रांचीः एनडीए ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है. उनकी उम्मीदवारी तय होने के बाद से भाजपा के तमाम नेता हर मोर्चे पर इस बात को उठा रहे हैं कि आजादी के बाद पहली बार आदिवासी समाज की बेटी को इतना बड़ा सम्मान मिला है. वहीं, दूसरी तरफ विपक्ष का कहना है कि इस पद की उम्मीदवारी को आदिवासियत से नहीं जोड़ा जाना चाहिए. इसपर भाजपा एसटी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष समीर उरांव ने कहा कि द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाए जाने के बाद से देश का जनजातीय समुदाय गौरान्वित महसूस कर रहे हैं. समाज के लोग पीएम मोदी को दिल से धन्यवाद दे रहे हैं. आदिवासियत की बात कहकर राजनीति करने वालों को याद करना चाहिए कि उनलोगों ने सिर्फ इस समाज के लिए बातें की है. लेकिन किया कुछ नहीं. उन्होंने कहा कि भाजपा भाषण में विश्वास नहीं करती. समाज के हर वर्ग के सशक्तिकरण के लिए एनडीए के इस निर्णय से भारत फिर से जगत गुरू वाले दौर की तरफ कदम बढ़ा चुका है.
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यह पूछे जाने पर कि जब भाजपा आदिवासी समाज की इतनी बड़ी पैरोकार है तो फिर 2019 के चुनाव में सिर्फ दो एसटी सीटें ही क्यों जीत पाई. क्योंकि 28 एसटी सीटों में 19 सीट झामुमो को, 6 सीट कांग्रेस को एक सीट जेवीएम के खाते में गये थे. इसपर समीर उरांव ने कहा कि चुनावी रिजल्ट बिल्कुल अलग मैटर होता है. उन्होंने कहा कि जब भी आदिवासियों ने किसी दल को ज्यादा प्रतिनिधत्व दिया, वहीं पार्टी सत्ता में काबिज हुई. उन्होंने कहा कि 2014 में जब भाजपा की सरकार बनी, तब किसी ने नहीं पूछा कि क्यों इतनी बड़ी जीत हुई.
समीर उरांव ने कहा कि पेसा कानून लागू करने को लेकर भाजपा बेहद गंभीर है. मध्य प्रदेश में इस दिशा में काम चल रहा है. झारखंड में इसे लागू करने के लिए स्वरूप ढूंढा जा रहा है. इसी वजह से आदिवासी आयोग की पहल हुई ताकि फीडबैड आए. लेकिन वर्तमान सरकार ने इसको ठंडे बस्ते में डाल दिया. वर्तमान सरकार सिर्फ खुद को आदिवासी हितैषी बोलती है. उन्होंने भरोसे के साथ कहा कि 2024 में जब भाजपा की सरकार बनेगी तो यहां पेसा कानून के तहत आदिवासी समाज को सशक्त बनाने के लिए पहल होगा.
यह पूछे जाने पर कि नवंबर 2020 में सर्वसम्मति से विधानसभा में आदिवासी सरना धर्म कोड पारित हुआ था. लेकिन जनगणनना कॉलम में इसको जगह क्यों नहीं मिली. इसपर समीर उरांव ने कहा कि यह भावनात्मक विषय है. आदिवासी समाज को मांगना भी चाहिए. लेकिन यह समझना होगा कि धर्म कोड क्या सिर्फ एक राज्य पर आधारित हो सकता है. उन्होंने इसे महज राजनीतिक हथकंडा बताया. उन्होंने कहा कि आदिवासी से इसाई धर्म अपनाने वाले लोग ही इसे मुद्दा बना रहे हैं. वे लोग किस अधिकार के साथ सरना की बात कर रहे हैं. लेह लद्दाख, अरूणाचल प्रदेश समेत देश के कई राज्यों में आदिवासी हैं. जाहिर है सर्वसम्मति बनाए बगैर आदिवासी सरना धर्म कोड का कोई मतलब नहीं है.
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समीर उरांव से पूछा गया कि पूर्ववर्ती रघुवर सरकार ने धर्मांतरण बिल (झारखंड धर्म स्वतंत्र) विधेयक 2017 में पारित कराया. क्या आदिवासी से इसाई बने लोगों को आरक्षण मिलना चाहिए. इसपर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइन का हवाला दिया और कहा कि आदिवासी से ईसाई बने लोगों को किसी भी सूरत में आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए. इसको लेकर भाजपा गंभीर है.
2019 के चुनाव में एसटी सीटों पर भाजपा की करारी हार के सवाल पर उन्होंने कहा कि इसका जवाब 2024 के चुनाव के वक्त दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि झारखंड के मुख्यमंत्री कहते हैं कि अगर केंद्र का सहयोग मिला तो झारखंड को कुछ वर्षों में विकसित राज्य बना देंगे. लेकिन राज्य सरकार को जवाब देना चाहिए कि कोविड के समय केंद्र ने हर तरह से मदद की. लेकिन सरकार की गंभीरता इससे लगायी जा सकती है कि यहां ढंग से वैक्सीनेशन नहीं हो पाया है. वैक्सीन बर्बाद किये गये. केंद्र सरकार कई मद में राशि दे रही है. 42 विभागों के पैसों का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है. महाराष्ट्र के बाद झारखंड की बारी के सवाल पर उन्होंने कहा कि हमारे पास संख्या बल नहीं है. इसलिए हम दावे के साथ नहीं कह सकते हैं कि आगे क्या होगा. इसपर शीर्ष नेताओं की नजर है.