रांची: जिले के चर्चित फायरिंग केस में फंसे डीएसपी ने हाईकोर्ट में पिटिशन देकर केस में राहत देने की गुहार लगाई है. पुलिसकर्मियों की तरफ से एक ट्रक चालक से वसूली और उसे गोली मारने के साथ-साथ फर्जी हथियार प्लांट कर फंसाने के मामले में आरोपी डीएसपी मजरूल होदा ने हाईकोर्ट की शरण ली है. इस मामले में डीएसपी ने खुद को निर्दोष बताते हुए हाईकोर्ट में अपने खिलाफ हुए केस क्वैश करने का पिटिशन दायर किया है.
क्या है पिटिशन का आधार
डीएसपी मजरूल होदा ने हाईकोर्ट में दायर की पिटिशन में बताया है कि वारदात के बाद इस मामले में धनबाद के तत्कालीन एसएसपी सुरेंद्र झा ने अपनी जांच रिपोर्ट दी थी. जांच रिपोर्ट में डीएसपी को विभागीय काम में लापरवाही का दोषी पाया गया था. डीएसपी ने इस रिपोर्ट को आधार माना है. वहीं डीएसपी होदा ने यह तर्क दिया है कि उनके खिलाफ अभियोजन स्वीकृति के लिए बगैर चार्जशीट दायर कर दिया गया, जबकि सरकारी पदाधिकारी होने के कारण पहले अभियोजन स्वीकृति के लिए जाना चाहिए था. कोर्ट में दायर की पिटिसन में बताया गया है कि चार्जशीट होने के बाद उनके खिलाफ गृह विभाग से अभियोजन स्वीकृति ली गई थी.
सीआईडी की तरफ से हो जवाब तैयार
पूरे मामले में अब सीआईडी की तरफ से जवाब तैयार किया जा रहा है. सीआईडी इस संबंध में जल्द ही अपना पक्ष कोर्ट में दायर करेगी. गौरतलब है कि धनबाद मे पुलिसवालों की तरफ से ट्रक चालक से वसूली और उसे गोली मारकर फर्जी हथियार प्लांट करने के मामले में सीआईडी ने बाघमारा के तत्कालीन डीएसपी मजरूल होदा, तत्कालीन हरिहरपुर थानेदार संतोष रजक और इंस्पेक्टर डीएन मिश्रा खिलाफ चार्जशीट दायर की थी. अब इसी मामले को लेकर डीएसपी हाईकोर्ट की शरण में पहुंचे हैं.
क्या है पूरा मामला
धनबाद के हरिहरपुर थाना क्षेत्र में 13 जून 2016 की रात तत्कालीन डीएसपी बाघमारा मजरूल होदा और तत्कालीन हरिहरपुर थानेदार संतोष रजक ने सादे लिबास में चेकिंग लगाई थी. इसी बीच ट्रक लेकर चालक मोहम्मद नाजिम वहां से गुजर रहा था. जब अधिकारियों ने उसे रोकने की कोशिश की तो वह तेजी से भागने लगा. सीआईडी के चार्जशीट के मुताबिक पुलिस अधिकारियों ने तब उसे गोली मार दी थी. ट्रक चालक उस दौरान जख्मी हुआ था. जख्मी होने के बाद चालक ने अपना बयान दिया था कि सादे लिबास में पुलिस को देख कर उसे लगा कि अपराधियों ने उसे रुकने का इशारा किया है, इसलिए उसने नजदीक के पुलिस स्टेशन में जाने के लिए अपनी गाड़ी तेज की थी. वहीं पुलिस अधिकारियों ने गोली मारने के बाद एक पिस्टल, दो खोखे और कुछ कारतूस जब्ती दिखाते हुए यह बताया था कि ट्रक चालक और कई अन्य ने मिलकर पुलिस पर गोलियां चलाई थी.
मामले में की गई दो एफआईआर दर्ज
इस मामले में दो एफआईआर दर्ज की गई थी. एक ट्रक चला के बयान पर जिसमें इंस्पेक्टर और डीएसपी दोषी पाए गए थे. इस मामले में उनके खिलाफ आर्म्स एक्ट में चार्जशीट दाखिल की गई थी. वहीं दूसरी एफआईआर पुलिस की ओर से ट्रक चालक पर आर्म्स एक्ट में दर्ज कराई गई थी, जो अनुसंधान में गलत साबित हुई थी. पूरे मामले में जांच का जिम्मा तत्कालीन थानेदार इंस्पेक्टर उमेश कछप को बनाया गया था. जांच के दबाव की वजह से इंस्पेक्टर उमेश ने थाने में ही सुसाइड कर लिया था, जिसके बाद इस मामले को लेकर जमकर हंगामा हुआ था.