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नक्सलियों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई, जवानों के लिए वज्रपात, मच्छर और सांप बन गए हैं नए दुश्मन - नक्सली हमला

झारखंड के बीहड़ जंगलों में नक्सलियों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान में शामिल जवानों के लिए वज्रपात, मच्छर और सांप नए दुश्मन बन गए हैं. बरसात नक्सल ऑपरेशन में लगे जवानों के लिए आफत बना हुआ है.

नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन
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Published : Jun 30, 2019, 2:45 PM IST

रांची: झारखंड के सरायकेला में नक्सली हमले में अपने शहीद जवानों का बदला लेने के लिए राज्य पुलिस नक्सलियों के खिलाफ पुलिस निर्णायक लड़ाई लड़ रही है. यह लड़ाई अब वैसे इलाकों में चल पड़ी है जहां पुलिस के लिए पहुंचना काफी मुश्किल है. क्योंकि नक्सलियों ने अपने बचे खुचे इलाकों की जबरदस्त किलेबंदी की है. जोरदार बरसात इस काम में नक्सलियों के लिए सहायक हो रहा है. वहीं यह बरसात नक्सल ऑपरेशन में लगे जवानों के लिए आफत बना हुआ है.

नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन


वज्रपात, मच्छर और सांप से परेशान हैं जवान
बरसात में जंगलों के बीच मलेरिया, आसमानी बिजली और सांप- बिच्छू से बचते-बचाते जवान नक्सलियों को सबक सीखा रहे हैं. हालांकि जंगल में जवानों को नक्सलियों से कम मलेरिया के मच्छरों से ज्यादा डर लगने लगा है. यही कारण है कि नक्सल अभियान के दौरान जंगलों में नक्सलियों से खुद को बचाने के साथ-साथ मच्छरों से बचाव के कई उपाय करने पड़ते हैं. बरसात के मौसम में जंगल में अभियान चलाने के दौरान जवानों को कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. इस दौरान नदी में पानी बढ़ जाता है, जिसके बाद जवानों को नक्सलियों के बिछाए गए लैंडमाइंस से होकर गुजरना पड़ता है.


बिजली कड़कने से लैंड माइंस में हो जाता है विस्फोट
बरसात का मौसम जवानों के लिए केवल आफत लेकर ही आता है. एक तो उन्हें अक्सर वज्रपात का खतरा बना रहता है. इस दौरान अगर लैंड माइंस वाले इलाके में वज्रपात होता है तो लैंडमाइंस अपने आप विस्फोट हो जाता है. इसमें भी जान जाने का खतरा बना रहता है. इसके अलावा बरसात के मौसम में शाम होते ही नेटवर्क की समस्या भी खड़ी हो जाती है. इस दौरान जवान किसी से संपर्क नहीं कर पाते हैं.

तड़ित चालक बेअसर
जवानों को वज्रपात से बचने के लिए तड़ित चालक दिया गया है. लेकिन जंगल में वह भी काम नहीं करता है. पिछले साल पलामू में वर्जपात से 5 कोबरा के जवान बुरी तरह से जख्मी हो गए थे.

बीहड़ों में चल रहा ऑपरेशन
सरायकेला में हुए नक्सली हमले के बाद झारखंड पुलिस का सबसे ज्यादा फोकस इन्हीं इलाकों में है. यह वे इलाके हैं जो घनघोर जंगलों से घिरे हुए हैं. इन जंगलों के बीहड़ों में नक्सलियों ने अपना ठिकाना बना रखा है. बता दें कि वर्तमान में झारखंड पुलिस के जवान झारखंड-छत्तीसगढ़, झारखंड-बंगाल, झारखंड-ओडिशा और झारखंड-बिहार सीमा पर नक्सल विरोधी अभियान में जुटे हैं. बूढ़ा पहाड़, सारंडा और घाटशिला के जंगल सहित नक्सल प्रभावित जिलों में भी पुलिस की अलग-अलग टुकड़ी अभियान में जुटी है, जहां बरसात के चलते अभियान चलाने में परेशानी हो रही है.

