रांची: राजधानी रांची में छह नाबालिगों की कोख पर कोरोना का खतरा मंडराने लगा है. कांके स्थित स्नेहाश्रय नारी निकेतन में रह रही इन पांचों नाबालिगों की डिलीवरी आने वाले 10 दिनों के भीतर होनी है. ऐसे में इन नाबालिगों को किस अस्पताल में भर्ती कराया जाए यह बड़ा सवाल खड़ा हो गया है.
फैला हुआ है संक्रमण का प्रकोप
सदर अस्पताल सील कर दिया गया है, जबकि रिम्स में कोविड-19 के संक्रमण का प्रकोप फैला हुआ है. रिम्स के प्रसव विभाग में कुछ दिनों पूर्व ही एक कोरोना पॉजिटिव मरीज की डिलीवरी हुई है. जिसके बाद पूरे विभाग के डॉक्टर्स, नर्स और अन्य सफाईकर्मियों की कोविड-19 जांच की जा रही है. ऐसे में वहां नाबालिगों की डिलीवरी करना एक चुनौती बन गया है. अब डिलीवरी कहां कराई जाए यह किसी को समझ नहीं आ रहा, न ही इसपर विभाग ही कोई निर्देश दे रहा है.
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डरी हुई हैं सभी नाबालिग
कांके स्थित नारी निकेतन में गार्ड के रूप में तैनात सुंदरी तिर्की बताती हैं कि वे लोग काफी दहशत में हैं, क्योंकि इस इलाके में कोई भी अस्पताल गर्भवती को अपने यहां भर्ती नहीं लेगा. इसके अलावा सरकारी अस्पतालों में भी स्थिति ठीक नहीं है. अगर वे किसी के दर्द के समय 108 एंबुलेंस में फोन भी करती हैं तो वह एंबुलेंस उन्हें लेकर कहां जाएगा यह उन्हें समझ में नहीं आ रहा है.
रेप पीड़ित हैं नाबालिग
पहले ही रेप जैसी जघन्य अपराध की शिकार बनी इन नाबालिगों का दर्द अब और बढ़ गया है. रांची, लातेहार, कोलकाता से जिन मासूमों को रेस्क्यू कर यहां लाया गया, एक बार फिर उनकी जान दांव पर है. कोख में लगभग 9 माह के मासूम को नई जिंदगी देने जा रही. इन नाबालिगों में दहशत हावी हो गया है. इनके साथ अस्पताल में एक अटेंडेंट भी रखना होगा. कोरोना के इस दौर में हर व्यक्ति दहशत में है. ऐसे में इनके साथ रहने वाले पर भी खतरा बढ़ जाएगा. सीडब्ल्यूसी की मेंबर तनुश्री बताती हैं कि इस समय बच्चों के साथ कोई रह भी नहीं सकता है, क्योंकि यह नियमों के खिलाफ है.
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निकेतन में 43 महिलाएं, 7 प्रेग्नेंट
बता दें कि इस समय स्नेहाश्रेय नारी निकेतन में 43 महिलाएं हैं. इनमें छह नाबालिग समेत 7 लड़कियां प्रेग्नेंट हैं. इनके अलावा कुछ महिलाओं ने कुछ दिनों पूर्व ही बच्चों को जन्म दिया है, जिनमें 6 नवजात शामिल हैं. थोड़ी सी भी गलती से यह सारे लोग कोरोना की चपेट में आ जाएंगे. जिसके बाद समस्या विकराल हो जाएगी.
एंबुलेंस है नहीं, कैसे जाएंगे अस्पताल
सबसे बड़ी समस्या यह है कि अगर देर रात किसी को लेबर पेन होता है तो ऐसी स्थिति में उसे अस्पताल तक ले जाना मुश्किल हो जाएगा. नारी निकेतन में एंबुलेंस नहीं है और लॉकडाउन के दौरान कोई भी गाड़ी आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाएगा.
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पैसा है नहीं, सरकारी अस्पताल में इलाज मेंडेटरी
निकेतन के पास पैसे की भारी कमी है. ऐसे में इन नाबालिग बच्चियों का इलाज निजी अस्पतालों में नहीं कराया जा सकता. सरकारी अस्पताल में ही प्रसव कराना जरूरी है, लेकिन इनके खतरे पर किसी का ध्यान नहीं. वर्तमान में यह नियम बनाया गया है कि किसी भी गर्भवती को अस्पताल में तभी भर्ती किया जाएगा जब उनका कोरोना टेस्ट हो और टेस्ट नेगेटिव निकले.
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चरम पर विभाग की लापरवाही
निकेतन समाज कल्याण विभाग के अंतर्गत आता है. विभाग की लापरवाही इस कदर है कि सारी जानकारी के बावजूद आंखों और मुंह पर पट्टी बांधे हुए हैं. न ही कोई विकल्प बताए जा रहे हैं न ही कोई निर्देश ही जारी हुए हैं. इस मामले को लेकर सीडब्ल्यूसी की मेंबर तनुश्री बताती हैं कि समस्या काफी गंभीर हैं. वे प्रयास कर रहे हैं कि विभाग और सरकार से मदद मिले और रिम्स या सदर अस्पताल के स्थान पर कांके से नजदीक ही कहीं अस्पताल में नाबालिगों के प्रसव की व्यवस्था की जा सके. इसके लिए वे लगातार सरकार के संपर्क में हैं. लेकिन अभी तक कोई ठोस कदम इस संबंध में नहीं उठाया गया है.