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क्या झारखंड में सचमुच लीडरशिप क्राइसिस से गुजर रही है बीजेपी!

झारखंड में बीजेपी सत्ता से तो पहले ही बेदखल हो चुकी है, लेकिन अब उसे पार्टी का खेवनहार नहीं मिल रहा. विधानसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास और प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा ने हार की नैतिक जिम्मेदारी ली. हैरत की बात यह है कि इन नतीजों के बाद न तो विधानसभा चुनाव के प्रभारी ओम माथुर कहीं नजर आए और न ही सह प्रभारी नंदकिशोर यादव दिखे.

leadership crisis in Jharkhand
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Published : Jan 9, 2020, 6:07 PM IST

Updated : Jan 10, 2020, 10:24 AM IST

रांची: झारखंड की सत्ता में अब तक की सबसे लंबी पारी खेलने वाली बीजेपी मौजूदा दौर में अपने सबसे बुरे राजनीतिक वक्त से गुजर रही है. पिछले 19 सालों में राज्य में 11 मुख्यमंत्री हुए, जिसमें बीजेपी के 6 चेहरे रहे. वहीं, सबसे लंबे समय तक राज्य की बागडोर भी बीजेपी ने संभाली, लेकिन राजनीति के मौजूदा दौर में बीजेपी लीडरशिप क्राइसिस से गुजर रही है.

देखिए स्पेशल स्टोरी

नतीजों के बाद नहीं दिखे विधानसभा प्रभारी
विधानसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास और प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ ने हार की नैतिक जिम्मेदारी ली. हैरत की बात यह है कि इन नतीजों के बाद न तो विधानसभा चुनाव के प्रभारी ओम माथुर कहीं नजर आए और न ही सह प्रभारी नंदकिशोर यादव दिखे.

जनजातीय सीटों पर सबसे बुरा रहा प्रदर्शन
पूरे चुनाव में पार्टी ने जनजातीय आबादी को अपनी तरफ आकृष्ट करने के लिए हर फार्मूला अपनाया, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से 28 में से 2 सीट केवल बीजेपी के खाते में आई. यह अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन रहा. 2005 में बीजेपी को 9 एसटी सीटें हासिल हुईं थी. 2009 में भी यह आंकड़ा बरकरार रहा, जबकि 2014 में 10 एसटी सीटें बीजेपी जीत पाई थी. वहीं, 2019 में पार्टी को 2 सीटों पर से संतोष करना पड़ा. जबकि बाकी की 26 सीटों में से छह कांग्रेस के खाते में गई. अगर आंकड़ों को देखें तो झामुमो और कांग्रेस की स्थिति अनुसूचित जनजाति की सीटों पर पहले से बेहतर हुई है.

ये भी पढ़ें: RJD का अभिनंदन समारोह, मंत्री सत्यानंद भोक्ता को किया गया सम्मानित
बाबूलाल मरांडी की वापसी की है चर्चा
प्रदेश में पार्टी की लीडरशिप क्राइसिस को लेकर सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं, क्योंकि राजनीतिक हलकों में झाविमो सुप्रीमो और राज्य के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के बीजेपी में घर वापसी के संकेत मिल रहे हैं. वैसे तो इसकी आधिकारिक और औपचारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन इसको लेकर बीजेपी और झाविमो के अंदरखाने चर्चाएं तेज हैं. इसे यूं भी समझा जा सकता है कि जेवीएम ने अभी बीजेपी के खिलाफ कड़े शब्दों का प्रयोग फिलहाल बंद रखा है. वहीं, दूसरी तरफ मरांडी मीडिया से लगातार दूरी बनाए हुए हैं.

नेता प्रतिपक्ष के रूप में अमर बाउरी का नाम
हालांकि, पार्टी सूत्रों की यकीन करें तो नेता प्रतिपक्ष के रूप में चंदनकियारी से विधायक अमर बाउरी का नाम भी काफी तेजी से ऊपर बढ़ा है, लेकिन जब तक मरांडी को लेकर तस्वीर साफ नहीं हो जाती, तब तक केवल कयास लगाए जा रहे हैं. अंदरूनी सूत्रों की माने तो खरमास के बाद 14 जनवरी को निकलने वाले सूरज के साथ तस्वीर साफ हो पाएगी.

ये भी पढे़ं: कपकपाती ठंड और बारिश से लोगों का जनजीवन अस्त-व्यस्त, कामकाज में हो रही खासा परेशानी
क्या दावा है बीजेपी और कांग्रेस का
बीजेपी ने दावा किया कि नेता प्रतिपक्ष को लेकर थोड़ा विलंब हो रहा है, लेकिन यह तय है कि जिस तरह पार्टी के नेता झारखंड के प्रहरी की भूमिका में नजर आएंगे. उसी तरह भारतीय जनता पार्टी जिसने झारखंड को बनाया झारखंड को संवारा उसे लूटने नहीं देंगे. वहीं, कांग्रेस विधायक दल के नेता आलमगीर आलम ने कहा कि एक बार बीजेपी ने कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर ट्वीट किया था कि कांग्रेस नेतृत्व विहीन हो गई है. आज झारखंड में बीजेपी की वही हालत हो गई है.