झारखंड जगुआर के सभी मारक दस्ते में दो-दो पारा मेडिकल कर्मी
झारखंड पुलिस के आइजी ऑपरेशन आशीष बत्रा ने बताया कि नक्सल विरोधी अभियान में बरसात कतई बाधक नहीं है. इसका अभियान पर कोई असर नहीं है. सभी जवानों को जंगलों में होने वाली समस्या से संबंधित मेडिकल किट, मच्छरदानी, लोशन और उपकरण उपलब्ध करवाए गए हैं, ताकि वे हर परिस्थिति से खुद को सुरक्षित रख सकें.

ये भी पढ़ें- नशे में धुत पोस्टमास्टर साहब की अजीबो गरीब हरकत, नंग-धड़ंग पड़े मिले ड्यूटी के दौरान

मेडिकल सुविधा

नक्सलियों के खिलाफ झारखंड जगुआर के 40 मारक दस्ता (असाल्ट ग्रुप) जंगलों में घुसे हुए हैं, जिन्हें मेडिकल सुविधा उपलब्ध कराने के लिए अलग से प्रत्येक ग्रुप में दो-दो पारा मेडिकल कर्मी दिए गए हैं. ये कर्मी पूरी तरह प्रशिक्षित हैं. आईजी के अनुसार कुछ घटनाएं जरूर हुई हैं, लेकिन इससे अभियान पर कोई फर्क नहीं पड़ा है. जवानों को कैंप से निकलने के दौरान क्लोरोक्वीन, प्रीमाक्वीन, एसीटी काम्बी ब्लिस्टर के साथ आरडी किट और लोशन आदि भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं. जहां दवा की कमी से संबंधित शिकायतें मिली हैं, वहां तुरंत जवानों को दवा उपलब्ध कराने को कहा गया है.

रांची: झारखंड के सरायकेला में नक्सली हमले में अपने शहीद जवानों का बदला लेने के लिए राज्य पुलिस नक्सलियों के खिलाफ पुलिस निर्णायक लड़ाई लड़ रही है. यह लड़ाई अब वैसे इलाकों में चल पड़ी है जहां पुलिस के लिए पहुंचना काफी मुश्किल है. क्योंकि नक्सलियों ने अपने बचे खुचे इलाकों की जबरदस्त किलेबंदी की है. जोरदार बरसात इस काम में नक्सलियों के लिए सहायक हो रहा है. वहीं यह बरसात नक्सल ऑपरेशन में लगे जवानों के लिए आफत बना हुआ है.

नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन


वज्रपात, मच्छर और सांप से परेशान हैं जवान
बरसात में जंगलों के बीच मलेरिया, आसमानी बिजली और सांप- बिच्छू से बचते-बचाते जवान नक्सलियों को सबक सीखा रहे हैं. हालांकि जंगल में जवानों को नक्सलियों से कम मलेरिया के मच्छरों से ज्यादा डर लगने लगा है. यही कारण है कि नक्सल अभियान के दौरान जंगलों में नक्सलियों से खुद को बचाने के साथ-साथ मच्छरों से बचाव के कई उपाय करने पड़ते हैं. बरसात के मौसम में जंगल में अभियान चलाने के दौरान जवानों को कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. इस दौरान नदी में पानी बढ़ जाता है, जिसके बाद जवानों को नक्सलियों के बिछाए गए लैंडमाइंस से होकर गुजरना पड़ता है.


बिजली कड़कने से लैंड माइंस में हो जाता है विस्फोट
बरसात का मौसम जवानों के लिए केवल आफत लेकर ही आता है. एक तो उन्हें अक्सर वज्रपात का खतरा बना रहता है. इस दौरान अगर लैंड माइंस वाले इलाके में वज्रपात होता है तो लैंडमाइंस अपने आप विस्फोट हो जाता है. इसमें भी जान जाने का खतरा बना रहता है. इसके अलावा बरसात के मौसम में शाम होते ही नेटवर्क की समस्या भी खड़ी हो जाती है. इस दौरान जवान किसी से संपर्क नहीं कर पाते हैं.

