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रांची के साइंस सिटी का हाल बदहाल, जल्द नहीं जागा प्रशासन तो नवनिर्मित तारामंडल बन जाएगा खंडहर

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Published : Nov 29, 2019, 7:02 PM IST

रांची के साइंस सिटी का हाल बदहाल हो चुका है. रोचक जानकारियां और जिज्ञासाओं से भरे इस केंद्र की हालत इतनी खराब हो चुकी है कि यहां का कोई भी उपकरण सही तरीके से काम नहीं करता. यहां आने वाले छात्र और पर्यटक अब निराश ही लौटने को मजबूर हैं.

bad condition of science city of ranchi
साइंस सिटी का हाल बदहाल

रांची: राजधानी के चिरौंदी में स्थित विज्ञान केंद्र अनोखा है. इस विज्ञान केंद्र से विज्ञान संबंधित लगभग सारी जानकारियां और जिज्ञासाओं को दूर किया जा सकता है. लेकिन अधिकारियों की उदासीनता के कारण अब यह साइंस सिटी बदहाली की कगार पर है. हालांकि, ठीक इसी परिसर में 19 वर्षों बाद वराहमिहिर तारामंडल का निर्माण भी हुआ है. लेकिन अगर ऐसी ही स्थिति बनी रही तो आने वाले दिनों में विज्ञान केंद्र जैसी ही करोड़ों की लागत से बनी नवनिर्मित तारामंडल की हालत भी खराब होगी. बता दें कि विज्ञान केंद्र के 70 प्रतिशत इक्विपमेंट बदहाली के कगार पर है.

देखें पूरी खबर

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बहुउद्देशीय सोच के साथ रांची के चिरौंदी में साइंस सिटी का निर्माण करोड़ों रुपए खर्च कर किया गया था और इस परिसर में विज्ञान से संबंधित तमाम जिज्ञासाओं को निवारण भी किया जा सकता था. छात्र और आम लोग विज्ञान से संबंधित अच्छी-खासी जानकारियां यहां आकर हासिल करते थे. इस परिसर के भवन के अंदर पर्यावरण और प्राकृतिक रहस्य के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियां दी जाती रही है. एक से बढ़कर एक मॉडल के माध्यम से विज्ञान की तमाम जानकारियां यहां मिलती थी.

इस विज्ञान केंद्र की शुरुआत 29 नवंबर 2010 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के पहल से हुई थी. लगभग आठ एकड़ में फैले इस विज्ञान उद्यान में ध्वनि प्रकाश विज्ञान जैसे कई प्रदर्शन लगाए गए हैं, लेकिन कुछ दिनों बाद से ही यहां की स्थिति बद से बदतर होती गई. अधिकारियों की उदासीनता और निगरानी के अभाव में कुछ वर्षों में यहां के अधिकतर कीमती समान बदहाली की स्थिति में आ गये हैं और इस ओर ध्यान देने वाला अब तक कोई नहीं है.

वहीं, निदेशक गौरीशंकर गुप्ता का कहना है कि विज्ञान केंद्र में बेकार पड़े इक्विपमेंट को जल्द ही बदला जाएगा. उन्होंने बताया कि भारत सरकार की एजेंसी से एमओयू हुआ है, जिससे विज्ञान केंद्र की हालत में जल्द सुधार किया जाएगा. अब देखना यह है कि जब इतने बेहतरीन और शानदार इक्विपमेंट को संभाल कर रखने में तंत्र विफल रहा तो क्या गारंटी है कि जो नए उपकरण लगेंगे उन्हें संभाल कर रखा जाएगा.

रांची: राजधानी के चिरौंदी में स्थित विज्ञान केंद्र अनोखा है. इस विज्ञान केंद्र से विज्ञान संबंधित लगभग सारी जानकारियां और जिज्ञासाओं को दूर किया जा सकता है. लेकिन अधिकारियों की उदासीनता के कारण अब यह साइंस सिटी बदहाली की कगार पर है. हालांकि, ठीक इसी परिसर में 19 वर्षों बाद वराहमिहिर तारामंडल का निर्माण भी हुआ है. लेकिन अगर ऐसी ही स्थिति बनी रही तो आने वाले दिनों में विज्ञान केंद्र जैसी ही करोड़ों की लागत से बनी नवनिर्मित तारामंडल की हालत भी खराब होगी. बता दें कि विज्ञान केंद्र के 70 प्रतिशत इक्विपमेंट बदहाली के कगार पर है.

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बहुउद्देशीय सोच के साथ रांची के चिरौंदी में साइंस सिटी का निर्माण करोड़ों रुपए खर्च कर किया गया था और इस परिसर में विज्ञान से संबंधित तमाम जिज्ञासाओं को निवारण भी किया जा सकता था. छात्र और आम लोग विज्ञान से संबंधित अच्छी-खासी जानकारियां यहां आकर हासिल करते थे. इस परिसर के भवन के अंदर पर्यावरण और प्राकृतिक रहस्य के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियां दी जाती रही है. एक से बढ़कर एक मॉडल के माध्यम से विज्ञान की तमाम जानकारियां यहां मिलती थी.

