रांची: कोरोना के बढ़ते दायरे के बीच कुछ ऐसे सवाल हैं जिसको लेकर लोग चिंतित हैं. मसलन, क्या कोरोना से संक्रमित होने पर निजी अस्पतालों में मेडिकल इंश्योरेंस का कवरेज शत प्रतिशत मिलता है. क्या निजी अस्पतालों में इलाज के दौरान कैश पैसे भी जमा करने पड़ते हैं. क्या निजी अस्पताल वाले पीपीई किट का अलग से चार्ज करते हैं या यह सुविधा कैशलेस इंश्योरेंस में शामिल होती है. अगर कोरोना से संक्रमित है और कोई लक्षण नहीं है तो निजी अस्पताल में इलाज पर कितना खर्च आएगा. इन तमाम सवालों की पड़ताल की ईटीवी भारत की टीम ने
झारखंड में कोरोना संक्रमण का दायरा बढ़ता ही जा रहा है और अब सरकारी अस्पतालों में बेड मिलना भी मुश्किल हो गया है. इसकी वजह से लोगों को निजी अस्पतालों की ओर रूख करना पड़ रहा है. अब सवाल है कि क्या निजी अस्पतालों में मेडिकल इंश्योरेंस से लैस लोगों की जेब काटी जा रही है. इसका जवाब यह है कि इंश्योरेंस वाले मरीजों के जेब से अलग से पैसे तो नहीं लगते, लेकिन सामान्य रूप से भी संक्रमित होने पर इलाज में कम से कम एक लाख रूपए का बिल बनता है.
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इंश्योरेंस से मिलेंगी सभी सुविधाएं
इस बाबत ईटीवी भारत की टीम ने बात की रांची में एलआईसी के शाखा प्रबंधक असलम अंसारी से. उन्होंने कहा कि अगर किसी ने मेडिकल इंश्योरेंस ले रखा है और वह कोरोना से संक्रिमित हो जाता है तो निजी अस्पतालों में तमाम सुविधाएं मिलेंगी. हालांकि, इसके लिए मरीज को कोविड-19 का एक फॉर्म भरना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि चूंकि यह बीमारी संक्रमण से जुड़ी है और डॉक्टरों को मरीजों तक जाने के लिए बार-बार पीपीई किट पहनना पड़ता है लिहाजा, किट का चार्ज भी मेडिकल बिल में समाहित होता है. इसके लिए मरीज को अलग से पैसे नहीं देने पड़ते हैं.
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सामान्य वार्ड का चार्ज 1200 तक
अब सवाल है कि क्या निजी अस्पताल प्रबंधन, मरीजों से अलग से पैसे वसूलते हैं या नहीं. यह भी जानने की कोशिश की गई कि कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज में कितना खर्च आता है. मेडिका अस्पताल के प्रबंधक अनिल कुमार ने बताया कि चूंकि यह बीमारी संक्रमण से जुड़ी होती है. इसलिए मरीजों के कंडिशन को देखते हुए या तो सामान्य वार्ड में रखा जाता है या फिर आईसीयू में. आईसीयू में प्रतिदिन इलाज का चार्ज 5 हजार रुपए से लेकर 8 हजार रुपए तक है. वहीं, सामान्य वार्ड का चार्ज 800 से 1200 रुपए तक है.
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वेंटिलेटर पर 25 हजार तक का खर्च
वहीं, मरीज को वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है तो प्रतिदिन 15 हजार से लेकर 25 हजार तक का खर्च आता है. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि अगर कोई मरीज सामान्य या गंभीर रूप से संक्रमित है तो उसके इलाज में औसतन कितना खर्च आएगा. उन्होंने बताया कि सामान्य मरीज को कम से कम 14 दिन रखना पड़ता है. लिहाजा, एक मरीज पर कम से कम 1 लाख रुपए का खर्च आता है. यह पूछे जाने पर कि पीपीई किट के एवज में कितने पैसे चार्ज किए जाते हैं तो इसका उन्होंने सीधा तौर पर जवाब नहीं दिया. उन्होंने बस इतना कहा कि इस बीमारी के इलाज के दौरान अलग से किसी तरह का चार्ज नहीं लिया जाता है. कैशलेस कार्ड होने पर एडवांड भी नहीं लिया जाता है. इधर, हमनें जब निजी अस्पतालों में इलाज कराने वाले मरीज के रिश्तेदारों से खर्च को लेकर बात करने की कोशिश की गई तो किसी ने भी इसपर चर्चा करने से इनकार कर दिया.
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मेडिकल इंश्योरेंस वाले को आराम
इस पड़ताल से साफ है कि जिन लोगों ने मेडिकल इंश्योरेंस कर रखा है. वैसे लोग निजी अस्पतालों में बेझिझक अपना इलाज करा सकते हैं. रही बात आयुष्मान कार्डधारियों की तो मेडिका के प्रबंधक ने बताया कि इसको लेकर अभी तक सरकार की तरफ से कोई स्पष्ट निर्देश नहीं मिला है. क्योंकि सरकारी अस्पताल में अन्य मरीजों की तरह आयुष्मान कार्डधारियों का इलाज मुफ्त में हो रहा है.
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