रांचीः झारखंड के पहले मुख्यमंत्री रहे बाबूलाल मरांडी भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं. भाजपा विधायक दल ने उन्हें अपना नेता चुना है लेकिन विधानसभा में अब तक उन्हें नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं मिला है. ईटीवी भारत ने बाबूलाल मरांडी से कई मुद्दों पर सवाल किया, जिसका उन्होंने बेबाकी से जवाब दिया है.
'मुख्यमंत्री डिक्टेट करने की कोशिश कर रहे हैं'
झारखंड में इन दिनों सरना धर्म कोड की चर्चा जोरशोर से हो रही है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कहते हैं कि आदिवासी हिंदू नहीं है. आदिवासी आपकी नजर में क्या हैं, इस सवाल का जवाब देते हुए बाबूलाल मरांडी ने कहा कि पूरे देश में आदिवासियों की करीब छह सौ जनजातियों को सूचीबद्ध किया गया है. इन सब की आस्था, विश्वास और पूजा पद्धति अलग-अलग है. उन्होंने कहा कि इन सभी को हिंदू नहीं मानना गलत राजनीति है. किसे कौन सा धर्म मानना चाहिए, इसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता होनी चाहिए. देश में इतनी बड़ी संख्या में आदिवासी हैं और आप कैसे कह सकते हैं कि सब के सब हिंदू नहीं हैं.
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राज्य के मुख्यमंत्री पद पर बैठे हुए व्यक्ति का ऐसा कुछ बोलने पर भ्रम की स्थिति पैदा होगी. वे साढ़े दस करोड़ की आबादी का ठेका कैसे ले सकते हैं? हिंदू किसी एक देवी-देवता को मानने या किसी एक पूजा पद्धति का नाम नहीं है. यहां कोई व्यक्ति किसी भी देवी-देवता को अपना आराध्य बना सकता है. मरांडी ने कहा कि 'मैं तो हिंदू हूं, सनातनी हूं और खांटी संथाल हूं. जैसे हम संथाल हैं तो हम जाहेरथान में पूजा करते हैं, प्रसाद खाते हैं. हमारे गांव में मांझीथान होता है, वहां पूजा होती है.' बहुत से लोग खुद को आदिवासी बताते हैं लेकिन आदिवासियों की संस्कृति को भूल चुके हैं. इस मुद्दे पर अब राजनीति हो रही है और मुख्यमंत्री डिक्टेट करने की कोशिश कर रहे हैं कि पूरे देश के आदिवासी को हिंदू नहीं हैं. व्यक्ति को खुद निर्णय करने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए. अपने संविधान में भी यही परंपरा है लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री यह बोलते हैं कि आदिवासी हिंदू नहीं हैं. यानी मुख्यमंत्री जानबूझकर राजनीति कर रहे हैं या फिर उनको पूरी जानकारी नहीं है.
'राज्य में निवेश का माहौल नहीं'
ईटीवी भारत के ब्यूरोचीफ राजेश सिंह ने बाबूलाल मरांडी से पूछा कि मुख्यमंत्री दिल्ली में स्टेक होल्डर्स कॉन्फ्रेंस करते हैं और निवेश को बढ़ावा देने की बात करते हैं लेकिन दूसरी तरफ निजी कंपनियों में 75% आरक्षण की बात हो रही है. क्या लगता है कि दोनों चीजें साथ चल सकती हैं? इसके जवाब में बाबूलाल मरांडी ने कहा कि आरक्षण तो बाद की बात है, पहले तो राज्य में निवेश का कोई माहौल दिख नहीं रहा है. कोई भी उद्योग धंधा वहां लगाता है, जहां अमन चैन हो और जरूरी चीजें सहजता से उपलब्ध हो. झारखंड में फिलहाल वह स्थिति नहीं है. यहां कानून व्यवस्था बदतर है, ऐसे में निवेश के लिए कौन आएगा.
'अब पत्थलगड़ी की जरूरत नहीं'
हेमंत सरकार की पहली कैबिनेट में यह फैसला हुआ था कि पत्थलगड़ी आंदोलन से जुड़े मामलों में दर्ज एफआईआर वापस ली जाएगी. हालांकि अभी तक किसी को राहत नहीं मिली है. क्या यह राजनीति का मुद्दा है और क्या यह संभव है कि एफआईआर वापस हो जाए? बाबूलाल मरांडी कहते हैं कि यह काम सरकार है लेकिन विषय यह है कि जिस तरह से लोग पत्थलगड़ी कर रहे थे, वो गलत है. मौजूदा सरकार में हाईकोर्ट के सामने पत्थलगड़ी की कोशिश की गई और श्रीश्री रविशंकर को आंवटित जमीन पर पत्थलगड़ी कर दी गई. अगर इसी प्रकार से कहीं भी लोग पत्थर गाड़ देंगे तो यह गलत है.
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बाबूलाल मरांडी ने बताया कि पत्थरगड़ी सीमाना पर किया जाता था क्योंकि वह सीमा को निर्धारित करता था. किसी बुजुर्ग की मौत पर उनकी याद में पत्थर गाड़े जाते थे. लेकिन ऐसे ही कहीं कोई पत्थर गाड़ रहा है तो आज के वक्त में इसकी कोई जरूरत नहीं है. अगर आप का मकसद संविधान के अधिकारोंं को बताना है, तो आप पोस्टर भी लगा सकते हैं. आप इसकी जानकारी इंटरनेट पर भी डालेंगे तो लोग देख सकते हैं. पत्थलगड़ी उस समय की बात है, जब सूचना तंत्र इतना विकसित नहीं था तो पत्थर गाड़ कर जानकारी दी जाती थी. अब पत्थलगड़ी करने वालों को पहले तो समझाना चाहिए और अगर नहीं समझे तो कानून के हिसाब से कार्रवाई होनी चाहिए. जहां तक पत्थरगड़ी के दर्ज मामलों का सवाल है तो इसकी समीक्षा के बाद ही कोई फैसला लिया जाना चाहिए. यदि लोगों ने गलत किया है तो उनको माफी मांगनी चाहिए. ऐसे ही केस वापस करते रहेंगे तो आने वाले कल में फिर से इसी प्रकार की गड़बड़ियां शुरू हो जाएंगी. लिहाजा सरकार को इस पर कोई भी कदम समीक्षा करके उठाना चाहिए.
'स्पीकर ने जेवीएम को जिंदा रखा है'
झारखंड विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के मुद्दे पर बाबूलाल मरांडी ने कहा कि भाजपा ने अपनी जिम्मेदारी निभाई और अपना काम कर दिया. भाजपा विधायक दल का नेता सर्वसम्मति से चुनने के बाद विधानसभा अध्यक्ष को लिखित में दे दिया गया. अब उनका काम था कि उस काम को आगे पूरा करते लेकिन यह बड़े आश्चर्य की बात है कि कार्यमंत्रणा समिति की सूची में झारखंड विकास मोर्चा को दर्शाया गया है. राजनीतिक पार्टी के गठन, संचालन और विलय का अधिकार निर्वाचन आयोग के पास है. जब निर्वाचन आयोग ने झारखंड विकास मोर्चा का विघटन कर दिया और इसकी जानकारी विधानसभा को भेज दी गई, इसके बावजूद सरकार इसको जिंदा रखे हुए है.