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गुरुवार को SC में झारखंड के DGP की किस्मत पर फैसला, UPSC ने डीजीपी के संभावित नामों की पैनल भी लौटाई

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Published : Aug 12, 2020, 8:13 PM IST

झारखंड के डीजीपी की किस्मत का फैसला गुरुवार को होना है. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएस बोपन्नना और वी राम सुब्रमण्यमकी अदालत में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई होगी.

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डीजीपी एमवी राव

रांची: झारखंड में 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी एमवी राव को प्रभारी डीजीपी बनाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को दाखिल याचिका पर सुनवाई होगी. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएस बोपन्नना और वी राम सुब्रमण्यमकी अदालत में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई होगी.

दायर की गई थी याचिका
सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रह्लाद नारायण सिंह ने एमवी राव को प्रभारी डीजीपी बनाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के फैसले के खिलाफ बताते हुए याचिका दायर की थी. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के पहले यूपीएससी ने राज्य सरकार के मुख्य सचिव सुखदेव सिंह को पत्र लिखकर पूर्व के डीजीपी केएन चौबे को हटाने की वजह पूछी है.

सुनवाई से यूपीएससी का इनकार
वहीं, राज्य सरकार की ओर से डीजीपी की बहाली के लिए पांच आईपीएस अधिकारियों के नाम के पैनल पर यूपीएससी ने किसी भी तरह की सुनवाई से इनकार कर दिया है. यूपीएससी ने लिखा है कि केएन चौबे के दो साल का टर्म पूरा नहीं हुआ, ऐसे में उन्हें क्यों हटाया गया. जब तक हटाए जाने की वजह स्पष्ट नहीं होगी, यूपीएससी ने पैनल पर विचार करने से इनकार कर दिया है. बता दें कि राज्य सरकार ने 16 मार्च 2020 को अचानक ही केएन चौबे को महज नौ माह के कार्याकाल के बाद हटाकर दिल्ली में आधुनिकीकरण का ओएसडी बना दिया था. वहीं एमवी राव को प्रभारी डीजीपी बना दिया गया था.

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यूपीएससी ने लिखा- दो साल के भीतर डीजीपी को हटाना गलत
यूपीएससी ने डीजीपी के पैनल लिस्ट के लिए भेजे गए पत्र के बाद राज्य सरकार को जो पत्र भेजा है उसमें सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के विरूद्ध बताया गया है. यूपीएससी ने लिखा है कि 31 मई 2019 को राज्य सरकार ने केएन चौबे का नोटिफिकेशन बतौर डीजीपी निकाला था. यूपीएससी के इंपैनलमेंट कमेटी मीटिंग में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अंतर्गत भेजे गए नामों के आधार पर यह चयन दो सालों के लिए हुआ था. यूपीएससी ने लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि यूपीएससी की ओर से राज्य के तीन वरीय अफसरों के नाम का पैनल भेजा जाएगा. अफसरों के बेहतर सर्विस रिकॉर्ड, सेवा की अवधि और पुलिस विभाग में अनुभवों के आधार पर इन तीन वरीय अफसरों में एक को राज्य सरकार को डीजीपी के पद पर दो सालों के लिए चुनना होगा. दो साल के भीतर इन पुलिस अधिकारियों को तब ही हटाया जा सकता है, जब इन्हें ऑल इंडिया सर्विस रूल्स में दोषी पाया गया हो, किसी मामले में न्यायालय की ओर से सजा दी गई हो, या शारीरिक वजहों से वह काम करने में अक्षम हो.

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सरकार को बतानी होगी केएन चौबे को हटाने की वजह
यूपीएससी ने राज्य सरकार से केएन चौबे को हटाने की वजह पूछी है. पूछा गया है कि उन्हें किन वजहों से डीजीपी के पद से हटाया गया, क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेश के दायरे में आने वाली किसी वजह से उन्हें हटाया गया है. राज्य सरकार को यूपीएससी ने स्पष्ट किया है कि बगैर वजह बताए सरकार की ओर से नए डीजीपी की प्रतिनियुक्ति संबंधी पैनल भेजने पर विचार नहीं किया जा सकता.

