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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी है यहां की पूजा, झारखंड में अलग महत्व रखता है ऐतिहासिक बड़कागढ़

रांची के जगन्नाथपुर स्थित बड़कागढ़ में भी ऐतिहासिक मान्यताओं के साथ देवी की आराधना की जा रही है. यहां 1880 से दुर्गा पूजा की शुरुआत हुई , ठाकुरानी बाणेश्वरी कुंवर के निवास बड़कागढ़ जगन्नाथपुर में मां चिंतामणि की पूजा हर दिन तांत्रिक पूजा पद्धति से की जाती है. पान के पत्ते में मां की आकृति बनाकर यहां पूजा-अर्चना करने की परंपरा है.

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Published : Oct 24, 2020, 9:32 PM IST

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दुर्गा पूजा

रांची: भले ही दुर्गोत्सव में कोरोना का साया हो. इसके बावजूद लोगों में उत्साह देखा जा रहा है. कहीं पारंपरिक रीति-रिवाज से मां दुर्गे की आराधना की जा रही है तो कहीं तांत्रिक विधि से मां शक्ति की आवाहन किया जा रहा है. रांची में भी मां के भक्त अपने अपने तरीके से मां की पूजा-अर्चना में लीन हैं. ऐसे में रांची के जगन्नाथपुर स्थित बड़कागढ़ में भी ऐतिहासिक मान्यताओं के साथ देवी की आराधना की जा रही है.

देखें पूरी खबर
रांची के ऐतिहासिक बड़कागढ़ में प्राचीन देवी का घर है. जहां पर 1880 से दुर्गा पूजा की शुरुआत हुई, ठाकुरानी बाणेश्वरी कुंवर के निवास बड़कागढ़ जगन्नाथपुर में मां चिंतामणि की पूजा हर दिन तांत्रिक पूजा पद्धति से की जाती है. पान के पत्ते में मां की आकृति बनाकर यहां पूजा-अर्चना करने की परंपरा है. प्रत्येक वर्ष पान के पत्ते से प्रारूप का निर्माण स्थानीय निवासी चामू ठाकुर और उनके परिवार द्वारा किया जाता रहा है. पीढ़ी दर पीढ़ी नाई परिवार के लोग ही पान के पत्तों से मां की प्रारूप तैयार करता है और उनकी पूजा-अर्चना की जाती है. परंपरा ऐसी भी है कि मां भगववती डोली में बैठकर देवी घर में आती हैं. मुस्लिम समाज के लोग सदियों से मां के आगमन को लेकर तैयारियां करते आ रहे हैं. इनका काम पालकी परिचालन के दौरान रास्ते में किसी तरह की मां को कठिनाई ना हो उसकी विधि-व्यवस्था मुस्लिम परिवार के लोग करते हैं. पूरे रास्ते की सफाई के साथ-साथ स्वच्छता का ख्याल भी मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा ही रखा जाता है.

ये भी पढ़ें- जमशेदपुर: पश्चिम बंगाल और ओडिशा के लोगों ने धूम-धाम से मनाई महाअष्टमी


जानकर यह भी कहते हैं
इतिहास यह भी कहता है कि 1857 के विद्रोह से यहां पूजा की शुरुआत हुई. 1857 में जब ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव को अंग्रेजों द्वारा फांसी दी गई थी. उसके बाद इस वियोग में ठाकुरानी बाणेश्वरी कुंवर अज्ञातवास में चली गई और 12 वर्षों के बाद जब वह सबके सामने आई. तो उसी समय से उन्होंने पूजा की शुरुआत की और उस दौरान मुस्लिम समुदाय के लोगों के साथ-साथ नाई परिवार ने भी इस पूजा अर्चना में उनकी मदद की थी और तब से यह परंपरा चली आ रही है.

रांची: भले ही दुर्गोत्सव में कोरोना का साया हो. इसके बावजूद लोगों में उत्साह देखा जा रहा है. कहीं पारंपरिक रीति-रिवाज से मां दुर्गे की आराधना की जा रही है तो कहीं तांत्रिक विधि से मां शक्ति की आवाहन किया जा रहा है. रांची में भी मां के भक्त अपने अपने तरीके से मां की पूजा-अर्चना में लीन हैं. ऐसे में रांची के जगन्नाथपुर स्थित बड़कागढ़ में भी ऐतिहासिक मान्यताओं के साथ देवी की आराधना की जा रही है.

देखें पूरी खबर
रांची के ऐतिहासिक बड़कागढ़ में प्राचीन देवी का घर है. जहां पर 1880 से दुर्गा पूजा की शुरुआत हुई, ठाकुरानी बाणेश्वरी कुंवर के निवास बड़कागढ़ जगन्नाथपुर में मां चिंतामणि की पूजा हर दिन तांत्रिक पूजा पद्धति से की जाती है. पान के पत्ते में मां की आकृति बनाकर यहां पूजा-अर्चना करने की परंपरा है. प्रत्येक वर्ष पान के पत्ते से प्रारूप का निर्माण स्थानीय निवासी चामू ठाकुर और उनके परिवार द्वारा किया जाता रहा है. पीढ़ी दर पीढ़ी नाई परिवार के लोग ही पान के पत्तों से मां की प्रारूप तैयार करता है और उनकी पूजा-अर्चना की जाती है. परंपरा ऐसी भी है कि मां भगववती डोली में बैठकर देवी घर में आती हैं. मुस्लिम समाज के लोग सदियों से मां के आगमन को लेकर तैयारियां करते आ रहे हैं. इनका काम पालकी परिचालन के दौरान रास्ते में किसी तरह की मां को कठिनाई ना हो उसकी विधि-व्यवस्था मुस्लिम परिवार के लोग करते हैं. पूरे रास्ते की सफाई के साथ-साथ स्वच्छता का ख्याल भी मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा ही रखा जाता है.

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जानकर यह भी कहते हैं
इतिहास यह भी कहता है कि 1857 के विद्रोह से यहां पूजा की शुरुआत हुई. 1857 में जब ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव को अंग्रेजों द्वारा फांसी दी गई थी. उसके बाद इस वियोग में ठाकुरानी बाणेश्वरी कुंवर अज्ञातवास में चली गई और 12 वर्षों के बाद जब वह सबके सामने आई. तो उसी समय से उन्होंने पूजा की शुरुआत की और उस दौरान मुस्लिम समुदाय के लोगों के साथ-साथ नाई परिवार ने भी इस पूजा अर्चना में उनकी मदद की थी और तब से यह परंपरा चली आ रही है.

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