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अब आसान नहीं होगा पुलिसवालों को सस्पेंड करना, डीजीपी के आदेश पर नई गाइडलाइन जारी - रांची में पुलिसकर्मियों के निलंबन पर नए दिशा निर्देश

झारखंड पुलिस में अब सिपाही से लेकर इंस्पेक्टर रैंक तक के पुलिसकर्मियों को निलंबित करना आसान नहीं होगा. बता दें कि झारखंड के डीजीपी एमवी राव ने इस संबंध में नए आदेश जारी किए हैं.

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रांची पुलिस
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Published : Jun 25, 2020, 10:46 PM IST

रांची: झारखंड पुलिस में अब छोटे-छोटे आरोप लगाकर सिपाही से लेकर इंस्पेक्टर रैंक तक के पुलिसकर्मियों को निलंबित करना आसान नहीं होगा. पुलिसकर्मियों को निलंबित किए जाने के कई मामले गलत पाए जाने के बाद झारखंड के डीजीपी एमवी राव ने इस संबंध में आदेश जारी किया है कि बिना पूरी जांच के ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की जाए.

देखें पूरी खबर
जारी हुआ आदेश
डीजीपी के आदेश के बाद आईजी ट्रेनिंग प्रिया दुबे ने इस संबंध में आदेश जारी कर इसकी जानकारी सभी जोन के डीआईजी और इकाइयों के डीआईजी को भेज दी है. आदेश में जिक्र है कि कई बार एसपी और डीआईजी की ओर से सिपाही से लेकर इंस्पेक्टर रैंक के कर्मियों को प्रथम दृष्टया आरोप में निलंबित कर दिया जाता है. इसके बाद बगैर जांच ऐसे कर्मियों को तुरंत निलंबन से मुक्त भी कर दिया जाता है, साथ ही कई बार कई आरोपों में जल्दबाजी दिखाते हुए संचिका भी भेज दी जाती है. वहीं, कई मामलों में अनावश्यक रूप से पुलिसकर्मियों को लंबे समय तक निलंबित रखा जाता है, जिससे पुलिसकर्मियों के काम पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.

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अब किन परिस्थितियों में होगा निलंबन
डीजीपी एमवी राव ने बताया कि अब निलंबन केवल उन्हीं मामले में होगा जिसमें ऐसा लगे कि संबंधित पुलिसकर्मी के वहां होने से जांच प्रभावित हो सकता है. अगर कोई पुलिस अधिकारी कोर्ट में झूठा साक्ष्य देने का दोषी विभाग में पाया जाता है तब भी उसे पूर्व में निलंबित नहीं किया जा सकता है, जब तक इस मामले में कोर्ट का फैसला न आ जाए. आदेश में जिक्र है कि कोर्ट के फैसले से पूर्व अगर किसी पुलिसकर्मी को निलंबित किए जाने से यह ज्ञात होता है कि कोर्ट के निर्णय पर प्रतिकूल प्रभाव डालने की कोशिश हो रही है, तब इसमें अधिकारी अपने स्वविवेक से निर्णय ले सकते हैं. यदि किसी पुलिसकर्मी के ऑन ड्यूटी रहने पर केस के अनुसंधान में प्रभाव डालता है तो उसे निलंबित न करके उसका स्थानांतरण कर देना चाहिए. इंस्पेक्टर स्तर के अधिकारी को निलंबन करने से पूर्व इसकी जानकारी एसपी को डीआईजी को देनी होगी.

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निलंबन नहीं, काम लेना ज्यादा जरूरी
झारखंड के डीजीपी के अनुसार, किसी भी पुलिसकर्मी को दंड स्वरूप निलंबित नहीं किया जाना चाहिए. निलंबन का उद्देश्य सिर्फ इतना ही है कि वह जांच को प्रभावित न कर सके. निलंबित किए जाने से पहले संबंधित अधिकारी के विरूद्ध लगे आरोप की गंभीरता पर भी ध्यान देना होगा. यदि जांच के बाद बर्खास्तगी की कार्रवाई की संभावना हो तभी पुलिस अधिकारी को निलंबित किया जाना चाहिए. यदि कोई पुलिसकर्मी किसी मामले में जेल जाता है, तब जेल भेजे जाने की अवधि में उसे निलंबित किया जाएगा. जमानत पर छूटने के बाद उसे निलंबन में तभी रखा जाएगा यदि वह केस को प्रभावित करने की कोशिश करता है.