रांची: झारखंड की सत्ता में अब तक की सबसे लंबी पारी खेलने वाली बीजेपी मौजूदा दौर में अपने सबसे बुरे राजनीतिक वक्त से गुजर रही है. पिछले 19 सालों में राज्य में 11 मुख्यमंत्री हुए, जिसमें बीजेपी के 6 चेहरे रहे. वहीं, सबसे लंबे समय तक राज्य की बागडोर भी बीजेपी ने संभाली, लेकिन राजनीति के मौजूदा दौर में बीजेपी लीडरशिप क्राइसिस से गुजर रही है.

देखिए स्पेशल स्टोरी

नतीजों के बाद नहीं दिखे विधानसभा प्रभारी
विधानसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास और प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ ने हार की नैतिक जिम्मेदारी ली. हैरत की बात यह है कि इन नतीजों के बाद न तो विधानसभा चुनाव के प्रभारी ओम माथुर कहीं नजर आए और न ही सह प्रभारी नंदकिशोर यादव दिखे.

जनजातीय सीटों पर सबसे बुरा रहा प्रदर्शन
पूरे चुनाव में पार्टी ने जनजातीय आबादी को अपनी तरफ आकृष्ट करने के लिए हर फार्मूला अपनाया, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से 28 में से 2 सीट केवल बीजेपी के खाते में आई. यह अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन रहा. 2005 में बीजेपी को 9 एसटी सीटें हासिल हुईं थी. 2009 में भी यह आंकड़ा बरकरार रहा, जबकि 2014 में 10 एसटी सीटें बीजेपी जीत पाई थी. वहीं, 2019 में पार्टी को 2 सीटों पर से संतोष करना पड़ा. जबकि बाकी की 26 सीटों में से छह कांग्रेस के खाते में गई. अगर आंकड़ों को देखें तो झामुमो और कांग्रेस की स्थिति अनुसूचित जनजाति की सीटों पर पहले से बेहतर हुई है.

ये भी पढ़ें: RJD का अभिनंदन समारोह, मंत्री सत्यानंद भोक्ता को किया गया सम्मानित
बाबूलाल मरांडी की वापसी की है चर्चा
प्रदेश में पार्टी की लीडरशिप क्राइसिस को लेकर सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं, क्योंकि राजनीतिक हलकों में झाविमो सुप्रीमो और राज्य के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के बीजेपी में घर वापसी के संकेत मिल रहे हैं. वैसे तो इसकी आधिकारिक और औपचारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन इसको लेकर बीजेपी और झाविमो के अंदरखाने चर्चाएं तेज हैं. इसे यूं भी समझा जा सकता है कि जेवीएम ने अभी बीजेपी के खिलाफ कड़े शब्दों का प्रयोग फिलहाल बंद रखा है. वहीं, दूसरी तरफ मरांडी मीडिया से लगातार दूरी बनाए हुए हैं.

नेता प्रतिपक्ष के रूप में अमर बाउरी का नाम
हालांकि, पार्टी सूत्रों की यकीन करें तो नेता प्रतिपक्ष के रूप में चंदनकियारी से विधायक अमर बाउरी का नाम भी काफी तेजी से ऊपर बढ़ा है, लेकिन जब तक मरांडी को लेकर तस्वीर साफ नहीं हो जाती, तब तक केवल कयास लगाए जा रहे हैं. अंदरूनी सूत्रों की माने तो खरमास के बाद 14 जनवरी को निकलने वाले सूरज के साथ तस्वीर साफ हो पाएगी.

ये भी पढे़ं: कपकपाती ठंड और बारिश से लोगों का जनजीवन अस्त-व्यस्त, कामकाज में हो रही खासा परेशानी
क्या दावा है बीजेपी और कांग्रेस का
बीजेपी ने दावा किया कि नेता प्रतिपक्ष को लेकर थोड़ा विलंब हो रहा है, लेकिन यह तय है कि जिस तरह पार्टी के नेता झारखंड के प्रहरी की भूमिका में नजर आएंगे. उसी तरह भारतीय जनता पार्टी जिसने झारखंड को बनाया झारखंड को संवारा उसे लूटने नहीं देंगे. वहीं, कांग्रेस विधायक दल के नेता आलमगीर आलम ने कहा कि एक बार बीजेपी ने कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर ट्वीट किया था कि कांग्रेस नेतृत्व विहीन हो गई है. आज झारखंड में बीजेपी की वही हालत हो गई है.

