रांची : 15 नवंबर 2000 को सपनों का झारखंड देश के मानचित्र पर आया था. बिहार के सौतेलेपन का साफ असर झारखंड पर दिखा था. अलग राज्य का गठन होते ही बाबूलाल मरांडी पहले मुख्यमंत्री बने और उनके कार्यकाल की शुरुआत होते ही बदहाल सड़कें चमक उठी थी. लोगों को उम्मीद थी कि झारखंड राज्य का विकास बड़े पैमाने पर होगा. क्योंकि यह राज्य खनिज संपदा से परिपूर्ण था लेकिन यह उम्मीद उस समय बेमानी साबित हुई. जब एक के बाद एक भ्रष्टाचार के मामले सामने आने लगे.
कई छोटे-बड़े घोटाले आने लगे सामने
ऐसे में नौकरियों में डोमिसाइल के मुद्दे ने इस राज्य को एक अलग रास्ते पर धकेल दिया. इसके बाद ही शुरू हुआ राजनीतिक अस्थिरता का दौर जिसकी आंच में बाबूलाल मरांडी को अपनी कुर्सी भी गंवानी पड़ गई. इसके बाद साल 2014 के चुनाव से पहले तक अर्जुन मुंडा तीन बार, शिबू सोरेन तीन बार, मधु कोड़ा एक बार और हेमंत सोरेन एक बार मुख्यमंत्री बने. इस दौरान खासकर मधु कोड़ा के कार्यकाल में भ्रष्टाचार का दौर शुरू हुआ. कोयला खदान आवंटन में भ्रष्टाचार, 34वें राष्ट्रीय खेल के आयोजन सामग्री खरीदने के नाम पर भ्रष्टाचार, दवा खरीदने के नाम पर भ्रष्टाचार जैसे कई छोटे-बड़े घोटाले सामने आने लगे.
कई मंत्री, पदाधिकारियों पर घोटाले के आरोप
यहां तक कि राज्य स्तर पर पुलिस और प्रशासन के पदाधिकारियों की नियुक्ति में घोटाले के कारण जेपीएससी जैसे संस्थान विवादों में घिरे रहे. झारखंड पहला ऐसा राज्य बना जिसके पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा को कोयला खदान आवंटन घोटाले मामले में जेल तक की हवा खानी पड़ी. यही नहीं भ्रष्टाचार और आय से अधिक संपत्ति मामले में तत्कालीन मंत्री भानु प्रताप शाही, कमलेश सिंह, हरिनारायण राय, बंधु तिर्की, एनोस एक्का के अलावा कई वरीय पदाधिकारी सलाखों के पीछे गए. वह दौर था जब झारखंड से बाहर झारखंड के लोगों को भ्रष्ट स्टेट का नागरिक तक कहा जाने लगा था.
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विकास की गाड़ी पटरी से उतरी
यही वजह थी कि उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ के साथ अलग राज्य बना झारखंड विकास के पथ पर लगातार पीछे जाता रहा. इस बीच 2014 के चुनाव के बाद पहली बार एक स्थाई सरकार बनने पर झारखंड को एक नई पहचान मिली. हालांकि राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने बाबूलाल मरांडी का मानना है कि उनके 28 महीने के कार्यकाल खत्म होने के साथ ही राज्य के विकास की गाड़ी पटरी से उतर गई थी. लेकिन अब राज्य बालिग हो गया है और एक बार फिर यहां विकास तेजी से होगा. उन्होंने कहा है कि उनके कार्यकाल में विकास का कार्य तेजी से चल रहा था. लेकिन उसके बाद से ही राज्य में लूट और भ्रष्टाचार बढ़ती गई. आलम यह रहा कि अन्य राज्यों की अपेक्षा झारखंड का विकास नहीं हो पाया और यहां के लोगों का सपना भी अधूरा रह गया.