रांची: भाकपा माओवादियों ने आगामी लोकसभा चुनाव के बहिष्कार का फरमान जारी किया है. अपने निचले स्तर के गुरिल्ला कैडरों को इससे असरदार बनाने के लिए जरूरी दिशा-निर्देश माओवादी नेताओं की तरफ से दिए गए हैं. माओवादियों के ईस्टर्न रीजनल ब्यूरो के दस्तावेज मिलने के बाद लोकसभा चुनाव को लेकर नक्सलियों की रणनीति का खुलासा हुआ है.
प्लान का खुलासा
नक्सलियों के इस प्लान का खुलासा 10 राज्यों के ईस्टर्न रीजनल ब्यूरो की ओर से नक्सली कैडरों के लिए जारी दस्तावेज से हुआ है. भाकपा माओवादी के ईस्टर्न रीजनल ब्यूरो के तहत झारखंड, बिहार, ओडिशा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश के हिस्से, असम, मणिपुर, त्रिपुरा और अंडमान निकोबार के इलाके आते हैं.
हथियार बंद संघर्ष के नकामी के बाद प्रचार वार
हथियारबंद संघर्ष में नाकामी के बाद लोकसभा चुनाव बहिष्कार के फरमान के जरिए भाकपा माओवादी ने प्रचार युद्ध के जरिए एक नया मोर्चा खोला है. इसके तहत बेदखल हुए इलाकों में व्यापक जन अभियान के जरिए एक बार फिर पैठ बनाने की रणनीति बनाई गई है.
ये भी पढ़ें- चाईबासा में कंस्ट्रक्शन साइट के कर्मचारी की गोली मारकर हत्या, पोकलेन में लगाई आग
ऐसी शासन प्रणाली का विरोध
इसमें विभिन्न जनसमूह के साथ बैठक कर वर्तमान अर्थव्यवस्था के कथित विरोधाभास रूप से लोगों को अवगत कराने के लिए कहा गया है. दस्तावेज में सरकार के खिलाफ लोगों को भड़काने की बातें लिखी गई हैं. दस्तावेज यह भी जिक्र किया गया है कि वर्तमान में सरकार पर्यावरण का विनाश और भोले भाले लोगों का विस्थापन कर अपनी जेब भर रही है. ऐसे में ऐसी शासन प्रणाली का विरोध करना जनता का सबसे अहम कार्य है.
अपनी सरकार के एजेंडे भी बताए
नक्सलियों ने अपने दस्तावेज में अपनी भावी सरकार का राजनीतिक एजेंडा भी जारी किया है. इसमें लोगों से प्रतिनिधि वापसी का अधिकार देने का वादा करने की बात है. वहीं कश्मीर, असम, नागालैंड और मणिपुर जैसे इलाकों को आत्मनिर्णय का अधिकार देने जैसे खतरनाक इरादे भी जताए गए हैं.
पहली बार मांगा उद्योगपतियों का साथ
नक्सलियों ने अपनी राजनीतिक अभियान में पहली बार मंझले और छोटे उद्योगपतियों का भी साथ मांगने को कहा है. दस्तावेज में यह जिक्र है कि छोटे-छोटे उद्योग चलाने वाले व्यापारियों को अपने साथ मिलाकर चलें. हालांकि नक्सलियों ने कथित क्रोनी कैपिलिस्ट यानी बड़े उद्योगपतियों से परहेज करने की हिदायत अपने कैडरों को दी है.
राजनीतिक एजेंडा भी किया है जारी
नक्सलियों ने अपने राजनीतिक एजेंडे में छोटे और मंझले उद्योगों को सरंक्षण देने की बात कही है. वहीं राष्ट्रीय पूंजीपति वर्ग के उद्योग धंधों को सीमित और नियंत्रित करने की बातें भी लिखी गई हैं. देश के बहुमुखी विकास के लिए सहकारिता आंदोलन को प्रोत्साहित करने की बात नक्सलियों ने की है. किसानों को जरुरत के मुताबिक ही जमीन जोतने की आजादी देने की बात का जिक्र भी दस्तावेज में है.
जिस लोकतंत्र में नक्सलियों का परिवार उसी का विरोध
नक्सलियों के दस्तावेज की जानकारी झारखंड पुलिस के आला अधिकारी को भी है. झारखंड पुलिस के अनुसार जिस लोकतंत्र के विरोध की बात नक्सली कर रहे हैं, उसी लोकतंत्र में उनके परिवार रहकर अपना जीवन चला रहे हैं. सरकार के द्वारा मिलने वाली अलग-अलग सुविधाओं का उपयोग किया जा रहा है. लोकतंत्र का विरोध नक्सलियों द्वारा सिर्फ लूट खसोट और पैसे कमाने के लिए किया जा रहा है.
ये भी पढ़ें- झारखंड मुक्ति मोर्चा का 40वां स्थापना दिवस, गुरुजी पहुंचे दुमका
सरेंडर करें, नही तो मारे जाएंगे
झारखंड पुलिस के आईजी ऑपरेशन आशीष बत्रा की मानें तो झारखंड की आत्मसमर्पण नीति बेहद ही प्रभावी और लुभावनी है. ऐसे में नक्सलियों के पास यह मौका है कि वह मुख्यधारा से जुड़कर लोकतंत्र को अपनाएं, नहीं तो जिस तरह से झारखंड में नक्सल के खिलाफ एनकाउंटर और अभियान चल रहा है, उसमें उनके मारे जाने की गुंजाइश ज्यादा है.