इस विज्ञान केंद्र की शुरुआत 29 नवंबर 2010 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के पहल से हुई थी. लगभग आठ एकड़ में फैले इस विज्ञान उद्यान में ध्वनि प्रकाश विज्ञान जैसे कई प्रदर्शन लगाए गए हैं, लेकिन कुछ दिनों बाद से ही यहां की स्थिति बद से बदतर होती गई. अधिकारियों की उदासीनता और निगरानी के अभाव में कुछ वर्षों में यहां के अधिकतर कीमती समान बदहाली की स्थिति में आ गये हैं और इस ओर ध्यान देने वाला अब तक कोई नहीं है.

वहीं, निदेशक गौरीशंकर गुप्ता का कहना है कि विज्ञान केंद्र में बेकार पड़े इक्विपमेंट को जल्द ही बदला जाएगा. उन्होंने बताया कि भारत सरकार की एजेंसी से एमओयू हुआ है, जिससे विज्ञान केंद्र की हालत में जल्द सुधार किया जाएगा. अब देखना यह है कि जब इतने बेहतरीन और शानदार इक्विपमेंट को संभाल कर रखने में तंत्र विफल रहा तो क्या गारंटी है कि जो नए उपकरण लगेंगे उन्हें संभाल कर रखा जाएगा.

Intro:रांची।

रांची के चिरौंदी स्थित विज्ञान केंद्र अनोखा है .यहां विज्ञान से संबंधित समस्त जानकारियां और जिज्ञासाओं को दूर किया जा सकता है. लेकिन अधिकारियों की उदासीनता के कारण अब यह साइंस सिटी बदहाली के कगार पर है .हालांकि ठीक इसी परिसर में 19 वर्षों बाद तारामंडल का निर्माण भी हुआ है. लेकिन अगर ऐसी ही स्थिति रही तो आने वाले दिनों में विज्ञान केंद्र जैसी ही इस नवनिर्मित करोड़ों रुपए खर्च कर तारामंडल की हालत भी होगी. विज्ञान केंद्र के 70 प्रतिशत इक्विपमेंट बदहाली के कगार पर है.


Body:बहुउद्देशीय सोच के साथ रांची के चिरौंदी में शाइन सिटी का निर्माण करोड़ों रुपए खर्च कर किया गया था और इस परिसर में विज्ञान से संबंधित तमाम जिज्ञासाओं को निवारण भी किया जा सकता था. छात्र या फिर आम लोग विज्ञान से संबंधित अच्छी-खासी जानकारी यहां आकर हासिल करते थे .इस परिसर के भवन के अंदर पर्यावरण और प्राकृतिक रहस्य के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियां दी जा रही थी .एक से बढ़कर एक मॉडल के माध्यम से विज्ञान की तमाम जानकारियां यहां मिल रही थी. इस विज्ञान केंद्र की शुरुआत 29 नवंबर 2010 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के पहल से हुई थी. लगभग आठ एकड़ में फैले इस विज्ञान उद्यान में ध्वनि प्रकाश, विज्ञान जैसे कई प्रदर्शन लगाए गए हैं .लेकिन कुछ दिनों बाद से ही यहां की स्थिति बद से बदतर होती गई. अधिकारियों की उदासीनता और निगरानी के अभाव में कुछ वर्षों में यहां के अधिकतर कीमती समान बदहाली की स्थिति में आ गया और इस और ध्यान देने वाला अब तक कोई नहीं है .हां निदेशक के रूप में एक पदाधिकारी हैं जो कहते हैं कि जल्द ही इन तमाम पुराने इकुपमेंट को बदलकर नए लगाए जाएंगे .

अब जरा गौर फरमाइए कि जब इतने बेहतरीन और शानदार इक्विपमेंट को संजोत कर रखने में तंत्र विफल रहा तो क्या गारंटी है कि जो नए उपकरण लगेंगे उन्हें संजोत के यह रख पाएंगे. वह तो छोड़िए इसी परिसर के बगल में करोड़ों रुपए की लागत से तारामंडल का निर्माण भी हुआ है जो झारखंड के लिए एक सपना था . लेकिन इस तारामंडल का अवलोकन करने भी इक्के दुक्के लोग ही आ रहे हैं. क्योंकि शाइन सिटी की हालत कुछ अच्छा नहीं है.

इस पूरे मामले को लेकर विज्ञान केंद्र के कार्यकारी निदेशक क्या कह रहे हैं जरा सुनिए.



वहीं यहां अपनी जानकारी इकट्ठा करने पहुंच रहे पर्यटक और छात्र निराश लौट रहे हैं सुनिए उन्हीं की जुबानी.

बाइट-

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Conclusion:खाली नली द्वारा सूर उत्पन्न करने वाले उपकरण पूरी तरह खराब हो गया है. 3D हॉल में ताला जड़े हैं .इकोसाइंस से जुड़ी उपकरण भी खराब है. किसी का रस्सी टूटी हुई है .साइकिल की उत्पत्ति को दर्शाया गया वैज्ञानिक विधि भी जर्जर है .चैन टूटी हुई है .गंदगी का अंबार है. दीवारों में पान की पिक दिख रहा है. आखिर इन चीजों की ओर क्यों किसी की नजर अब तक नहीं पड़ी है.


बाइट- गौरीशंकर गुप्ता, कार्यकारी निदेशक, विज्ञान केंद्र.

बाइट-छात्र,
छात्र.
बाइट- कर्मचारी, विज्ञान केंद्र।
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