रांची: झारखंड की दो राज्यसभा सीटों के लिए 19 जून को होने वाला चुनाव पहले ही रोमांचक मोड़ पर आ गया है. एक तरफ जहां अक्सर रास चुनाव में 'हॉर्स ट्रेडिंग' को लेकर आवाज उठती थी. वहीं दूसरी तरफ इस राज्यसभा चुनाव में अपना दल छोड़कर दूसरे दल का दामन थामने वाले विधायकों की पहचान को लेकर विवाद हो रहा है.
हालांकि चुनाव आयोग ने उन तीन विधायकों की पहचान को लेकर अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है, लेकिन अभी भी सदन के अंदर उन्हें एक तरह से पहचान का संकट झेलना पड़ रहा है. सारा मामला झारखंड विकास मोर्चा के बीजेपी और कांग्रेस में विलय को लेकर उठ रहा है. सबसे बड़ी बात यह है झारखंड विकास मोर्चा के बीजेपी में विलय के दावे के बीच बाबूलाल मरांडी को चुनाव आयोग ने बीजेपी के वोटर के रूप में मान्यता दी है. वहीं दूसरी तरफ झारखंड विकास मोर्चा के 2 विधायक प्रदीप यादव और बंधु तिर्की को निर्दलीय माना है.
कानूनी राय ले रही है कांग्रेस
इस बाबत प्रदेश के वित्त मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रामेश्वर उरांव ने साफ कहा कि इसमें क्या कानूनी पक्ष है. यह अभी नहीं कहा जा सकता. विशेषज्ञों से राय ली जा रही है. जहां तक एक बात सामने आ रही है कि इलेक्शन के रिजल्ट तैयार होने तक और सर्टिफिकेट देने तक इलेक्शन कमीशन की शक्ति होती है. एक बार जो विधायक हो गया और विधानसभा में आ गया तो वह स्पीकर की प्रॉपर्टी होती है. ऐसे में मामला स्पीकर साहब के पास है कि वह क्या फैसला लेते हैं. अभी वकीलों से इस बाबत राय ली जा रही है और फिर आगे फैसला लिया जाएगा.
ये भी पढ़ें- लॉकडाउन ने कबाड़ी वालों की जिंदगी को भी बना दिया 'कबाड़', जिला प्रशासन से लगा रहे गुहार
बीजेपी ने जताया संशय, दबाव में हैं स्पीकर
बीजेपी के नेता योगेंद्र प्रताप सिंह ने दावा किया कि बाबूलाल मरांडी ने सारी अहर्ताएं पूरी कर अपनी पार्टी का विलय बीजेपी में किया है. इसे चुनाव आयोग ने भी माना है. अगर स्पीकर इस पर विवाद करते हैं या नहीं मानते हैं तो यह गलत है. हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि विधानसभा एक ऑटोनॉमस बॉडी है और स्पीकर को विवेक के साथ कोई निर्णय लेना चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर किसी दबाव में विधानसभा अध्यक्ष काम कर रहे हैं तो वह सही नहीं है.
कुछ ऐसा है पूरा मामला
बाबूलाल मरांडी ने अपनी दो विधायकों को झारखंड विकास मोर्चा से निष्कासित कर खुद पार्टी का विलय बीजेपी में कर लिया. वहीं उन दोनों निष्कासित विधायक प्रदीप यादव और बंधु तिर्की ने झाविमो का विलय कांग्रेस में करने का दावा किया. मामला चुनाव आयोग तक गया और चुनाव आयोग ने बाबूलाल मरांडी के विलय को मंजूरी दी. सारा मामला फिर आकर झारखंड विधानसभा में अटक गया.
ये भी पढ़ें- अब कोरोना से लड़ेगा 'पॉलीमेरिक सुपर हाइड्रोफोबिक कोटिंग', हर कपड़ा बनेगा पीपीई किट
एक तरफ बीजेपी ने बाबूलाल मरांडी को विधायक दल के नेता के रूप में चुना वहीं दूसरी तरफ झारखंड विधानसभा अध्यक्ष ने उन्हें अभी तक नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं दिया है. अब राज्यसभा चुनाव में भले चुनाव आयोग ने उन्हें बीजेपी का विधायक माना हो लेकिन जब बात राज्यसभा चुनावों के वोटर लिस्ट पर आकर अटक रही है तो तस्वीर धुंधली होती नजर आ रही है.
वोटिंग राइट का तीनों करेंगे इस्तेमाल
इस पूरे मामले में सबसे बड़ी बात यह है कि न तो बाबूलाल मरांडी को वोटिंग राइट से वंचित किया जा सकता है और ना ही प्रदीप यादव और बंधु तिर्की को. मामला केवल पहचान को लेकर है. 19 जून को राज्यसभा उम्मीदवार के लिए वोटिंग होगी 2 सीटों के लिए 3 उम्मीदवार मैदान में हैं. उनमें एक बीजेपी, एक जेएमएम और एक कांग्रेस के उम्मीदवार हैं. आंकड़ों पर नजर डालें तो बीजेपी और जेएमएम के उम्मीदवारों के पास पर्याप्त संख्या है.