रांचीः झारखंड में प्राकृति पर्व सरहुल की धूम है. प्रकृति को संरक्षित करने के लिए मनाया जानेवाला यह त्योहार आदिवासियों के लिए खास है. इस अवसर पर सोमवार को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन रांची के आदिवासी हॉस्टल और सिरमटोली स्थिति केंद्रीय सरना समिति की ओर से आयोजित सरहुल शोभा यात्रा में शामिल हुए. शोभा यात्रा में मुख्यमंत्री के साथ साथ पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय ने पारंपरिक तरीके से पूजा अर्चना की और लोगों को सरहुल की बधाई दी.
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केंद्रीय सरना समिति की ओर से आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन मांदर की थाप पर जमकर झूमे. इस दौरान बड़ी संख्या में आदिवासी महिला-पुरुष मुख्यमंत्री के साथ पारंपरिक गीत नृत्य किया. आदिवासी परिधान पहने मुख्यमंत्री ने छोटे छोटे बच्चों के साथ फोटो खिंचवाई. वहीं, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय ने सरहुल की प्रासंगिता बताते हुए कहा कि प्रकृति को संरक्षित करना जरूरी है.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्यवासियों को सरहुल की बधाई देते हुए कहा कि सरहुल पर्व आदिवासियों की सभ्यता और संस्कृति की पहचान है. आदिवासी द्वेष और घृणा से दूर होकर प्रकृति की पूजा करते हैं. यही वजह है कि आदिवासी शब्द से ही हमारी पहचान प्रकृति रक्षक के रुप में होती है. उन्होंने कहा कि जल, जंगल और जमीन हमारा है. यह समाप्त हो जायेगा तो आदिवासी की पहचान समाप्त हो जायेगी. उन्होंने कहा कि हमारी सरकार ने सिरमटोली सरना स्थल का जीर्णोद्धार करने का निर्णय लिया है, ताकि आनेवाले पीढ़ी हमारी संस्कृति को जान सके.
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मुख्यमंत्री ने कहा कि हम समाज के जड़ में रहने वाले लोग हैं. उन्होंने कहा कि हमारा दायित्व है अपनी सभ्यता को बचाकर रखें. मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य के सभी सरना स्थल को संरक्षित करने के लिए सरकार ने कदम उठाए हैं. भगवान से यही प्रार्थना करुंगा कि इस मौके पर यहां आनेवाले सभी को सकुशल रखें.
प्रकृति पर्व सरहुल को लेकर उत्साह चरम पर है. रांची की सड़कों पर झूमते नाचते गाते लोगों की यह टोली प्रकृति को संरक्षित करने के लिए आह्वान कर रहे हैं. आदिवासी परिधानों में सजे महिलाओं और पुरुषों की टोली जल, जंगल और जमीन को बचाने का संदेश दे रहे हैं. घरों और सरना स्थलों पर पारंपरिक रूप से पूजा अर्चना की और विभिन्न सरना समितियों की ओर से शोभा यात्रा निकाली गई. मांदर की थाप पर नाचते गाते लोगों की यह टोली हरमू सरना समिति से जुड़े आदिवासियों की है, जो नंगे पांव अलवर्ट एक्का चौक तक पहुंचे.