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झारखंड में साइबर अपराधियों का मकड़जाल, अधिकांश मामलों में रिकवरी रेट शून्य

झारखंड में साइबर अपराध (Cyber Crime) के ग्राफ में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. इन अपराधियों पर नकेल कसने के लिए साइबर सेल का गठन किया गया है. लेकिन साइबर सेल इस उद्देश्य पर खरा नहीं उतर सका है. ठगी के अधिकतर मामलों में रिकवरी रेट शून्य है.

Cyber crime
साइबर अपराध
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Published : Nov 21, 2021, 7:13 PM IST

Updated : Nov 21, 2021, 7:32 PM IST

रांची: बीते कुछ वर्षों में झारखंड में साइबर अपराध (Cyber Crime) का ग्राफ तेजी से बढ़ा है. इसको देखते हुए राज्य के हर जिले में पुलिस विभाग में साइबर सेल का गठन किया गया है. इसके पीछे उद्देश्य यह है कि साइबर ठगी के शिकार व्यक्तियों को उनकी गाढ़ी कमाई वापस दिलाई जा सके. साथ ही ऐसे मामलों की जांच तेजी से हो सके. जिससे साइबर अपराधियों पर लगाम कसा जा सके. हालांकि साइबर सेल इस उद्देश्य पर खरा नहीं उतर सका है. यह हम नहीं कह रहे, बल्कि आंकड़े खुद बयां कर रहा है.



इसे भी पढे़ं: साइबर अपराधियों पर अंकुश लगाने के लिए पुलिस गंभीर, बन चुकी है स्टेट और सेंट्रल लेवल पर कोऑर्डिनेशन कमिटी


साइबर अपराधी हर दिन नए नए तरीके से लोगों की गाढ़ी कमाई उड़ा लेते हैं. बैंक अकाउंट से ऑनलाइन ठगी होने के मामले लगातार सामने आते रहते हैं. लेकिन खातों से गायब पैसों की रिकवरी बहुत कम हो पाती है. खासकर झारखंड में यह रिकवरी रेट बेहद कम है. आम लोग अपने पैसे को वापस पाने के लिए साइबर थानों के चक्कर लगाते रहते हैं. लेकिन पैसे वापस नहीं मिलते हैं. पुलिस से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार इस वर्ष जनवरी से अब तक जिले के विभिन्न थानों में साइबर ठगी के 700 मुकदमे दर्ज किए जा चुके हैं. इन प्रकरणों में 10 करोड़ 64 लाख 86 हजार रुपये की चपत साइबर ठगों ने झारखंड वासियों को लगाई है. लेकिन पुलिस की साइबर सेल इसमें से मात्र 5 फीसद धनराशि ही पीड़ितों को वापस करा पाई है.

झारखंड में साइबर अपराध


राजधानी की स्थिति भयावह


झारखंड के बाकी जिलों की बात छोड़ दें और केवल राजधानी रांची की बात करें तो यहां स्थिति बेहद भयावह है. केवल एक (2021) साल में सिर्फ रांची के 10 लोगों से करीब दो करोड़ रुपए की ठगी साइबर अपराधियों ने की है. इन मामलों में साइबर पुलिस ने कुछ आरोपियों को गिरफ्तार भी किया. लेकिन पीड़ितों का एक रुपया भी रिकवर नहीं हो पाया. इस वर्ष रांची सुखदेव नगर इलाके के रहने वाले सीसीएल के एक अधिकारी के खाते से साइबर अपराधियों ने आरबीआई अफसर बनकर 65 लाख रुपये ठग लिए. वहीं दूसरी सबसे बड़ी ठगी का मामला भी रांची का है. जिसमें साइबर अपराध में खुद को विदेशी कारोबारी बता अरगोड़ा के एक कारोबारी से व्यापार के नाम पर 58 लाख ठग लिए. इन दोनों मामलों में पुलिस एक पैसा तक रिकवर नहीं कर पाई. राजधानी के अलग-अलग स्थानों में जनवरी 2021 से लेकर अब तक 545 मामले दर्ज हुए हैं. अधिकांश मामलों में रिकवरी का रेट शून्य ही है.



पांच जिलों में साइबर सेल एक्टिव

रांची सहित धनबाद, देवघर, गिरिडीह और जामताड़ा में साइबर सेल काम कर रहा है. इसके अलावा सीआईडी का भी साइबर सेल लगा हुआ है. साइबर मामलों को सुलझाने के लिए आईपीएस, डीएसपी से लेकर दर्जनों जूनियर अधिकारी काम करते हैं. लेकिन नतीजा सिफर ही है.