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डीजीपी ने 30 जून तक रिपोर्ट मांगी
इस मामले को लेकर डीजीपी एमबी राव ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि सभी डीआईजी अपने क्षेत्राधिकार में निलंबित हुए सारे पुलिसकर्मियों के मामलों की समीक्षा करें. समीक्षा में अगर कोई पुलिसकर्मी बेवजह निलंबित पाया जाए तो उसे तत्काल निलंबन मुक्त करें. पूरे मामले में डीजीपी ने 30 जून तक रिपोर्ट भी मांगी है.

रांची: झारखंड पुलिस में अब छोटे-छोटे आरोप लगाकर सिपाही से लेकर इंस्पेक्टर रैंक तक के पुलिसकर्मियों को निलंबित करना आसान नहीं होगा. पुलिसकर्मियों को निलंबित किए जाने के कई मामले गलत पाए जाने के बाद झारखंड के डीजीपी एमवी राव ने इस संबंध में आदेश जारी किया है कि बिना पूरी जांच के ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की जाए.

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जारी हुआ आदेश
डीजीपी के आदेश के बाद आईजी ट्रेनिंग प्रिया दुबे ने इस संबंध में आदेश जारी कर इसकी जानकारी सभी जोन के डीआईजी और इकाइयों के डीआईजी को भेज दी है. आदेश में जिक्र है कि कई बार एसपी और डीआईजी की ओर से सिपाही से लेकर इंस्पेक्टर रैंक के कर्मियों को प्रथम दृष्टया आरोप में निलंबित कर दिया जाता है. इसके बाद बगैर जांच ऐसे कर्मियों को तुरंत निलंबन से मुक्त भी कर दिया जाता है, साथ ही कई बार कई आरोपों में जल्दबाजी दिखाते हुए संचिका भी भेज दी जाती है. वहीं, कई मामलों में अनावश्यक रूप से पुलिसकर्मियों को लंबे समय तक निलंबित रखा जाता है, जिससे पुलिसकर्मियों के काम पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.

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अब किन परिस्थितियों में होगा निलंबन
डीजीपी एमवी राव ने बताया कि अब निलंबन केवल उन्हीं मामले में होगा जिसमें ऐसा लगे कि संबंधित पुलिसकर्मी के वहां होने से जांच प्रभावित हो सकता है. अगर कोई पुलिस अधिकारी कोर्ट में झूठा साक्ष्य देने का दोषी विभाग में पाया जाता है तब भी उसे पूर्व में निलंबित नहीं किया जा सकता है, जब तक इस मामले में कोर्ट का फैसला न आ जाए. आदेश में जिक्र है कि कोर्ट के फैसले से पूर्व अगर किसी पुलिसकर्मी को निलंबित किए जाने से यह ज्ञात होता है कि कोर्ट के निर्णय पर प्रतिकूल प्रभाव डालने की कोशिश हो रही है, तब इसमें अधिकारी अपने स्वविवेक से निर्णय ले सकते हैं. यदि किसी पुलिसकर्मी के ऑन ड्यूटी रहने पर केस के अनुसंधान में प्रभाव डालता है तो उसे निलंबित न करके उसका स्थानांतरण कर देना चाहिए. इंस्पेक्टर स्तर के अधिकारी को निलंबन करने से पूर्व इसकी जानकारी एसपी को डीआईजी को देनी होगी.

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निलंबन नहीं, काम लेना ज्यादा जरूरी
झारखंड के डीजीपी के अनुसार, किसी भी पुलिसकर्मी को दंड स्वरूप निलंबित नहीं किया जाना चाहिए. निलंबन का उद्देश्य सिर्फ इतना ही है कि वह जांच को प्रभावित न कर सके. निलंबित किए जाने से पहले संबंधित अधिकारी के विरूद्ध लगे आरोप की गंभीरता पर भी ध्यान देना होगा. यदि जांच के बाद बर्खास्तगी की कार्रवाई की संभावना हो तभी पुलिस अधिकारी को निलंबित किया जाना चाहिए. यदि कोई पुलिसकर्मी किसी मामले में जेल जाता है, तब जेल भेजे जाने की अवधि में उसे निलंबित किया जाएगा. जमानत पर छूटने के बाद उसे निलंबन में तभी रखा जाएगा यदि वह केस को प्रभावित करने की कोशिश करता है.

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डीजीपी ने 30 जून तक रिपोर्ट मांगी
इस मामले को लेकर डीजीपी एमबी राव ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि सभी डीआईजी अपने क्षेत्राधिकार में निलंबित हुए सारे पुलिसकर्मियों के मामलों की समीक्षा करें. समीक्षा में अगर कोई पुलिसकर्मी बेवजह निलंबित पाया जाए तो उसे तत्काल निलंबन मुक्त करें. पूरे मामले में डीजीपी ने 30 जून तक रिपोर्ट भी मांगी है.

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