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कुम्हारों की चाक पर चाइनीज लाइटों का पड़ रहा असर, लागत जितनी नहीं हो पाती आमदनी

देश भर में दीपावली की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं. कुम्हार मिट्टी के दीयों को आखिरी स्वरूप देने में लगे हैं. उनकी हर साल की तैयारी और बाजार में घटती मिट्टी के दीयों की मांग को लेकर पेश है उनसे खास बातचीत.

दीये बनाता कुम्हार
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Published : Oct 24, 2019, 7:31 PM IST

रांची: इस साल अक्टूबर में आने वाली 27 तारीख को दीपावली का त्योहार मनाया जाएगा. राजधानी में भी तैयारियां जोरों पर हैं. इधर कुम्हार भी दीयों को रंगने के काम पर जुटे हैं. बता दें कि कुम्हार कई महीने पहले से ही दीये बनाने में जुट जाते हैं. मिट्टी की खरीदारी से लेकर उनको आकार देना और फिर रंगने का काम, कुम्हार का परिवार मिलकर करता है.

देखें पूरी खबर

ये भी पढ़ें-चोरों ने ज्वेलरी शॉप को बनाया निशाना, तिजोरी ही उठाकर हो गए चंपत

कुम्हार बताते हैं कि लगभग 400 से 500 दीये तैयार करने में 6-7 महीने लग जाते हैं. उनका कहना है कि अब दीये बनाने के लिए भी मिट्टी आसानी से नहीं मिलती. वहीं, जितना खर्च दीये बनाने में लग जाते हैं उतनी आमदनी भी नहीं हो पाती. वहीं, कुम्हार बताते हैं कि सरकार की ओर से भी उन्हें कोई मदद नहीं मिलती.

बाजार में बढ़ते चाइनीज लाइटों की मांग और मिट्टी के दीयों की तरफ लोगों का घटता रूझान कुम्हारों पर भारी पड़ रहा है. हालात ऐसे हो चुके हैं कि अब युवा इस पेशे को अपनाने से कतराते हैं. ऐसे में अब देखना है कि आने वाले सालों में दीयों की जगह क्या चाइनीज लाइटें ले लेंगी.

रांची: इस साल अक्टूबर में आने वाली 27 तारीख को दीपावली का त्योहार मनाया जाएगा. राजधानी में भी तैयारियां जोरों पर हैं. इधर कुम्हार भी दीयों को रंगने के काम पर जुटे हैं. बता दें कि कुम्हार कई महीने पहले से ही दीये बनाने में जुट जाते हैं. मिट्टी की खरीदारी से लेकर उनको आकार देना और फिर रंगने का काम, कुम्हार का परिवार मिलकर करता है.

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कुम्हार बताते हैं कि लगभग 400 से 500 दीये तैयार करने में 6-7 महीने लग जाते हैं. उनका कहना है कि अब दीये बनाने के लिए भी मिट्टी आसानी से नहीं मिलती. वहीं, जितना खर्च दीये बनाने में लग जाते हैं उतनी आमदनी भी नहीं हो पाती. वहीं, कुम्हार बताते हैं कि सरकार की ओर से भी उन्हें कोई मदद नहीं मिलती.

बाजार में बढ़ते चाइनीज लाइटों की मांग और मिट्टी के दीयों की तरफ लोगों का घटता रूझान कुम्हारों पर भारी पड़ रहा है. हालात ऐसे हो चुके हैं कि अब युवा इस पेशे को अपनाने से कतराते हैं. ऐसे में अब देखना है कि आने वाले सालों में दीयों की जगह क्या चाइनीज लाइटें ले लेंगी.

Intro:चाक में घूमती कुम्हारों की जिंदगी, चाइना लाइट कुम्हारों की दिवाली को कर रहा है फीका

रांची

बाइट--1-कुम्हार
बाइट--2-कुम्हार
बाइट--3-कुम्हार

चाक पर कुमारों की जिंदगी दीपावली के त्यौहार के साथ ही घूम रही है। दिवाली के आने से पहले ही जहां पूरा देश रोशनी के त्योहार को लेकर तैयारी कर रहा है वही कुम्हारों के चाक की रफ्तार भी पकड़ चुकी है इन दिनो दिन दुगुनी और रात चौगुनी कर कुम्हार मिट्टी को एक आकार देने में लगे हैं ताकि उनकी जिंदगी बेहतर तरीके से चल सके लेकिन कुम्हारों के चेहरे की खुशी को चाइनीस आइटम फीका कर रहे

चाक की रफ्तार के साथ मिट्टी को आकार देने का यह हुनर कुम्हारों के पास है और दिवाली से पहले बढ़ती जांच की रफ्तार से कुम्हार अपनी जिंदगी संवारने में लगे हैं। मिट्टी दिए, मिट्टी के घोड़े,हाथी खिलौने इन कुम्हारों के हुनर का परिचय है और कुम्हार दिवाली की तैयारी में लगे हैं




Body:एक तरफ जहां मेहनत कश कुम्हार मिट्टी को आकार देकर उसे बेशकीमती बना रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ बाजारों में चाइनीस आइटम का दबदबा इन कुम्हारों की चेहरे की खुशी फीकी कर रहा है कुम्हारों की मानें तो आज चाइना के प्रोडक्ट मार्केट में हावी हो चुके हैं जिसकी वजह से साल भर का यह त्यौहार भी इन्हें उतनी खुशी नहीं दे पाता जितनी पहले दिया करता था आज लोग चाइनीस प्रोडक्ट की तरफ आकर्षित हो रहे हैं लड़खड़ाते हुए जुबान से कुमार कहते हैं कि अगर यही दिन रहा तो आने वाली उनकी पीढ़ी अपने इस हुनर से तौबा कर लेगी।क्योंकि जितनी मेहनत मिट्टी की समान बनाने में लगती है उतना आमदनी नही मिल पाता है


हम लोगो को दिवाली के दौरान अपने घर को रोशन करना ही हमारी जिम्मेदारी नहीं बल्कि जरूरत है तो उन गरीब कुम्हारों के चेहरे पर मुस्कान लाने की जो अपने हुनर से मिट्टी को आकार देते हैं और दीपावली में हमारे घर को रोशन करते हैं इसीलिए ईटीवी भारत भी आपसे गुजारिश करता है इस दिवाली देसी वाली दीवाली मनाए


Conclusion:
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