इसे भी पढे़ं: क्या आप भी साइबर ब्लैकमेलिंग का शिकार हो रहे हैं तो यह खबर पढ़ें ?


क्यों नहीं हो पाती रकम की रिकवरी

अधिकारियों के अनुसार अधिकांश प्रकरणों में पीड़ित शिकायत लेकर तब आते हैं, जब ठग रकम निकाल चुका होता है. इससे ठगी की धनराशि की रिकवरी करना मुश्किल हो जाता है. साइबर सेल सभी बैंकों और वालेट से लगातार संपर्क बनाए रहती है. साइबर ठगी का मामला सामने आने के बाद पता लगाया जाता है कि धनराशि किस बैंक या वालेट के खाते में गई है. इसके बाद संबंधित बैंक या वालेट को मेल भेजकर खाते को सीज कराया जाता है. जिससे आरोपित धनराशि निकाल न पाए. लेकिन प्रक्रिया इतनी जटिल है कि इसे असली जामा पहनाने के दौरान काफी लेट हो जाता है और तब तक साइबर अपराधी कई खातों में पैसे ट्रांसफर कर उसे निकाल भी लेते हैं.



गरीबों को झांसा देकर खुलवाते हैं खाते

ऑनलाइन बैंक में खाता खोलने के अलावा ठगी की वारदात को अंजाम देने के लिए साइबर अपराधी गरीबों के बैंक खातों का इस्तेमाल कर रहे हैं. चंद रुपयों की लालच देकर वे उन्हें अपने जाल में फंसा लेते हैं. खाताधारक को मालूम ही नहीं होता है कि वे किसी आपराधिक वारदात का हिस्सा बनने जा रहे हैं. साइबर ठगी के अस्सी फीसदी मामले में पुलिस के सामने ये तथ्य सामने आया है. एटीएम कार्ड का नंबर, पिन नंबर और अन्य जानकारियां हासिल कर खाते से रकम उड़ाना आम बात हो गई है. इसके अलावा कभी नौकरी के नाम पर युवाओं को ठगा जाता है, तो कभी फेसबुक आईडी हैक कर साइबर अपराधी रकम समेट लेते हैं. इन सब घटनाओं को अंजाम तक पहुंचाने के लिए बैंक खाते का इस्तेमाल किया जाता है.

इसे भी पढे़ं: साइबर अपराध से अर्जित संपत्ति होगी जब्त, पुलिस की रडार पर लालू राणा, इस्माइल जैसे साइबर क्रिमिनल्स

साइबर अपराधी नहीं करते अपने बैंक अकाउंट का इस्तेमाल

पकड़े जाने से बचने के लिए साइबर अपराधी अपने बैंक खाते का इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि गरीबों को झांसा देकर वे उन्हें अपने जाल में फंसा लेते हैं. उनसे बैंक खाते का पूरा ब्योरा और एटीएम कार्ड हासिल कर लेते हैं. इसके आधार पर नेट बैंकिंग की सुविधा भी वो ले लेते हैं. जबकि खाताधारकों को इसकी जानकारी नहीं होती है. उसे तो केवल इतना बताया जाता है कि कुछ रकम उसके खाते में आएगा. जिसे वे निकाल लेंगे. इसके बदले में खाताधारक को तीन-चार हजार रुपये थमा दिए जाते हैं. ये धनराशि भी उसके खाते में छोड़ दी जाती है.



पैसे न के बराबर हो पाते हैं वापस

साइबर फ्रॉड का शिकार होने के बाद लोग बैंक और साइबर थाने में शिकायत दर्ज करवाते हैं. लेकिन लोगों को निराशा ही हाथ लगती है. बैंक उसी अकाउंट पर कार्रवाई करती है. जिसमें पैसे ट्रांसफर होते हैं. लेकिन साइबर अपराधी बहुत सतर्क रहते हैं. वह तुरंत इस पैसे को दूसरे मोबाइल वॉलिट, पेटीएम या बैंक अकाउंट में ट्रांसफर कर देते हैं और डेबिट कार्ड के जरिए राशि निकाल लेते हैं.



विदेशी सर्वर का प्रयोग

इंटरनेट के जरिए कॉल की सेवा देने वाली ज्यादातर कंपनियों के आफिस विदेशों में हैं. फर्जी आईडी के जरिए रजिस्ट्रेशन कराकर किसी सॉफ्टवेयर के जरिए कॉल करना आसान है. विदेशों से जुड़े मामले में पुलिस को पहले गृह विभाग की अनुमति लेनी होती है. गृह विभाग विदेश मंत्रालय को पत्र लिखता है. यदि विदेश मंत्रालय अनुमति देता है तो विदेश में मौजूद अपराधी की गिरफ्तारी के लिए इंटरपोल की मदद ली जाती है. लेकिन यह प्रक्रिया इतनी जटिल है कि जब तक आप साइबर अपराधियों तक पहुंचेंगे तब तक आपके सारे पैसे खर्च हो चुके होंगे.

