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BAU के सैकड़ों स्नातक छात्र करेंगे व्यावसायिक मशरूम की खेती, ईएलपी के बाद ही मिलेगी डिग्री

बीएयू के छात्रों को अपने घरों में ही व्यावसायिक मशरूम खेती करने को कहा गया है. इसे लेकर एग्रीकल्चर के डीन ने छात्रों को ऑनलाइन व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया. इसके साथ ही कहा गया कि इस टास्क को पूरा करने पर ही छात्रों को एग्रीकल्चर ग्रेजुएट की डिग्री मिलेगी.

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Published : Jun 4, 2021, 2:54 PM IST

BAU graduate students will do commercial mushroom cultivation in ranchi
बीएयू के छात्र

रांची: डीन एग्रीकल्चर डॉ. एमएस यादव के निर्देश पर 4 एग्रीकल्चर कॉलेज के छात्रों को ऑनलाइन व्यावहारिक प्रशिक्षण से घरों में व्यवसायिक मशरूम उद्यम प्रोजेक्ट करने को कहा गया है. कृषि स्नातक में अंतिम साल 8वें सेमेस्टर के सभी छात्रों के लिए एक्सपीरियंस लर्निंग प्रोग्राम (ईएलपी) अनिवार्य है. लॉकडाउन के दौरान 7वें सेमेस्टर में छात्रों ने स्थानीय ग्रामीण परिवेश में रूरल एग्रीकल्चरल वर्क एक्सपीरियंस (रावे) प्रोग्राम को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है.

ये भी पढ़ें- BAU में 3 दिवसीय राज्यस्तरीय किसान मेला का उद्घाटन, राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू रही मौजूद

डॉ. यादव ने बताया कि कोविड-19 दिशा-निर्देश के आधार पर सभी 4 एग्रीकल्चर कॉलेज के कुल 204 छात्र-छात्राएं ईएलपी गतिविधियों को अपने घरों में ही पूरा करेंगे. इस टास्क को पूरा करने पर ही छात्रों को एग्रीकल्चर ग्रेजुएट की डिग्री प्रदान की जाएगी. सभी छात्र-छात्राओं को वर्चुअल माध्यम से मशरूम उत्पादन की प्रौद्योगिकी की बारीकियों पर व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जा रहा है.


मशरूम का करेंगे उत्पादन
ईएलपी पाठ्यक्रम में सभी छात्रों को कोविड–19 के निर्देशों का पालन करते हुए अपने घरों में खाद्य प्रसंस्करण व सुरक्षा मानक के तहत आम, आचार और मशरूम उत्पादन प्रौद्योगिकी संबंधियों उद्यमों पर कार्य करने को कहा गया है. आम और आचार उद्यम का कार्य छात्रों ने पूरा कर लिया है. मशरूम उद्यम की शुरूआत के लिए बीएयू की मशरूम उत्पादन इकाई के फील्ड ओवरसियर मुनि प्रसाद की ओर से विभिन्न माध्यमों से छात्रों को 300 ग्राम के दो पैकेट में मशरूम बीज (स्पॉन) मुहैया कराया जा रहा. इस स्पाॉन से छात्र ग्रीष्मकालीन सफेद दूधिया मशरूम का उत्पादन करेंगे.


मशरूम उत्पादन करने के प्रति छात्र उत्साहित
रांची की छात्रा दिव्या राज भारती ने इस प्रोग्राम को छात्रों के लिए बेहद खास अनुभव बताया है. घर में ही मशरूम उत्पादन करने के प्रति सभी छात्र उत्साहित हैं. रांची की ही छात्रा मासूम अंसारी, गढ़वा की छात्रा रीतू गुप्ता व प्रेरणा, देवघर की छात्रा फातिमा अराईश व आलिया अख्तर एवं गोड्डा की छात्रा खुशबू शाहीन व छात्र आलोक नंदा ने ईएलपी कार्यक्रम को चुनौती एवं कौशल विकास का महत्वपूर्ण पल बताया है. कोरोना काल में सीमित संसाधन में घर में रहकर उद्यम की शुरुआत करने के इस अवसर को काफी सार्थक बताया है. छात्रों ने लॉकडाउन में अभिवावकों एवं पारिवारिक सदस्यों के लिए भी बेहद ज्ञानवर्धक एवं उपयोगी बताया है.

दूधिया सफेद मशरूम के गुण
बीएयू मशरूम उत्पादन इकाई के प्रभारी डॉ. नरेंद्र कुदादा ने बताया कि बड़े आकार के ग्रीष्मकालीन सफेद दूधिया मशरूम को दूध छत्ता भी कहा जाता है. यह विटामिन-सी और विटामिन-बी काम्प्लेक्स का मुख्य श्रोत है. इसके सूखे खुम्भी में पोषक तत्वों में 17.69 प्रतिशत प्रोटीन, 4.1 प्रतिशत वसा, 64.26 प्रतिशत कार्बोहाईड्रेट, 3.4 प्रतिशत रेशे एवं लवण, पोटैशियम, फ़ास्फ़ोरस, कैल्शियम तथा मैग्नीशियम आदि मुख्य रूप से पाए जाते हैं.

