मांडर विधानसभा सीट ये वो सीट है जिस पर बीजेपी को जीत दर्ज करने में 35 साल लग गए. दरअसल, भारतीय जनता पार्टी का गठन 1980 में हुआ था. तब से लेकर 2014 के चुनाव के पहले तक मांडर विधानसभा सीट पर कांग्रेस, क्षेत्रीय पार्टी और निर्दलीयों का कब्जा रहा.
बीजेपी प्रत्याशी की जमानत जब्त
1980 में बीजेपी के गठन के बाद पार्टी ने कैलाश उरांव को प्रत्याशी बनाया, लेकिन उनकी जमानत जब्त हो गई. तब जीत कांग्रेस के करमचंद भगत की हुई थी. 1985 में कांग्रेस ने महात्मा गांधी के अनुयायी कहे जाने वाले गंगा टाना भगत को करमचंद की जगह टिकट दिया. इससे नाराज करमचंद भगत बतौर निर्दलीय मैदान में उतर गए, लेकिन उन्हें हार हाथ लगी, जबकि इसबार भी बीजेपी के झारी उरांव की जमानत जब्त हो गयी.
1990 में करमचंद भगत की हुई जीत
हालत यह हो गयी कि 1990 के चुनाव में बीजेपी ने यहां अपना प्रत्याशी तक नहीं उतारा. इस चुनाव में करमचंद भगत जनता दल में शामिल हो चुके थे. उन्होंने चुनाव जीतकर गंगा टाना भगत से हुई पिछली हार का बदला ले लिया. हालांकि, इस चुनाव में जेएमएम के विश्वनाथ भगत दूसरे स्थान पर रहे और उन्होंने 1995 के चुनाव में जनता दल के करमचंद भगत को हराकर यह सीट जेएमएम की झोली में डाल दी.
बंधु तिर्की की हुई जीत
साल 2000 के चुनाव में बीजेपी को सिर्फ इतना माइलेज मिला कि दिवाकर मिंज के नेतृत्व में पार्टी दूसरे स्थान पर आ गई. वैसे इस चुनाव में कांग्रेस, देवकुमार धान के जरिए जीत दर्ज कर कमबैक कर चुकी थी. 2005 का चुनाव आते-आते झारखंड की राजनीति बदल चुकी थी. डोमिसाइल के नाम पर बंधु तिर्की अपनी पहचान बना चुके थे. लिहाजा, यहां की जनता ने तमाम बड़ी पार्टियों को दरकिनार कर 2005 और 2009 के चुनाव में निर्दलीय रहे बंधु तिर्की को आशीर्वाद देकर जीता दिया.
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2014 में बीजेपी का खुला खाता
खास बात है कि 2009 के चुनाव में बीजेपी ने अनिल उरांव पर दाव आजमाया, लेकिन उनकी भी जमानत जब्त हो गयी थी. मांडर विधानसभा सीट बीजेपी के लिए सपने की तरह हो गयी थी. इसी बीच 2014 में मोदी लहर के बीच बीजेपी ने गंगोत्री कुजूर के रूप में महिला प्रत्याशी को मैदान में उतारा. इसबार बंधु तिर्की को त्रृणमूल कांग्रेस का साथ मिला, लेकिन गंगोत्री कुजूर यहां कमल खिलाने में सफल रहीं. खास बात यह रही कि मांडर सीट पर पहली बार कांग्रेस प्रत्याशी की जमानत जब्त हुई.