तड़ित चालक बेअसर
जवानों को वज्रपात से बचने के लिए तड़ित चालक दिया गया है. लेकिन जंगल में वह भी काम नहीं करता है. पिछले साल पलामू में वर्जपात से 5 कोबरा के जवान बुरी तरह से जख्मी हो गए थे.

बीहड़ों में चल रहा ऑपरेशन
सरायकेला में हुए नक्सली हमले के बाद झारखंड पुलिस का सबसे ज्यादा फोकस इन्हीं इलाकों में है. यह वे इलाके हैं जो घनघोर जंगलों से घिरे हुए हैं. इन जंगलों के बीहड़ों में नक्सलियों ने अपना ठिकाना बना रखा है. बता दें कि वर्तमान में झारखंड पुलिस के जवान झारखंड-छत्तीसगढ़, झारखंड-बंगाल, झारखंड-ओडिशा और झारखंड-बिहार सीमा पर नक्सल विरोधी अभियान में जुटे हैं. बूढ़ा पहाड़, सारंडा और घाटशिला के जंगल सहित नक्सल प्रभावित जिलों में भी पुलिस की अलग-अलग टुकड़ी अभियान में जुटी है, जहां बरसात के चलते अभियान चलाने में परेशानी हो रही है.

झारखंड जगुआर के सभी मारक दस्ते में दो-दो पारा मेडिकल कर्मी
झारखंड पुलिस के आइजी ऑपरेशन आशीष बत्रा ने बताया कि नक्सल विरोधी अभियान में बरसात कतई बाधक नहीं है. इसका अभियान पर कोई असर नहीं है. सभी जवानों को जंगलों में होने वाली समस्या से संबंधित मेडिकल किट, मच्छरदानी, लोशन और उपकरण उपलब्ध करवाए गए हैं, ताकि वे हर परिस्थिति से खुद को सुरक्षित रख सकें.

ये भी पढ़ें- नशे में धुत पोस्टमास्टर साहब की अजीबो गरीब हरकत, नंग-धड़ंग पड़े मिले ड्यूटी के दौरान

मेडिकल सुविधा

नक्सलियों के खिलाफ झारखंड जगुआर के 40 मारक दस्ता (असाल्ट ग्रुप) जंगलों में घुसे हुए हैं, जिन्हें मेडिकल सुविधा उपलब्ध कराने के लिए अलग से प्रत्येक ग्रुप में दो-दो पारा मेडिकल कर्मी दिए गए हैं. ये कर्मी पूरी तरह प्रशिक्षित हैं. आईजी के अनुसार कुछ घटनाएं जरूर हुई हैं, लेकिन इससे अभियान पर कोई फर्क नहीं पड़ा है. जवानों को कैंप से निकलने के दौरान क्लोरोक्वीन, प्रीमाक्वीन, एसीटी काम्बी ब्लिस्टर के साथ आरडी किट और लोशन आदि भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं. जहां दवा की कमी से संबंधित शिकायतें मिली हैं, वहां तुरंत जवानों को दवा उपलब्ध कराने को कहा गया है.

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झारखंड के सरायकेला में नक्सली हमले में अपने शहीद जवानों का बदला लेने के लिए राज्य पुलिस नक्सलियों के खिलाफ पुलिस निर्णायक लड़ाई लड़ रही है ।यह लड़ाई अब वैसे इलाकों में चल पड़ी है ,जहां पुलिस के लिए पहुंचना काफी मुश्किल है। क्योंकि नक्सलियों ने अपने बचे खुचे इलाको की जबरदस्त किलेबंदी की है। जोरदार बरसात इस काम में नक्सलियों के लिए सहायक हो रहा है ।वहीं यह बरसात नक्सल ऑपरेशन में लगे जवानों के लिए आफत बना हुआ है।