कैसे उगाया जाता है दूधिया मशरूम

  • पौधा रोग वैज्ञानिक डॉ. एचसी लाल ने बताया कि दूधिया मशरूम को धान के पुआल की कुट्टी पर उगाया जाता है. सबसे पहले कुट्टी को उबलते पानी में 2-3 घंटे तक भिगोकर या रसायनों (100 लीटर पानी में 10 ग्रा. बेभिस्टीन, 100 मि. ली. फार्मलीन के मिश्रण में 12 घंटे तक डुबोकर) विसंक्रमित किया जाता है. इसके बाद कुट्टी को निकालकर छायादार फर्श (पक्का) पर फैला देते है. जब उससे पानी का रिसना बंद हो जाता है, तब उसे पॉलिथीन बैग (60 X 40 से.मी., क्षमता 3 किलो) में भरकर स्पॉन की बिजाई कर दिया जाता है.
  • इसके बाद 5 सेमी तक कुट्टी डालकर फिर बिजाई करते है. बिजाई की तहों में 4 प्रतिशत बीज स्पॉन से की जाती है. फिर पॉलिथीन बैग में तीन चौथाई तक पानी भरा जाता है और बैग के खुले मुंह को रबर से बंद कर दिया जाता है.
  • वायु संचार के लिए बैग के ऊपरी भाग में 10-15 छिद्र बना दिए जाते हैं. बैग में कवक जाल की वृद्धि पूर्ण होने पर पॉलिथीन बैग को काटकर अलग कर लिया जाता है. अब इसमें 2.5 से.मी. मिट्टी का मोटी आवरण लगते है.
  • मिट्टी आवरण लगाने के 10-15 दिनों के बाद नन्हें छत्रक उभर आते हैं. इसके 5-6 दिनों के बाद छत्रक तैयार हो जाते हैं और इन्हें तोड़ लिया जाता है. छत्रकों को उंगलियों से घुमाकर जड़ सहित निकाल लेना चाहिए. इस प्रकार 3 से 4 तुड़ाई की जा सकती है. हर तुड़ाई के बाद पिण्डों पर पानी का छिड़काव किया जाना जरूरी है. एक बैग में 200 ग्राम मशरूम बीज (मूल्य रू. 20) की जरूरत होती है. एक बैग से एक-डेढ़ किलो मशरूम का उत्पादन मिलता है. जिसका बाजार मूल्य 200 रुपये है.

रांची: डीन एग्रीकल्चर डॉ. एमएस यादव के निर्देश पर 4 एग्रीकल्चर कॉलेज के छात्रों को ऑनलाइन व्यावहारिक प्रशिक्षण से घरों में व्यवसायिक मशरूम उद्यम प्रोजेक्ट करने को कहा गया है. कृषि स्नातक में अंतिम साल 8वें सेमेस्टर के सभी छात्रों के लिए एक्सपीरियंस लर्निंग प्रोग्राम (ईएलपी) अनिवार्य है. लॉकडाउन के दौरान 7वें सेमेस्टर में छात्रों ने स्थानीय ग्रामीण परिवेश में रूरल एग्रीकल्चरल वर्क एक्सपीरियंस (रावे) प्रोग्राम को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है.

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डॉ. यादव ने बताया कि कोविड-19 दिशा-निर्देश के आधार पर सभी 4 एग्रीकल्चर कॉलेज के कुल 204 छात्र-छात्राएं ईएलपी गतिविधियों को अपने घरों में ही पूरा करेंगे. इस टास्क को पूरा करने पर ही छात्रों को एग्रीकल्चर ग्रेजुएट की डिग्री प्रदान की जाएगी. सभी छात्र-छात्राओं को वर्चुअल माध्यम से मशरूम उत्पादन की प्रौद्योगिकी की बारीकियों पर व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जा रहा है.


मशरूम का करेंगे उत्पादन
ईएलपी पाठ्यक्रम में सभी छात्रों को कोविड–19 के निर्देशों का पालन करते हुए अपने घरों में खाद्य प्रसंस्करण व सुरक्षा मानक के तहत आम, आचार और मशरूम उत्पादन प्रौद्योगिकी संबंधियों उद्यमों पर कार्य करने को कहा गया है. आम और आचार उद्यम का कार्य छात्रों ने पूरा कर लिया है. मशरूम उद्यम की शुरूआत के लिए बीएयू की मशरूम उत्पादन इकाई के फील्ड ओवरसियर मुनि प्रसाद की ओर से विभिन्न माध्यमों से छात्रों को 300 ग्राम के दो पैकेट में मशरूम बीज (स्पॉन) मुहैया कराया जा रहा. इस स्पाॉन से छात्र ग्रीष्मकालीन सफेद दूधिया मशरूम का उत्पादन करेंगे.