Intro:इससे जुड़ा वीडियो और आलमगीर आलम की बाइट साथ मे है। जबकि बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता दीनदयाल बरनवाल की बाइट लाइव व्यू से bjp hemant byte स्लग से गयी है

रांची। प्रदेश कि सत्ता में अब तक की सबसे लंबी पारी खेलने वाली बीजेपी मौजूदा दौर में अपने सबसे बुरे राजनीतिक वक्त से गुजर रही है। पिछले 19 सालों में राज्य में 11 मुख्यमंत्री हुए जिसमें बीजेपी के 6 चेहरे रहे। वही सबसे लंबे समय तक राज्य की बागडोर भी बीजेपी ने संभाली लेकिन राजनीति के मौजूदा दौर में बीजेपी लीडरशिप क्राइसिस से गुजर रही है।

एक तरफ जहां यह पहला मौका है जब विधानसभा सत्र के दौरान पार्टी बिना नेता के सक्रिय रही। वहीं प्रदेश में संगठन के मोर्चे पर भी अभी तक कोई नया चेहरा उभर कर नहीं आया है। विधानसभा चुनाव में अब तक के सबसे न्यून प्रदर्शन के साथ बीजेपी महज 25 सीटों पर सिमट कर रह गई। उनमें वरिष्ठ नेताओं की अगर बात करें तो सीपी सिंह के अलावा एक दो नाम और लिए जा सकते हैं लेकिन यह वैसे नाम है जिनकी स्वीकार्यता राज्य स्तर पर खुद सवालों के घेरे में है।




Body:नतीजों के बाद नहीं दिखे विधानसभा प्रभारी
हैरत की बात यह है कि इस प्रदर्शन के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास और प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ ने हार की नैतिक जिम्मेदारी ली। हैरत की बात यह है कि इन नतीजों के बाद न तो विधानसभा चुनाव के प्रभारी ओम माथुर कहीं नजर आए नहीं सह प्रभारी नंदकिशोर यादव दिखे। यहां तक कि प्रदेश संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह भी पूरे सिंह से गायब हो गए।

जनजातीय सीटों पर सबसे बुरा रहा प्रदर्शन
पूरे चुनाव में पार्टी ने जनजातीय आबादी को अपनी तरफ आकृष्ट करने के लिए हर फार्मूला अपनाया लेकिन आश्चर्यजनक रूप से 28 में से 2 सीट केवल बीजेपी के खाते में आयी। यह अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन रहा। 2005 में बीजेपी को 9 एसटी सीटें हासिल हुई थी। 2009 में भी यह आंकड़ा बरकरार रहा। जबकि 2010 में 10 एसटी सीटें बीजेपी जीत पाई थी। वहीं 2019 में पार्टी को 2 सीटों पर से संतोष करना पड़ा। जबकि बाकी की 26 सीटों में से छह कांग्रेस के खाते में गई जबकि 19 पर झामुमो के विधायक चुनकर आए। वही एक सीट पर झाविमो के बंधु तिर्की चुनाव जीते। अगर आंकड़ों को देखें तो झामुमो और कांग्रेस की स्थिति अनुसूचित जनजाति की सीटों पर पहले से बेहतर हुई।




Conclusion:बाबूलाल मरांडी की वापसी की है चर्चा
प्रदेश में पार्टी की लीडरशिप क्राइसिस को लेकर सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि राजनीतिक हलकों में झाविमो सुप्रीमो और राज्य के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के बीजेपी में घर वापसी के संकेत मिल रहे हैं। वैसे तो इसकी आधिकारिक और औपचारिक पुष्टि नहीं हुई है लेकिन इसको लेकर बीजेपी और झाविमो के अंदर खाने चर्चाएं तेज है। इसे यूं भी समझा जा सकता है कि जेवीएम ने अभी बीजेपी के खिलाफ कड़े शब्दों का प्रयोग फिलहाल बंद रखा है। वहीं दूसरी तरफ मरांडी मीडिया से लगातार दूरी बनाए हुए हैं।

अमर बाउरी का नाम पर भी चर्चा हुई है नेता प्रतिपक्ष के रूप में
हालांकि पार्टी सूत्रों का यकीन करें तो नेता प्रतिपक्ष के रूप में चंदनक्यारी से विधायक अमर बाउरी का नाम भी काफी तेजी से ऊपर बाधा है लेकिन जब तक मरांडी को लेकर तस्वीर साफ नहीं हो जाती तब तक केवल कयास लगाए जा रहे हैं। अंदरूनी सूत्रों की मानें तो खरमास के बाद 14 जनवरी को निकलने वाला सूरज के साथ तस्वीर साफ हो पाएगी।

क्या दावा है बीजेपी और कांग्रेस का
बीजेपी ने दावा किया कि नेता प्रतिपक्ष को लेकर थोड़ा विलंब हो रहा है लेकिन यह तय है कि जिस तरह पार्टी के नेता झारखंड के प्रहरी की भूमिका में नजर आएंगे। उसी तरह भारतीय जनता पार्टी जिस ने झारखंड को बनाया झारखंड को संवारा उसे लूटने नहीं देंगे। जबकि कांग्रेस विधायक दल के नेता आलमगीर आलम ने कहा कि एक बार बीजेपी ने कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर ट्वीट किया था कि कांग्रेस नेतृत्व विहीन हो गई है। आज झारखंड में बीजेपी की वही हालत हो गई है। इसलिए इस तरह की बात बीजेपी कभी नहीं करनी चाहिए। आलम ने कहा कि बीजेपी ने हमेशा उलटफेर का काम किया है इसलिए उसकी यह स्थिति हुई है।
Last Updated : Jan 10, 2020, 10:24 AM IST
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