रांचीः रांची विश्वविद्यालय से अलग होकर डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय (डीएसपीएमयू) का गठन हुआ था. गठन के बाद से ही इस विश्वविद्यालय को बेहतर बनाने को लेकर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप किया गया. लेकिन विद्यार्थियों के अनुपात में शिक्षकों की नियुक्ति नहीं की गई. इसका प्रभाव विश्वविद्यालय के पठन-पाठन पर पड़ रहा है. स्थिति यह है कि नये कोर्स संचालित किये जा रहे हैं. लेकिन पढ़ाने वाले शिक्षक नहीं है.
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झारखंड के सभी सरकारी विश्वविद्यालयों के साथ-साथ डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय में भी शिक्षक और प्रोफेसरों की कमी है. विश्वविद्यालय में शिक्षकों के 50 पद वर्षों से खाली हैं. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने भी इस पर गहरी चिंता जताई है. इसके बावजूद झारखंड में यूजीसी गाइडलाइन का समुचित पालन नहीं किया जा रहा है. यूजीसी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के रिक्त पदों पर नियुक्ति की अपडेट जानकारी मांग रही है. इसके बावजूद राज्य के विश्वविद्यालय अपडेट जानकारी नहीं दे रहे है.
राज्यपाल रमेश बैस ने शिक्षकों के रिक्त पदों पर गहरी चिंता व्यक्त की है और जेपीएससी के साथ-साथ उच्च शिक्षा विभाग को भी इस रिक्त पदों पर नियुक्ति करने का निर्देश दिया है. राज्यपाल ने एक मीटिंग के दौरान कहा था कि इतने कम शिक्षकों से विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में पढ़ाई कैसे संभव हो पा रही है.
बता दें कि 13 सालों से स्थाई शिक्षकों की नियुक्ति विश्वविद्यालयों में ना के बराबर है. शिक्षकों के नियमित पदों पर तो नियुक्ति हुई ही नहीं है. राज्य बनने के बाद मात्र एक बार 2008 में झारखंड लोक सेवा आयोग ने एक साथ 745 पदों पर नियुक्ति के लिए परीक्षा आयोजित की थी. हालांकि, यह परीक्षा भी विवादों में फंसी और सीबीआई जांच में इस परीक्षा में गड़बड़ियों की बात प्रमाणित भी हुई. इसके बाद से विश्वविद्यालय में कभी नियमित बहाली नहीं हुई है.
डॉ श्याम प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय में शिक्षकों के 165 सृजित हैं, जिसमें सिर्फ 40 से 42 शिक्षक कार्यरत हैं. विश्वविद्यालय के नवनियुक्त कुलपति तपन कुमार शांडिल्य कहा है कि राज्य में यूजीसी गाइडलाइन का पालन नहीं हो रहा है. इसी वजह से शिक्षकों की कमी है. उन्होंने कहा कि शिक्षकों की कमी को दूर नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में समस्या बढ़ जायेगी. विद्यार्थियों ने बताया कि शिक्षक नहीं होने से पठन-पाठन लगातार प्रभावित हो रही है. क्लास में बच्चे तो रहते हैं. लेकिन संबंधित विषय पढ़ाने के लिए शिक्षक नहीं रहते हैं.