रांची: झारखंड विधानसभा की 81 में से 28 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. झारखंड की राजनीति इन 28 सीटों के ईर्द-गिर्द ही घूमती रही हैं. यही वजह है कि 2014 में बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिलने से पहले तक झारखंड की कमान आदिवासी नेताओं के हाथ में ही रही.
आज के चुनावी अभियान में भी सभी पार्टियां खुद को आदिवासी और मूलवासी का असली हिमायती बताते हुए एक दूसरे पर निशाना साधती हैं. बहरहाल, चुनावी माहौल में आपकी दिलचस्पी यह जानने की होगी कि राज्य गठन के बाद से लेकर अब तक अनुसूजित जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों पर किस पार्टी की पकड़ मजबूत या कमजोर रही.
साल 2000 में बीजेपी का 14 एसटी सीटों पर था कब्जा
इसको समझने के लिए संबंधित सीटों पर आए चुनावी नतीजों पर गौर करना होगा. इससे पहले आपको यह बता दें कि नवंबर 2000 में जब झारखंड का गठन हुआ उस वक्त बिहार की कमान राबड़ी देवी के हाथ में थी. उनके कार्यकाल में एकीकृत बिहार में हुए चुनाव के बाद झारखंड में आने वाले 28 एसटी सीटों में से 14 पर बीजेपी का कब्जा था. खास बात है कि उस वक्त अलग राज्य आंदोलन के केंद्र में रही जेएमएम के पास एसटी की महज छह सीटें ही थीं. कांग्रेस का भी छह सीटों पर कब्जा था.
2005 में बीजेपी और जेएमएम में हो गया टाई
झारखंड बनने के बाद साल 2005 में हुए चुनाव के वक्त यहां की राजनीति बदल गई. इस चुनाव में बीजेपी को साल 2000 के चुनाव के मुकाबले पांच सीटों का नुकसान हुआ. बीजेपी 14 से गिरकर 9 सीट पर आ गई. वहीं, तीन सीटों की बढ़त के साथ 9 सीटें लाकर जेएमएम ने बीजेपी की बराबरी कर ली. इस चुनाव में कांग्रेस तीन सीट पर आ गई. आरजेडी को एक सीट मिला. सबसे चौकाने वाली बात थी कि पांच निर्दलीय जीत गए.
2009 में एसटी सीटों पर झामुमो रहा अव्वल
2005 के चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला. जोड़तोड़ और मतलब के गठबंधन की सरकारें बनती रहीं गिरती रहीं. इसका साफ असर 2009 में एसटी सीटों पर दिखा. इस चुनाव में जेएमएम सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. जेएमएम ने 10 एसटी सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि बीजेपी 9 पर ही रह गई. इस चुनाव में बाबूलाल मरांडी की पार्टी जेवीएम ने महेशपुर सीट पर कब्जा जमाकर जेएमएम को बड़ा झटका दिया. हालांकि, संथाल की आठ एसटी सीटों में से 2005 में बोरियो और जामा सीट जीतने वाली बीजेपी अपनी दोनों सीटें जेएमएम को दे बैठी. इस चुनाव तक कांग्रेस दो सीटों पर पहुंच गई.
टॉप पर है जेएमएम
बीजेपी चाहे लाख दावे करे कि जेएमएम ने आदिवासियों को ही छला है, लेकिन इसका असर जेएमएम पर अब तक नहीं दिखा. 2014 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले केंद्र में प्रचंड बहुमत से आई मोदी सरकार भी रिजर्व सीटों पर लोगों का मिजाज नहीं बदल सकी. इतना जरूर है कि 2009 के मुकाबले बीजेपी दो सीटों की बढ़त के साथ 11 पर पहुंच गई, लेकिन जेएमएम ने 2009 के 10 सीटों के मुकाबले तीन सीटों की बढ़त लेकर 13 सीटें हासिल कर ली.
झारखंड की 28 एसटी सीटे
बोरियो, बरहेट, लिट्टीपाड़ा, महेशपुर, शिकारीपाड़ा, दुमका, जामा, घाटशिला, पोटका, सरायकेला, चाईबासा, मझगांव, जगन्नाथपुर, मनोहरपुर, चक्रधरपुर, खरसांवा, तमाड़, तोरपा, खूंटी, खिजरी, मांडर, सिसई, गुमला, बिशुनपुर, सिमडेगा, कोलेबिरा, लोहरदगा और मनिका.
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दिलचल्प बात यह है कि इनमें सात सीटें संथाल परगना में हैं, जहां के आदिवासी वर्ग का झुकाव हमेशा से जेएमएम की ओर रहा है. 2009 के चुनाव के वक्त आलम यह था कि इन सात सीटों में से एक भी सीट बीजेपी नहीं जीत सकी थी. हालांकि, 2014 के मोदी लहर में संथाल की सात एसटी सीटों में से बोरियो और दुमका पर बीजेपी ने जीत दर्ज की. शेष सीटों पर जेएमएम का कब्जा है. इस चुनाव में बीजेपी जेएमएम के गढ़ को ध्वस्त करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है.