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रांची में यहां 187 साल से की जाती है दुर्गा पूजा, आज भी कायम है पुरानी परंपरा

रांची में बड़ा तालाब दुर्गा मंदिर सबसे पुराना दुर्गा पूजा स्थल है. जहां 187 वर्षों से आज भी पारंपरिक रीति-रिवाज के साथ बदस्तूर पूजा जारी है. जिसमें आज तक किसी तरह का बदलाव नहीं आया है.

बड़ा तालाब दुर्गा मंदिर
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Published : Oct 6, 2019, 2:43 PM IST

रांची: राजधानी के बड़ा तालाब दुर्गा मंदिर में वर्षों से षष्ठी से ही परंपरागत तरीके से पूजा-अर्चना की शुरूआत की जाती है. भले ही वर्तमान समय में पूजा का स्वरूप बदल गया हो, लेकिन यहां की परंपरा में कोई बदलाव नहीं आया है.

देखें पूरी खबर

ये भी पढ़ें-रांची में यहां हो रहे हैं जीवंत झाकियों के जरिए माता के दर्शन, भक्तों की उमड़ रही भीड़

सन् 1832 से हो रही मां दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना

दरअसल, इस मंदिर में पौराणिक परंपरा के आधार पर ही मां दुर्गा की आराधना की जाती रही है. यह परंपरा लगभग 187 वर्षों से ही चली आ रही है. जानकारी के अनुसार 1832 से ही यहां मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जा रही है. उस समय से अब तक यहां मां दुर्गा की पूजा विधि-विधान से की जाती रही है.

मंदिर में षष्ठी को बेलवरण, सप्तमी को नेत्रदान, अष्टमी की पूजा और संधि बलि के बाद नवमी को नौ कन्या की पूजा की जाती है. वहीं, दशमी को हवन के बाद मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है. यहां पूजा करने वाले श्रद्धालुओं में मान्यता है कि यहां हर मनोकामना पूरी होती है.

पूजा के आयोजक चंदन किशोर तिवारी बताते हैं कि रांची का बड़ा तालाब दुर्गा मंदिर ही एक ऐसा मंदिर है, जहां सबसे पहले मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा का आयोजन किया जाना शुरू किया गया था. ऐसे में मां दुर्गा की पूजा का यह सबसे पुराना स्थल है. जहां आज भी पुराने रीति-रिवाज के हिसाब से पूजा अर्चना की जाती है.

रांची: राजधानी के बड़ा तालाब दुर्गा मंदिर में वर्षों से षष्ठी से ही परंपरागत तरीके से पूजा-अर्चना की शुरूआत की जाती है. भले ही वर्तमान समय में पूजा का स्वरूप बदल गया हो, लेकिन यहां की परंपरा में कोई बदलाव नहीं आया है.

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सन् 1832 से हो रही मां दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना

दरअसल, इस मंदिर में पौराणिक परंपरा के आधार पर ही मां दुर्गा की आराधना की जाती रही है. यह परंपरा लगभग 187 वर्षों से ही चली आ रही है. जानकारी के अनुसार 1832 से ही यहां मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जा रही है. उस समय से अब तक यहां मां दुर्गा की पूजा विधि-विधान से की जाती रही है.

मंदिर में षष्ठी को बेलवरण, सप्तमी को नेत्रदान, अष्टमी की पूजा और संधि बलि के बाद नवमी को नौ कन्या की पूजा की जाती है. वहीं, दशमी को हवन के बाद मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है. यहां पूजा करने वाले श्रद्धालुओं में मान्यता है कि यहां हर मनोकामना पूरी होती है.

पूजा के आयोजक चंदन किशोर तिवारी बताते हैं कि रांची का बड़ा तालाब दुर्गा मंदिर ही एक ऐसा मंदिर है, जहां सबसे पहले मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा का आयोजन किया जाना शुरू किया गया था. ऐसे में मां दुर्गा की पूजा का यह सबसे पुराना स्थल है. जहां आज भी पुराने रीति-रिवाज के हिसाब से पूजा अर्चना की जाती है.

Intro:रांची.राजधानी रांची में सबसे पुरानी दुर्गा पूजा स्थल जहां 187 वर्षों से आज भी पारंपरिक रीति रिवाज के साथ बदस्तूर पूजा जारी है. ये स्थल बड़ा तालाब दुर्गा मंदिर का है। जहां 1832 से ही मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती रही है और पारंपरिक विधि विधान से अब तक पूजा-अर्चना की जा रही है।


Body:बड़ा तालाब दुर्गा मंदिर में षष्टी से ही परंपरागत तरीके से वर्षों से पूजा अर्चना की शुरुवात होती है। भले ही वर्तमान समय में पूजा का स्वरूप बदलता गया हो।लेकिन यहां के परंपरा में कोई बदलाव नहीं किया गया है।बल्कि पौराणिक परंपरा के आधार पर ही यहां मां दुर्गा की आराधना की जाती रही है। 1832 से ही यंहा मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना की जाती रही है। जो और राजधानी के लिए सबसे पुरानी है। उस समय से अब तक यहां मां दुर्गा की पूजा विधि विधान से की जाती रही है। बड़ा तालाब दुर्गा मंदिर में षष्टी को बेल बरन, सप्तमी को नेत्रदान, अष्टमी को अष्टमी की पूजा और संधि बलि के बाद नवमी को नौ कन्या की पूजा की जाती है और दशमी को हवन के साथ मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है। यह परंपरा 187 वर्षों से ही चली आ रही है और इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है।


Conclusion:बड़ा तालाब दुर्गा मंदिर में पूजा के आयोजन करने वालों द्वारा पौराणिक रीति रिवाज में कोई बदलाव नहीं किया गया है। यही वजह है कि यहां पूजा करने वाले श्रद्धालुओं में मान्यता है कि यंहा हर मनोकामना पूर्ण होती है। पूजा के आयोजक चंदन किशोर तिवारी बताते हैं कि रांची का बड़ा तालाब दुर्गा मंदिर ही एक ऐसा मंदिर है। जहां सबसे पहले मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा का आयोजन किया जाना शुरू किया गया था। ऐसे में मां दुर्गा की पूजा का यह सबसे पुराना स्थल है।जहां आज भी पुराने रीति रिवाज के हिसाब से पूजा अर्चना की जाती रही है और कोई बदलाव नहीं किया गया है।
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