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झारखंड कोयला घोटालाः पूर्व मंत्री और अधिकारी दोषी करार, 14 अक्टूबर को सजा पर सुनवाई

झारखंड कोयला घोटाला मामले में दिल्ली की एक विशेष अदालत ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और कोयला मंत्रालय के अधिकारियों को दोषी करार दिया है. किस जिले में कोल ब्लॉक आवंटन किया गया था और किन लोगों को दोषी करार दिया गया है, ये विस्तार से जानने के लिए आगे पढ़ें.

झारखंड कोयला घोटाला
झारखंड कोयला घोटाला
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Published : Oct 6, 2020, 4:01 PM IST

दिल्ली/गिरिडीह/रांची: दिल्ली की एक विशेष अदालत ने पूर्व केंद्रीय मंत्री दिलीप रे को कोयला घोटाला मामले में दोषी करार दिया है. साल 1999 में गिरिडीह के एक कोल ब्लॉक आवंटन में अनियमितता को लेकर पूर्व मंत्री सहित दो तत्कालीन अधिकारियों को भी दोषी ठहराया गया है.

विशेष न्यायाधीश भारत पारसकर ने दिलीप रे, प्रदीप कुमार बनर्जी, नित्यानंद गौतम, कैस्ट्रोन टेक्नोलॉजीज लिमिटेड व इसके निदेशक महेंद्र कुमार अग्रवाल और कैस्ट्रॉन माइनिंग लिमिटेड को दोषी ठहराया है. दिलीप रे अटल बिहारी सरकार में कोयला राज्यमंत्री थे. वहीं, प्रदीप बनर्जी कोयला मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव और परियोजना सलाहकार थे.

सीबीआई की विशेष कोर्ट ने 2017 में दिलीप रे के अलावा कोयला मंत्रालय में रहे अधिकारियों प्रदीप बनर्जी और नित्यानंद गौतम के साथ-साथ कैस्ट्रॉन टेक्नॉलजीज लिमिटेड और उसके डायरेक्टर महेंद्र कुमार के खिलाफ धोखाधड़ी और विश्वास हनन का आरोप तय किया था. अदालत अब 14 अक्टूबर को सजा पर सुनवाई करेगी.

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कब सामने आया झारखंड कोयला घोटाला

कंप्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया की मार्च 2012 की रिपोर्ट के अनुसार साल 2004 से 2009 के बीच कोल ब्लॉक का आवंटन गलत तरीके से किया गया. इससे सरकारी खजाने को 1 लाख 86 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ. इस रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने कई फर्म्स को बिना नीलामी के ही कोल ब्लॉक आवंटित कर दिए. तब भाजपा विपक्ष में थी और इसने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस्तीफे की मांग कर दी. मामले के तूल पकड़ने पर सीबीआई को जांच का जिम्मा सौंपा गया.

कोयला घोटाला उजागर हुआ तो साल 1999 में गिरिडीह के ब्रह्मडीहा ओपनकास्ट माइंस का आवंटन भी इसमें जा फंसा. घोटाले की जांच शुरू हुई तो यहां पर कोयला का उत्पादन बंद कर स्टॉक को जब्त कर लिया गया.

ये भी पढ़ें-धनबाद में टोला क्लासेज ने दूर की गरीब छात्रों की परेशानी, कोरोना काल में भी खूब पढ़ रहे हैं बच्चे

ब्रह्मडीहा ओपनकास्ट माइंस

ब्रह्मडीहा ओपनकास्ट माइंस गिरिडीह शहर से महज पांच किलोमीटर दूर चुंजका में है. साल 1999 में ब्लॉक का आवंटन होने के बाद यहां उत्पादन शुरू हुआ और लगभग 18 हजार टन कोयला का उत्पादन किया गया था. इसके बाद घोटाले की रिपोर्ट आई और ये ब्लॉक जांच की जद में आ गया.

कोल ब्लॉक आवंटन घोटाला के उजागर होते ही गिरिडीह के चुंजका में स्थित ब्रह्मडीहा ओपनकास्ट माइंस में भी जांच शुरू हुई थी. यहां पर मामले की जांच करने सीबीआई की टीम तीन बार पहुंची थी. वहीं कोयला के स्टॉक को भी जब्त किया गया था. ईडी यानी परिवर्तन निदेशालय की टीम भी यहां आकर जांच कर चुकी है.

