रांची: झारखंड हाई कोर्ट के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश हरीश चंद्र मिश्रा सेवानिवृत्त हो गए. उन्होंने दस वर्ष तक झारखंड हाई कोर्ट में सेवा दी. इस दौरान उनके कई फैसले चर्चित रहे. पिछले साल झारखंड सरकार की ओर से बनाई गई नियोजन नीति में 100% का आरक्षण दिए जाने के मामले पर उनका फैसला काफी चर्चित था. राज्य सरकार की नियोजन नीति को रद्द किए जाने के बाद इस फैसले की काफी चर्चा हुई. इसके अलावा उन्होंने हाई कोर्ट में कई लैंडमार्क जजमेंट दिए हैं. 10 सालों तक लगातार झारखंड हाई कोर्ट के कई मामले में अपने आदेश देते हुए शुक्रवार को अंतिम कार्य दिवस के रूप में कार्य कर सेवानिवृत्त हुए. साल 2011 से लेकर साल 2021 तक अपने त्वरित न्याय के लिए चर्चा में रहे.
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झारखंड लीगल सर्विस अथॉरिटी के कार्यपालक अध्यक्ष बनने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर अपने कार्यों के लिए ख्याति प्राप्त करते रहे. कई अवार्ड झालसा को दिलाया और इसको लेकर भी वे काफी चर्चा में बने रहे. गरीबों के लिए झालसा के माध्यम से किए गए अनेक कार्यक्रमों के लिए लगातार चर्चा में बने रहे. इधर पिछले वर्ष कोरोना के वैश्विक संक्रमण काल में भी लोगों की सहायता करने, भूखे लोगों को खाना पहुंचाने, जिनके पास दवा नहीं है उसे दवा पहुंचाने, जो अपने घर से बिछड़ गए हैं उन्हें घर पहुंचाने, जैसे अनेक कार्यों के लिए चर्चा में रहे हैं.
- न्यायमूर्ति हरीश चंद्र मिश्रा 27 मार्च, 1959 को एक बहुत ही सम्मानित परिवार में जन्मे. उनके दादाजी एक प्रसिद्ध शिक्षाविद थे और स्वतंत्रता से पूर्व के दिनों में स्कूल के हेडमास्टर थे और उन्हें 'राय साहब' की उपाधि से भी सम्मानित किया गया था. उनके पिता न्यायमूर्ति विश्वनाथ मिश्रा वर्ष 1981 में पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त हुए.
- उन्होंने साल 1974 में पटना हाई स्कूल से मैट्रिक, आई.एस.सी टी.एन.बी. कॉलेज भागलपुर से और बी.कॉम को-ऑपरेटिव कॉलेज जमशेदपुर से किया. इसके बाद एल.एल.बी. साल 1984 में पटना लॉ कॉलेज से करने के बाद, पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता के रूप में 20 अप्रैल 1984 को बार में शामिल हुए. ज्यादातर रिट पक्ष (विशेष रूप से सेवा मामलों) में प्रैक्टिस की. सिविल और आपराधिक मामलों में भी प्रैक्टिस की. इस अवधि के दौरान वे पटना लॉ जर्नल रिपोर्ट्स के संपादकीय बोर्ड से सक्रिय रूप से जुड़े रहे और कुछ लॉ बुक्स के लेखक भी रहे.
- 1997 में प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से बिहार सुपीरियर ज्यूडिशियल सर्विस में शामिल हुए. 28 मई 1997 को अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश छपरा नियुक्त हुए. जून 2000 में उसी पद पर देवघर स्थानांतरित किया गए.
- 15 नवंबर 2000 को राज्य के विभाजन के बाद, उन्हें झारखंड सुपीरियर न्यायिक सेवा के कैडर में ले लिया गया. 16 जून 2001 से 06 फरवरी 2002 तक, चारा घोटाला मामलों की सुनवाई के लिए अतिरिक्त न्यायिक आयुक्त-सह-विशेष न्यायाधीश, सीबीआई, रांची के रूप में तैनात रहे.
- 11 फरवरी 2002 से 12 फरवरी 2005 तक जिला एवं सत्र न्यायाधीश, देवघर के रूप में पदोन्नत और पदस्थापित रहे. इस अवधि के दौरान, माननीय झारखंड उच्च न्यायालय द्वारा गठित बाबा वैद्यनाथ धाम मंदिर प्रबंधन बोर्ड के सदस्य के रूप में भी कार्य किए. इस अवधि के दौरान बाबा वैद्यनाथ मंदिर, देवघर में कई विकास कार्य किए गए.
- 15 फरवरी 2005 से 26 जुलाई 2006 तक झारखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, रांची के सदस्य सचिव के रूप में काम किया. नालसा की फर्स्ट एवर रीजनल मीट रांची में आयोजित की गई थी, जिसे सभी ने काफी सराहा. कई अन्य सम्मेलनों और बैठकों का भी आयोजन किया.
- 26 जुलाई 2006 से 12 जून 2008 तक वह झारखंड उच्च न्यायालय, 18 जून 2008 से 14 मई 2009 तक जिला एवं सत्र न्यायाधीश, चाईबासा रजिस्ट्रार स्थापना के रूप में काम किए.
- 15 मई 2009 से झारखंड उच्च न्यायालय, रांची के रजिस्ट्रार जनरल के रूप में तैनात रहे.
- 27 अप्रैल 2011 को झारखंड उच्च न्यायालय के एक अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत हुए.
- 31 जनवरी 2013 को झारखंड उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में शपथ ली.
- 30 अगस्त 2019 से 16 नवंबर 2019 तक झारखंड उच्च न्यायालय के माननीय कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्य किए.