रांची: भारतीय पुरुष हॉकी टीम को टोक्यो ओलंपिक 2020 (Tokyo Olympics 2020) में सफलता मिली है. ओआई स्टेडियम में जर्मनी टीम का सामना करते हुए भारतीय हॉकी टीम (Indian Hockey Team) ने 5-4 ने जीत दर्ज कर ब्रॉन्ज मेडल पर कब्जा जमाया है. 41 साल के बाद भारत को पदक लेने में सफलता मिली है. टोक्यो ओलंपिक में मिली सफलता से खेलप्रेमी खुश हैं. हालांकि ब्रॉन्ज से खेल प्रेमी संतुष्ट नहीं हैं.
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1980 के मास्को ओलंपिक में भारतीय पुरुष हॉकी टीम को गोल्ड मेडल दिलाने वाले सिमडेगा के गोल्ड मेडलिस्ट सिलवानुस डुंगडुंग भी भारतीय पुरुष हॉकी टीम को ब्रॉन्ज मेडल मिलने से संतुष्ट नहीं दिख रहे हैं. मेजर ध्यानचंद लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित सिलवानुस डुंगडुंग से ईटीवी भारत के संवाददाता भुवन किशोर ने खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि कैसे कठिन परिस्थितियों में हॉकी को सीखा और कैसे 1980 में सुविधाओं के अभाव के बाद भी मास्को ओलंपिक में भारत को गोल्ड मेडल दिलाया. सिलवानुस आज भी उन दिनों को याद करके खुद का गर्व महसूस करते हैं. उन्होंने कहा कि टोक्यो ओलंपिक से देश को काफी उम्मीद है.
1980 मास्को ओलंपिक में मिला था हॉकी में गोल्ड मेडल
मास्को ओलंपिक 1980 के गोल्ड मेडलिस्ट सिलवानुस डुंगडुंग बताते हैं कि बचपन से ही अपने भाई, दादा, पिता और गांव के लोगों को हॉकी खेलते हुए देखा, तब मेरे दिल में भी हॉकी खेलने की बात आई. वर्ल्ड कप खेला, एशियन गेम खेला, अब ओलंपिक आया तो मेरी यह सोच थी कि मैं ओलंपिक गेम खेल कर आऊंगा.
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भारतीय टीम ने 1980 में स्पेन को हराया
अपने घर में रखे मैडल को निहारते हुए सिलवानुस डुंगडुंग ने कहा, जब मेरा 1980 मास्को ओलंपिक में चयन हो गया तब मुझे बहुत खुशी हुई. फाइनल में स्पेन के साथ मुकाबला हुआ. दूसरे हाफ में हमारी टीम ने 10 मिनट से 3-0 से लीड लिया था. उसके बाद हमने सोचा कि हम जीत जाएंगे, लेकिन स्पेन ने 10 मिनट के अंदर तीन गोल कर मुकाबला बराबर कर दिया. इसके बाद मैं दवाब में आ गया और डिफेंस फुल बैक में खेल रहा था. जब भी मुझे बॉल मिला मैंने बॉल को राइट साइड में दिखाकर सेंटर हाफ की तरफ मारा और सेंटर हाफ की तरफ हमारा खिलाड़ी शिवरंगन दास सौरी खेल रहा था. उसने बॉल को गोल में डाला उसके बाद रेफरी ने अंतिम सिटी बजाया और हम 4-3 से मैच जीत गए थे.