रांची: बीते कुछ वर्षों में झारखंड में साइबर अपराध (Cyber Crime) का ग्राफ तेजी से बढ़ा है. इसको देखते हुए राज्य के हर जिले में पुलिस विभाग में साइबर सेल का गठन किया गया है. इसके पीछे उद्देश्य यह है कि साइबर ठगी के शिकार व्यक्तियों को उनकी गाढ़ी कमाई वापस दिलाई जा सके. साथ ही ऐसे मामलों की जांच तेजी से हो सके. जिससे साइबर अपराधियों पर लगाम कसा जा सके. हालांकि साइबर सेल इस उद्देश्य पर खरा नहीं उतर सका है. यह हम नहीं कह रहे, बल्कि आंकड़े खुद बयां कर रहा है.



इसे भी पढे़ं: साइबर अपराधियों पर अंकुश लगाने के लिए पुलिस गंभीर, बन चुकी है स्टेट और सेंट्रल लेवल पर कोऑर्डिनेशन कमिटी


साइबर अपराधी हर दिन नए नए तरीके से लोगों की गाढ़ी कमाई उड़ा लेते हैं. बैंक अकाउंट से ऑनलाइन ठगी होने के मामले लगातार सामने आते रहते हैं. लेकिन खातों से गायब पैसों की रिकवरी बहुत कम हो पाती है. खासकर झारखंड में यह रिकवरी रेट बेहद कम है. आम लोग अपने पैसे को वापस पाने के लिए साइबर थानों के चक्कर लगाते रहते हैं. लेकिन पैसे वापस नहीं मिलते हैं. पुलिस से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार इस वर्ष जनवरी से अब तक जिले के विभिन्न थानों में साइबर ठगी के 700 मुकदमे दर्ज किए जा चुके हैं. इन प्रकरणों में 10 करोड़ 64 लाख 86 हजार रुपये की चपत साइबर ठगों ने झारखंड वासियों को लगाई है. लेकिन पुलिस की साइबर सेल इसमें से मात्र 5 फीसद धनराशि ही पीड़ितों को वापस करा पाई है.

झारखंड में साइबर अपराध


राजधानी की स्थिति भयावह


झारखंड के बाकी जिलों की बात छोड़ दें और केवल राजधानी रांची की बात करें तो यहां स्थिति बेहद भयावह है. केवल एक (2021) साल में सिर्फ रांची के 10 लोगों से करीब दो करोड़ रुपए की ठगी साइबर अपराधियों ने की है. इन मामलों में साइबर पुलिस ने कुछ आरोपियों को गिरफ्तार भी किया. लेकिन पीड़ितों का एक रुपया भी रिकवर नहीं हो पाया. इस वर्ष रांची सुखदेव नगर इलाके के रहने वाले सीसीएल के एक अधिकारी के खाते से साइबर अपराधियों ने आरबीआई अफसर बनकर 65 लाख रुपये ठग लिए. वहीं दूसरी सबसे बड़ी ठगी का मामला भी रांची का है. जिसमें साइबर अपराध में खुद को विदेशी कारोबारी बता अरगोड़ा के एक कारोबारी से व्यापार के नाम पर 58 लाख ठग लिए. इन दोनों मामलों में पुलिस एक पैसा तक रिकवर नहीं कर पाई. राजधानी के अलग-अलग स्थानों में जनवरी 2021 से लेकर अब तक 545 मामले दर्ज हुए हैं. अधिकांश मामलों में रिकवरी का रेट शून्य ही है.



पांच जिलों में साइबर सेल एक्टिव

रांची सहित धनबाद, देवघर, गिरिडीह और जामताड़ा में साइबर सेल काम कर रहा है. इसके अलावा सीआईडी का भी साइबर सेल लगा हुआ है. साइबर मामलों को सुलझाने के लिए आईपीएस, डीएसपी से लेकर दर्जनों जूनियर अधिकारी काम करते हैं. लेकिन नतीजा सिफर ही है.


इसे भी पढे़ं: क्या आप भी साइबर ब्लैकमेलिंग का शिकार हो रहे हैं तो यह खबर पढ़ें ?