मशरूम उत्पादन करने के प्रति छात्र उत्साहित
रांची की छात्रा दिव्या राज भारती ने इस प्रोग्राम को छात्रों के लिए बेहद खास अनुभव बताया है. घर में ही मशरूम उत्पादन करने के प्रति सभी छात्र उत्साहित हैं. रांची की ही छात्रा मासूम अंसारी, गढ़वा की छात्रा रीतू गुप्ता व प्रेरणा, देवघर की छात्रा फातिमा अराईश व आलिया अख्तर एवं गोड्डा की छात्रा खुशबू शाहीन व छात्र आलोक नंदा ने ईएलपी कार्यक्रम को चुनौती एवं कौशल विकास का महत्वपूर्ण पल बताया है. कोरोना काल में सीमित संसाधन में घर में रहकर उद्यम की शुरुआत करने के इस अवसर को काफी सार्थक बताया है. छात्रों ने लॉकडाउन में अभिवावकों एवं पारिवारिक सदस्यों के लिए भी बेहद ज्ञानवर्धक एवं उपयोगी बताया है.

दूधिया सफेद मशरूम के गुण
बीएयू मशरूम उत्पादन इकाई के प्रभारी डॉ. नरेंद्र कुदादा ने बताया कि बड़े आकार के ग्रीष्मकालीन सफेद दूधिया मशरूम को दूध छत्ता भी कहा जाता है. यह विटामिन-सी और विटामिन-बी काम्प्लेक्स का मुख्य श्रोत है. इसके सूखे खुम्भी में पोषक तत्वों में 17.69 प्रतिशत प्रोटीन, 4.1 प्रतिशत वसा, 64.26 प्रतिशत कार्बोहाईड्रेट, 3.4 प्रतिशत रेशे एवं लवण, पोटैशियम, फ़ास्फ़ोरस, कैल्शियम तथा मैग्नीशियम आदि मुख्य रूप से पाए जाते हैं.

कैसे उगाया जाता है दूधिया मशरूम

  • पौधा रोग वैज्ञानिक डॉ. एचसी लाल ने बताया कि दूधिया मशरूम को धान के पुआल की कुट्टी पर उगाया जाता है. सबसे पहले कुट्टी को उबलते पानी में 2-3 घंटे तक भिगोकर या रसायनों (100 लीटर पानी में 10 ग्रा. बेभिस्टीन, 100 मि. ली. फार्मलीन के मिश्रण में 12 घंटे तक डुबोकर) विसंक्रमित किया जाता है. इसके बाद कुट्टी को निकालकर छायादार फर्श (पक्का) पर फैला देते है. जब उससे पानी का रिसना बंद हो जाता है, तब उसे पॉलिथीन बैग (60 X 40 से.मी., क्षमता 3 किलो) में भरकर स्पॉन की बिजाई कर दिया जाता है.
  • इसके बाद 5 सेमी तक कुट्टी डालकर फिर बिजाई करते है. बिजाई की तहों में 4 प्रतिशत बीज स्पॉन से की जाती है. फिर पॉलिथीन बैग में तीन चौथाई तक पानी भरा जाता है और बैग के खुले मुंह को रबर से बंद कर दिया जाता है.
  • वायु संचार के लिए बैग के ऊपरी भाग में 10-15 छिद्र बना दिए जाते हैं. बैग में कवक जाल की वृद्धि पूर्ण होने पर पॉलिथीन बैग को काटकर अलग कर लिया जाता है. अब इसमें 2.5 से.मी. मिट्टी का मोटी आवरण लगते है.
  • मिट्टी आवरण लगाने के 10-15 दिनों के बाद नन्हें छत्रक उभर आते हैं. इसके 5-6 दिनों के बाद छत्रक तैयार हो जाते हैं और इन्हें तोड़ लिया जाता है. छत्रकों को उंगलियों से घुमाकर जड़ सहित निकाल लेना चाहिए. इस प्रकार 3 से 4 तुड़ाई की जा सकती है. हर तुड़ाई के बाद पिण्डों पर पानी का छिड़काव किया जाना जरूरी है. एक बैग में 200 ग्राम मशरूम बीज (मूल्य रू. 20) की जरूरत होती है. एक बैग से एक-डेढ़ किलो मशरूम का उत्पादन मिलता है. जिसका बाजार मूल्य 200 रुपये है.
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