव कुमार ने कहा कि वर्ष 2004-5 में पहले वाली कंपनी ने ही मैनहर्ट को डीपीआर बनाने का आदेश दिया. 5 करोड़ की पहली वाली कंपनी को डीपीआर का काम तत्कालीन नगर विकास मंत्री ने मैनहर्ट को 19 करोड़ में दे दिया. क्या वर्ष 2008 में पूरे प्रकरण की जांच विधानसभा कमेटी के द्वारा किया गया.

कमेटी की रिपोर्ट में क्या कहा गया
कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया कि स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराया जाए, लेकिन राज्य सरकार ने स्वतंत्र एजेंसी से जांच नहीं कराया. जिसके बाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई. तत्कालीन चीफ जस्टिस भगवती प्रसाद ने साक्ष्य के साथ विजिलेंस ब्यूरो से जांच की.

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नगर विकास विभाग को दिया गया जांच का जिम्मा
जांच में याचिकाकर्ता के द्वारा दिए गए साक्ष्य सही पाए गए. प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए तत्कालीन आईजी एमवी राव ने राज्य सरकार से अनुमति मांगी, लेकिन सरकार से प्राथमिकी दर्ज की अनुमति नहीं मिली. नगर विकास विभाग को फिर से इस मामले की जांच का जिम्मा दे दिया गया.

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Intro:सीवरेज ड्रेनेज की डीपीआर में गड़बड़ी के मामले को लेकर झारखंड हाई कोर्ट में सुनवाई हुई मामले की सुनवाई न्यायाधीश अमिताभ गुप्ता की कोर्ट में होगी कोर्ट ने कहा कि सीवरेज ड्रेनेज मामले में जिसने गड़बड़ी की फिर उसे ही जांच क्यों दिया गया अभियोजन की स्वीकृति क्यों नहीं दी गई इस मामले में कोर्ट ने सरकार से 29 मार्च तक जवाब पेश करने का आदेश दिया है याचिकाकर्ता पंकज कुमार यादव की याचिका पर कोर्ट ने सुनवाई करते हुए सरकार कोजवाब पेश करने को कहा है। सीवरेज ड्रेनेज के 5 करोड़ के डीपीआर बनाने वाली पुरानी कंपनी को हटाकर मैनहर्ट को 19 करोड़ में डीपीआर बनाने के लिए दिया गया।


Body:इस मामले में तत्कालीन नगर विकास मंत्री को भी दोषी बनाया गया है क्योंकि विजिलेंस जांच में गड़बड़ी का मामला सही पाया गया इस गड़बड़ी पर प्राथमिकी दर्ज करने के लिए सरकार से अनुमति मांगी गई। लेकिन प्राथमिकी दर्ज करने की जगह नगर विकास विभाग को फिर से जांच का जिम्मा दे दिया गया इसी मामले में याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर प्राथमिकी दर्ज कराने की मांग की है सीवरेज ड्रेनेज मामले में 29 मार्च को सुनवाई की तिथि निर्धारित किया है।


Conclusion:याचिकाकर्ता के अधिवक्ता राजीव कुमार ने कहा कि वर्ष 2004 5 में पहले वाली कंपनी नहीं मैनहर्ट को डीपीआर बनाने सुबह में का आदेश दिया गया 5 करोड़ की पहली वाली कंपनी को दी प्यार का काम तत्कालीन नगर विकास मंत्री ने मैनहर्ट को 19 करोड़ में दे दिया क्या वर्ष 2008 में पूरे प्रकरण की जांच विधानसभा कमेटी के द्वारा किया गया कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया कि स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराया जाए लेकिन राज्य सरकार ने स्वतंत्र एजेंसी से नहीं कराया जिसके बाद हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई तत्कालीन चीफ जस्टिस भगवती प्रसाद ने साक्ष्य के साथ विजिलेंस ब्यूरो से जांच की। जांच में याचिकाकर्ता के द्वारा दिए गए साक्ष्य सही पाए गए प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए तत्कालीन आईजी एमवी राव ने राज्य सरकार से अनुमति मांगी लेकिन सरकार से प्राथमिकी दर्ज की अनुमति नहीं मिली लेकिन नगर विकास विभाग को फिर से इस मामले की जांच का जिम्मा दे दिया गया
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