क्यों नहीं हो पाती रकम की रिकवरी

अधिकारियों के अनुसार अधिकांश प्रकरणों में पीड़ित शिकायत लेकर तब आते हैं, जब ठग रकम निकाल चुका होता है. इससे ठगी की धनराशि की रिकवरी करना मुश्किल हो जाता है. साइबर सेल सभी बैंकों और वालेट से लगातार संपर्क बनाए रहती है. साइबर ठगी का मामला सामने आने के बाद पता लगाया जाता है कि धनराशि किस बैंक या वालेट के खाते में गई है. इसके बाद संबंधित बैंक या वालेट को मेल भेजकर खाते को सीज कराया जाता है. जिससे आरोपित धनराशि निकाल न पाए. लेकिन प्रक्रिया इतनी जटिल है कि इसे असली जामा पहनाने के दौरान काफी लेट हो जाता है और तब तक साइबर अपराधी कई खातों में पैसे ट्रांसफर कर उसे निकाल भी लेते हैं.



गरीबों को झांसा देकर खुलवाते हैं खाते

ऑनलाइन बैंक में खाता खोलने के अलावा ठगी की वारदात को अंजाम देने के लिए साइबर अपराधी गरीबों के बैंक खातों का इस्तेमाल कर रहे हैं. चंद रुपयों की लालच देकर वे उन्हें अपने जाल में फंसा लेते हैं. खाताधारक को मालूम ही नहीं होता है कि वे किसी आपराधिक वारदात का हिस्सा बनने जा रहे हैं. साइबर ठगी के अस्सी फीसदी मामले में पुलिस के सामने ये तथ्य सामने आया है. एटीएम कार्ड का नंबर, पिन नंबर और अन्य जानकारियां हासिल कर खाते से रकम उड़ाना आम बात हो गई है. इसके अलावा कभी नौकरी के नाम पर युवाओं को ठगा जाता है, तो कभी फेसबुक आईडी हैक कर साइबर अपराधी रकम समेट लेते हैं. इन सब घटनाओं को अंजाम तक पहुंचाने के लिए बैंक खाते का इस्तेमाल किया जाता है.

इसे भी पढे़ं: साइबर अपराध से अर्जित संपत्ति होगी जब्त, पुलिस की रडार पर लालू राणा, इस्माइल जैसे साइबर क्रिमिनल्स

साइबर अपराधी नहीं करते अपने बैंक अकाउंट का इस्तेमाल

पकड़े जाने से बचने के लिए साइबर अपराधी अपने बैंक खाते का इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि गरीबों को झांसा देकर वे उन्हें अपने जाल में फंसा लेते हैं. उनसे बैंक खाते का पूरा ब्योरा और एटीएम कार्ड हासिल कर लेते हैं. इसके आधार पर नेट बैंकिंग की सुविधा भी वो ले लेते हैं. जबकि खाताधारकों को इसकी जानकारी नहीं होती है. उसे तो केवल इतना बताया जाता है कि कुछ रकम उसके खाते में आएगा. जिसे वे निकाल लेंगे. इसके बदले में खाताधारक को तीन-चार हजार रुपये थमा दिए जाते हैं. ये धनराशि भी उसके खाते में छोड़ दी जाती है.



पैसे न के बराबर हो पाते हैं वापस

साइबर फ्रॉड का शिकार होने के बाद लोग बैंक और साइबर थाने में शिकायत दर्ज करवाते हैं. लेकिन लोगों को निराशा ही हाथ लगती है. बैंक उसी अकाउंट पर कार्रवाई करती है. जिसमें पैसे ट्रांसफर होते हैं. लेकिन साइबर अपराधी बहुत सतर्क रहते हैं. वह तुरंत इस पैसे को दूसरे मोबाइल वॉलिट, पेटीएम या बैंक अकाउंट में ट्रांसफर कर देते हैं और डेबिट कार्ड के जरिए राशि निकाल लेते हैं.



विदेशी सर्वर का प्रयोग

इंटरनेट के जरिए कॉल की सेवा देने वाली ज्यादातर कंपनियों के आफिस विदेशों में हैं. फर्जी आईडी के जरिए रजिस्ट्रेशन कराकर किसी सॉफ्टवेयर के जरिए कॉल करना आसान है. विदेशों से जुड़े मामले में पुलिस को पहले गृह विभाग की अनुमति लेनी होती है. गृह विभाग विदेश मंत्रालय को पत्र लिखता है. यदि विदेश मंत्रालय अनुमति देता है तो विदेश में मौजूद अपराधी की गिरफ्तारी के लिए इंटरपोल की मदद ली जाती है. लेकिन यह प्रक्रिया इतनी जटिल है कि जब तक आप साइबर अपराधियों तक पहुंचेंगे तब तक आपके सारे पैसे खर्च हो चुके होंगे.

Last Updated : Nov 21, 2021, 7:32 PM IST
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