साल 2014 में कंपनी ने यहां पर कार्यरत तीन दर्जन निजी सुरक्षा गार्डों के जिम्मा पर कोयला का स्टॉक सौंप दिया और कंपनी के सभी कर्मी और पदाधिकारी चले गए. यहां अब भी 15-16 निजी गार्ड हैं, जो कोयला और बंद कार्यालय की देखभाल कर रहे हैं. हालांकि इन गार्डों को आज तक मानदेय नहीं मिला है.

दिल्ली/गिरिडीह/रांची: दिल्ली की एक विशेष अदालत ने पूर्व केंद्रीय मंत्री दिलीप रे को कोयला घोटाला मामले में दोषी करार दिया है. साल 1999 में गिरिडीह के एक कोल ब्लॉक आवंटन में अनियमितता को लेकर पूर्व मंत्री सहित दो तत्कालीन अधिकारियों को भी दोषी ठहराया गया है.

विशेष न्यायाधीश भारत पारसकर ने दिलीप रे, प्रदीप कुमार बनर्जी, नित्यानंद गौतम, कैस्ट्रोन टेक्नोलॉजीज लिमिटेड व इसके निदेशक महेंद्र कुमार अग्रवाल और कैस्ट्रॉन माइनिंग लिमिटेड को दोषी ठहराया है. दिलीप रे अटल बिहारी सरकार में कोयला राज्यमंत्री थे. वहीं, प्रदीप बनर्जी कोयला मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव और परियोजना सलाहकार थे.

सीबीआई की विशेष कोर्ट ने 2017 में दिलीप रे के अलावा कोयला मंत्रालय में रहे अधिकारियों प्रदीप बनर्जी और नित्यानंद गौतम के साथ-साथ कैस्ट्रॉन टेक्नॉलजीज लिमिटेड और उसके डायरेक्टर महेंद्र कुमार के खिलाफ धोखाधड़ी और विश्वास हनन का आरोप तय किया था. अदालत अब 14 अक्टूबर को सजा पर सुनवाई करेगी.

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कब सामने आया झारखंड कोयला घोटाला

कंप्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया की मार्च 2012 की रिपोर्ट के अनुसार साल 2004 से 2009 के बीच कोल ब्लॉक का आवंटन गलत तरीके से किया गया. इससे सरकारी खजाने को 1 लाख 86 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ. इस रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने कई फर्म्स को बिना नीलामी के ही कोल ब्लॉक आवंटित कर दिए. तब भाजपा विपक्ष में थी और इसने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस्तीफे की मांग कर दी. मामले के तूल पकड़ने पर सीबीआई को जांच का जिम्मा सौंपा गया.

कोयला घोटाला उजागर हुआ तो साल 1999 में गिरिडीह के ब्रह्मडीहा ओपनकास्ट माइंस का आवंटन भी इसमें जा फंसा. घोटाले की जांच शुरू हुई तो यहां पर कोयला का उत्पादन बंद कर स्टॉक को जब्त कर लिया गया.

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ब्रह्मडीहा ओपनकास्ट माइंस

ब्रह्मडीहा ओपनकास्ट माइंस गिरिडीह शहर से महज पांच किलोमीटर दूर चुंजका में है. साल 1999 में ब्लॉक का आवंटन होने के बाद यहां उत्पादन शुरू हुआ और लगभग 18 हजार टन कोयला का उत्पादन किया गया था. इसके बाद घोटाले की रिपोर्ट आई और ये ब्लॉक जांच की जद में आ गया.

कोल ब्लॉक आवंटन घोटाला के उजागर होते ही गिरिडीह के चुंजका में स्थित ब्रह्मडीहा ओपनकास्ट माइंस में भी जांच शुरू हुई थी. यहां पर मामले की जांच करने सीबीआई की टीम तीन बार पहुंची थी. वहीं कोयला के स्टॉक को भी जब्त किया गया था. ईडी यानी परिवर्तन निदेशालय की टीम भी यहां आकर जांच कर चुकी है.

साल 2014 में कंपनी ने यहां पर कार्यरत तीन दर्जन निजी सुरक्षा गार्डों के जिम्मा पर कोयला का स्टॉक सौंप दिया और कंपनी के सभी कर्मी और पदाधिकारी चले गए. यहां अब भी 15-16 निजी गार्ड हैं, जो कोयला और बंद कार्यालय की देखभाल कर रहे हैं. हालांकि इन गार्डों को आज तक मानदेय नहीं मिला है.

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