रांची: झारखंड में 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी एमवी राव को प्रभारी डीजीपी बनाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को दाखिल याचिका पर सुनवाई होगी. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएस बोपन्नना और वी राम सुब्रमण्यमकी अदालत में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई होगी.

दायर की गई थी याचिका
सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रह्लाद नारायण सिंह ने एमवी राव को प्रभारी डीजीपी बनाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के फैसले के खिलाफ बताते हुए याचिका दायर की थी. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के पहले यूपीएससी ने राज्य सरकार के मुख्य सचिव सुखदेव सिंह को पत्र लिखकर पूर्व के डीजीपी केएन चौबे को हटाने की वजह पूछी है.

सुनवाई से यूपीएससी का इनकार
वहीं, राज्य सरकार की ओर से डीजीपी की बहाली के लिए पांच आईपीएस अधिकारियों के नाम के पैनल पर यूपीएससी ने किसी भी तरह की सुनवाई से इनकार कर दिया है. यूपीएससी ने लिखा है कि केएन चौबे के दो साल का टर्म पूरा नहीं हुआ, ऐसे में उन्हें क्यों हटाया गया. जब तक हटाए जाने की वजह स्पष्ट नहीं होगी, यूपीएससी ने पैनल पर विचार करने से इनकार कर दिया है. बता दें कि राज्य सरकार ने 16 मार्च 2020 को अचानक ही केएन चौबे को महज नौ माह के कार्याकाल के बाद हटाकर दिल्ली में आधुनिकीकरण का ओएसडी बना दिया था. वहीं एमवी राव को प्रभारी डीजीपी बना दिया गया था.

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यूपीएससी ने लिखा- दो साल के भीतर डीजीपी को हटाना गलत
यूपीएससी ने डीजीपी के पैनल लिस्ट के लिए भेजे गए पत्र के बाद राज्य सरकार को जो पत्र भेजा है उसमें सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के विरूद्ध बताया गया है. यूपीएससी ने लिखा है कि 31 मई 2019 को राज्य सरकार ने केएन चौबे का नोटिफिकेशन बतौर डीजीपी निकाला था. यूपीएससी के इंपैनलमेंट कमेटी मीटिंग में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अंतर्गत भेजे गए नामों के आधार पर यह चयन दो सालों के लिए हुआ था. यूपीएससी ने लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि यूपीएससी की ओर से राज्य के तीन वरीय अफसरों के नाम का पैनल भेजा जाएगा. अफसरों के बेहतर सर्विस रिकॉर्ड, सेवा की अवधि और पुलिस विभाग में अनुभवों के आधार पर इन तीन वरीय अफसरों में एक को राज्य सरकार को डीजीपी के पद पर दो सालों के लिए चुनना होगा. दो साल के भीतर इन पुलिस अधिकारियों को तब ही हटाया जा सकता है, जब इन्हें ऑल इंडिया सर्विस रूल्स में दोषी पाया गया हो, किसी मामले में न्यायालय की ओर से सजा दी गई हो, या शारीरिक वजहों से वह काम करने में अक्षम हो.

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सरकार को बतानी होगी केएन चौबे को हटाने की वजह
यूपीएससी ने राज्य सरकार से केएन चौबे को हटाने की वजह पूछी है. पूछा गया है कि उन्हें किन वजहों से डीजीपी के पद से हटाया गया, क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेश के दायरे में आने वाली किसी वजह से उन्हें हटाया गया है. राज्य सरकार को यूपीएससी ने स्पष्ट किया है कि बगैर वजह बताए सरकार की ओर से नए डीजीपी की प्रतिनियुक्ति संबंधी पैनल भेजने पर विचार नहीं किया जा सकता.

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