रांची: कैरीटस इंडिया, नई दिल्ली की ओर से वेबिनार के जरिए एक दिवसीय यूएन फूड सिस्टम डायलाग ऑन ग्रास रूट पर्सपेक्टिव्स फ्रॉम झारखंड का आयोजन किया गया. वेबिनार में बीएयू के नाहेप-कास्ट परियोजना के मुख्य अन्वेंशक डॉ एमएस मल्लिक ने झारखंड के संदर्भ में अग्रिम न्यायसंगत आजीविका में सामान मूल्य श्रृंखला के लिए उत्पादन और रोजगार को बढ़ावा विषय पर विशेष व्याख्यान दिया.
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डॉ मल्लिक ने झारखंड के किसानों विशेषकर एसटी, एससी और कमजोर वर्ग के बेहतर आजीविका और सामाजिक और आर्थिक उन्नयन में टिकाऊ एकीकृत कृषि प्रणाली को प्रोत्साहन देने पर जोर दिया. उन्होंने बताया कि भूमि आधारित आजीविका के दृष्टिकोण में सिंचाई सुविधा में सुधार और जल उपयोग दक्षता के उपयोग पर जोर, नकदी, बागवानी और चारा फसलों की आवश्यक तकनीकी को कृषि सहायता के साथ बढ़ावा, पशुधन (डेयरी, बकरी, मुर्गी पालन, मत्स्य पालन और सुअर पालन) के वैज्ञानिक प्रबंधन के विस्तारीकरण के साथ बाजार लिंकेज, बिक्री, प्रसंस्करण, स्टारेज के लिए किसानों के सामूहिक संगठन का गठन और निर्माण को प्राथमिकता देनी होगी. इन्हें क्रियाशील बनाए रखने के लिए किसानों को नियमित प्रशिक्षण और उनके क्षमता निर्माण के प्रयास करने होंगे. भूमिहीन और कम जोत वाले किसानों को मुर्गी पालन, बत्तख पालन, बकरी पालन और सुअर पालन से जोड़ने की आवश्यकता है.
गृह वाटिका को बना सकते हैं आजीविका का साधन
डॉ एमएस मल्लिक ने कहा कि गृह वाटिका के माध्यम को भी आजीविका का साधन बनाया जा सकता है. घर के आसपास भूमि के छोटे टुकड़े में एक एकीकृत वृक्ष, फसल, पशु उत्पादन प्रणाली को बढ़ावा देकर ग्रामीण क्षेत्रों के सामाजिक, आर्थिक स्थिति में सुधार लाया जा सकता है. गृह वाटिका में जैविक कृषि के माध्यम से साल भर सब्जी की खेती के साथ केला, पपीता, अमरूद और कटहल की खेती की जा सकती है, जो ग्रामीण क्षेत्रों के प्रबंधित भूमि उपयोग प्रणाली के सबसे पुराने रूपों में से एक है. इसे गांव की स्थिरता का प्रतीक माना जाता रहा है.