वर्जपात , मच्छर और साँप से परेसान है जवान 

बरसात में जंगलों के बीच मलेरिया ,आसमानी बिजली और साँप - बिच्छू से बचते-बचाते जवान नक्सलियों को सबक सीखा रहे है। हालांकि जंगल में जवानों को नक्सलियों से कम मलेरिया के मच्छरों से ज्यादा डर लगने लगा है। यही कारण है कि नक्सल अभियान के दौरान जंगलों में नक्सलियों से खुद को बचाने के साथ-साथ मच्छरों से बचाव के कई उपाय करने पड़ते हैं। बरसात के मौसम में जंगल में अभियान चलाने के दौरान जवानों को कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है ।इस दौरान नदी में पानी बढ़ जाता है जिसके बाद जवानों को नक्सलियों के बिछाए गए लैंडमाइंस से होकर गुजरना पड़ता है।


बिजली कड़कने से लैंड माइंस में हो जाता है विस्फोट 

बरसात का मौसम जवानों के लिए केवल आफत लेकर ही आता है ।एक तो उन्हें अक्सर ब्रजपात का खतरा बना रहता है ।इस दौरान अगर लैंड माइंस वाले इलाके में  वर्जपात होता है तो लैंडमाइंस अपने आप विस्फोट हो जाता है। इस में भी जान जाने का खतरा बना रहता है ।इसके अलावा बरसात के मौसम में शाम होते ही नेटवर्क की समस्या भी खड़ी हो जाती है इस दौरान जवान किसी से संपर्क नहीं कर पाते हैं।

तड़ित चालक बेअसर 
जवानों को वज्रपात से बचने के लिए तड़ित चालक दिया गया है। लेकिन जंगल में वह भी काम नहीं करता है ।पिछले साल पलामू में वर्जपात से 5 कोबरा के जवान बुरी तरह से जख्मी हो गए ।

बीहड़ो में चल रहा ऑपरेशन
सरायकेला में हुए नक्सली हमले के बाद झारखंड पुलिस का सबसे ज्यादा फोकस इन्हीं इलाकों में है। यह वे इलाके हैं जो घनघोर जंगलों से घिरे हुए हैं। इन जंगलों के बीहड़ों में नक्सलियों ने अपना ठिकाना बना रखा है.गौरतलब है कि वर्तमान में झारखंड पुलिस के जवान झारखंड-छत्तीसगढ़, झारखंड-बंगाल, झारखंड-ओडिशा व झारखंड-बिहार सीमा पर नक्सल विरोधी अभियान में जुटे हैं। बूढ़ा पहाड़, सारंडा व घाटशिला के जंगल सहित नक्सल प्रभावित जिलों में भी पुलिस की अलग-अलग टुकड़ी अभियान में जुटी है, जहां बरसात के चलते अभियान चलाने में परेशानी हो रही है।

झारखंड जगुआर के सभी मारक दस्ते में दो-दो पारा मेडिकल कर्मी 
झारखंड पुलिस के आइजी ऑपरेशन आशीष बत्रा ने बताया कि नक्सल विरोधी अभियान में बरसात कतई बाधक नहीं है। इसका अभियान पर कोई असर नहीं है। सभी जवानों को जंगलों में होने वाली समस्या से संबंधित मेडिकल किट, मच्छरदानी, लोशन व उपकरण उपलब्ध करवाए गए हैं ताकि वे हर परिस्थिति से खुद को सुरक्षित रख सकें। नक्सलियों के खिलाफ झारखंड जगुआर के 40 मारक दस्ता (असाल्ट ग्रुप) जंगलों में घुसे हुए हैं, जिन्हें मेडिकल सुविधा उपलब्ध कराने के लिए अलग से प्रत्येक ग्रुप में दो-दो पारा मेडिकल कर्मी दिए गए हैं। ये कर्मी पूरी तरह प्रशिक्षित हैं। आई जी के अनुसार कुछ घटनाएं जरूर हुई है लेकिन इससे अभियान पर कोई फर्क नहीं पड़ा है। जवानों को कैंप से निकलने के दौरान क्लोरोक्वीन, प्रीमाक्वीन, एसीटी काम्बी ब्लिस्टर के साथ आरडी किट और लोशन आदि भी उपलब्ध कराए जा रहे है। जहां दवाएं की कमी से संबंधित शिकायतें मिली हैं, वहां तुरंत जवानों को दवाएं उपलब्ध कराने को कहा गया है। 



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