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सरना झंडा को लेकर केंद्रीय सरना समिति संगठनों के बीच विवाद, एक दूसरे पर राजनीति करने का आरोप

आदिवासियों की सभ्यता संस्कृति के बचाव के लिए सक्रिय केंद्रीय सरना समिति काम करती है. ऐसे में फिलहाल दो गुट आपस में ही विवादों में घिरे हुए हैं.

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Published : Mar 19, 2020, 3:00 PM IST

Controversy between Central Sarna Committee organizations over Sarna flag
सरना झंडा को लेकर विवाद

रांचीः आदिवासियों की सभ्यता संस्कृति रीति रिवाज इनकी परंपराओं में देखने को मिलती है. वहीं, इनकी पहचान धार्मिक सरना झंडा से की जाती है जो आदिवासियों की एकजुटता का परिचय भी देती है लेकिन धार्मिक सरना झंडा को लेकर विभिन्न सरना समिति के लोगों में विवाद उत्पन्न होता दिख रहा है.

देखें पूरी खबर

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आदिवासियों की सभ्यता संस्कृति और परंपरा को बचाए रखने और उसके अधिकार की लड़ाई लड़ने वाले राज्य नहीं देशभर में कई सामाजिक संगठन संचालित हैं, जो समाज को सही दिशा में ले जाने की बात करते हैं. वहीं, सरना पूजा महोत्सव की तैयारी को लेकर केंद्रीय सरना समिति बबलू मुंडा गुट की बैठक में सफेद, लाल, हरा रंग के धार्मिक झंडा को सरहुल पर्व में उपयोग करने की बात कहा गया है. समिति के अध्यक्ष बबलू मुंडा ने तीन रंग के झंडे को आदिवासियों का पारंपरिक झंडा बताया है और समाज के लोगों से अपील भी की है कि अपने घरों में भी झंडा लगाएं, इसके साथ ही शहर के विभिन्न चौक-चौराहों में लगाने की बात कही गई है.

प्राकृतिक का महापर्व सरहुल पूजा सभी 32 जनजातियों का प्रमुख त्यौहार है, जिसमें लाल और सफेद रंग का चीरा झंडा का उपयोग आदिवासी समाज के लोग सदियों से करते आ रहे हैं. इस बार सरहुल पूजा महोत्सव में तीन रंग का यह धार्मिक झंडा को लगाए जाने की बात कहीं ना कहीं विवादों के घेरे में है. केंद्रीय सरना समिति अध्यक्ष अजय तिर्की गुट ने बबलू मुंडा गुट पर राजनीति करने का आरोप लगाते हुए कहा कि लाल और सफेद रंग का चीरा झंडा की मान्यता पूरे भारतवर्ष में है जिसका उपयोग आदिवासी समाज के लोग सदियों से करते आ रहे हैं. उनका कहना है कि आदिवासियों के सभी 32 जनजातियों का अपना अलग-अलग धार्मिक झंडा है पूजा-पद्धति के हिसाब से अपने धार्मिक झंडा का प्रयोग कर सकते हैं लेकिन यह चिरा झंडा सभी 32 जनजातियों के लिए है.

अजय तिर्की का कहना है कि सरहुल पूजा महोत्सव में आदिवासियों के सभी जनजाति के लोग शामिल होते हैं. ऐसे में सभी जनजाति के लोग अपनी पूजा-पद्धति के अनुसार धार्मिक झंडा का इस्तेमाल करेंगे तो आदिवासी समाज एकजुट के बजाय बिखरी हुई दिखाई देगी.

रांचीः आदिवासियों की सभ्यता संस्कृति रीति रिवाज इनकी परंपराओं में देखने को मिलती है. वहीं, इनकी पहचान धार्मिक सरना झंडा से की जाती है जो आदिवासियों की एकजुटता का परिचय भी देती है लेकिन धार्मिक सरना झंडा को लेकर विभिन्न सरना समिति के लोगों में विवाद उत्पन्न होता दिख रहा है.

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आदिवासियों की सभ्यता संस्कृति और परंपरा को बचाए रखने और उसके अधिकार की लड़ाई लड़ने वाले राज्य नहीं देशभर में कई सामाजिक संगठन संचालित हैं, जो समाज को सही दिशा में ले जाने की बात करते हैं. वहीं, सरना पूजा महोत्सव की तैयारी को लेकर केंद्रीय सरना समिति बबलू मुंडा गुट की बैठक में सफेद, लाल, हरा रंग के धार्मिक झंडा को सरहुल पर्व में उपयोग करने की बात कहा गया है. समिति के अध्यक्ष बबलू मुंडा ने तीन रंग के झंडे को आदिवासियों का पारंपरिक झंडा बताया है और समाज के लोगों से अपील भी की है कि अपने घरों में भी झंडा लगाएं, इसके साथ ही शहर के विभिन्न चौक-चौराहों में लगाने की बात कही गई है.

प्राकृतिक का महापर्व सरहुल पूजा सभी 32 जनजातियों का प्रमुख त्यौहार है, जिसमें लाल और सफेद रंग का चीरा झंडा का उपयोग आदिवासी समाज के लोग सदियों से करते आ रहे हैं. इस बार सरहुल पूजा महोत्सव में तीन रंग का यह धार्मिक झंडा को लगाए जाने की बात कहीं ना कहीं विवादों के घेरे में है. केंद्रीय सरना समिति अध्यक्ष अजय तिर्की गुट ने बबलू मुंडा गुट पर राजनीति करने का आरोप लगाते हुए कहा कि लाल और सफेद रंग का चीरा झंडा की मान्यता पूरे भारतवर्ष में है जिसका उपयोग आदिवासी समाज के लोग सदियों से करते आ रहे हैं. उनका कहना है कि आदिवासियों के सभी 32 जनजातियों का अपना अलग-अलग धार्मिक झंडा है पूजा-पद्धति के हिसाब से अपने धार्मिक झंडा का प्रयोग कर सकते हैं लेकिन यह चिरा झंडा सभी 32 जनजातियों के लिए है.

अजय तिर्की का कहना है कि सरहुल पूजा महोत्सव में आदिवासियों के सभी जनजाति के लोग शामिल होते हैं. ऐसे में सभी जनजाति के लोग अपनी पूजा-पद्धति के अनुसार धार्मिक झंडा का इस्तेमाल करेंगे तो आदिवासी समाज एकजुट के बजाय बिखरी हुई दिखाई देगी.

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