रांचीः भारतीय जनता पार्टी के पूर्व विधायक और धनबाद के चर्चित नीरज सिंह हत्या मामले के आरोपी संजीव सिंह की याचिका पर झारखंड हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. अदालत ने मामले में दोनों पक्षों को अपना दलील पेश करने को कहा. दोनों ओर से मामले में दलील पेश की गई. अदालत ने सुनवाई की पूरी प्रक्रिया को पूर्ण करते हुए आदेश को सुरक्षित रख लिया है.
ये भी पढ़ेंः जानिए आखिर किस मामले में झारखंड हाई कोर्ट ने सरकार से पूछा कि बताएं आप पर क्यों ना अवमाननावाद चलाया जाए
झारखंड हाई कोर्ट के न्यायाधीश संजय कुमार द्विवेदी की अदालत में धनबाद के चर्चित नीरज सिंह हत्याकांड के आरोपी पूर्व विधायक संजीव सिंह की याचिका पर सुनवाई हुई न्यायाधीश अपने आवासीय कार्यालय से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मामले की सुनवाई की. वहीं याचिकाकर्ता के अधिवक्ता और सरकार के अधिवक्ताओं ने अपने अपने आवास से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अपना पक्ष रखा.
सुनवाई के दौरान पूर्व विधायक के अधिवक्ता ने अदालत में सुप्रीम कोर्ट और झारखंड हाई कोर्ट के आदेशों का हवाला दिया, उन्होंने कहा कि विधायक अभी विचाराधीन कैदी हैं और विचाराधीन कैदी को बिना अदालत के अनुमति के सरकार जहां उनका ट्रायल चल रहा है वहां से दूसरी जगह नहीं भेज सकती है, हां विचाराधीन कैदी को अदालत से अनुमति मिलने के बाद ही दूसरी जेल में स्थानांतरित किया जा सकता है, लेकिन झारखंड सरकार के अधिकारियों ने बिना कोर्ट की अनुमति के ही संजीव सिंह को धनबाद जेल से दुमका केंद्रीय कारा भेज दिया. सुप्रीम कोर्ट और झारखंड हाई कोर्ट ने निर्धारित किया है कि सीआरपीसी की धारा 309 के प्रावधानों के तहत विचाराधीन कैदी को संबंधित जिले की जेल में रखा जाता है. क्योंकि समय-समय पर न्यायालय में उसकी उपस्थित दर्ज होती है. ऐसे में बिना निचली कोर्ट की अनुमति के विचाराधीन कैदी को किसी दूसरे स्थान या जेल में नहीं भेजा जा सकता है. संजीव सिंह की ओर से दुमका जेल भेजने के आदेश के खिलाफ धनबाद की निचली कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है. निचली अदालत ने सरकार के अधिकारियों को आदेश दिया था कि, वादी को तत्काल धनबाद जेल वापस लाया जाए, लेकिन उक्त आदेश का अनुपालन नहीं किया गया. उन्हें दुमका जेल में रखा जाना अवैध और गैरकानूनी है. इसलिए उन्हें वापस धनबाद जेल लाना चाहिए.
वहीं सरकार की ओर से अधिवक्ता ने अदालत में विधायक के अधिवक्ता की दलील का विरोध करते हुए कहा कि सरकार बिना किसी अनुमति के विचाराधीन कैदी को दूसरे जेल में स्थानांतरित कर सकती है. उसके बाद निचली अदालत से अनुमति ली जाती है. ऐसे में सरकार के द्वारा दिए गए आदेश किसी भी तरह से गलत नहीं है. अदालत ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रखा है. फैसला बाद में सुनाया जाएगा.