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जरा इधर भी ध्यान दीजिए नेताजी! इस स्कूल की हालत है खराब, कौन है जिम्मेदार?

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Published : Dec 3, 2019, 5:35 PM IST

रांची के बरियातू और चिरौंदी के बीच हिल क्षेत्र में स्थित इस प्राथमिक स्कूल की हालत दयनीय है. इस स्कूल में शौचालय तो है, लेकिन शौच जाने की स्थिति में नहीं है. न ही इस शिक्षा के मंदिर में पानी की ही कोई सुविधा है.

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स्कूल की तस्वीर

रांची: जरा इधर भी सुनिए नेताजी, चुनावी समर में लोक लुभावन वादा करने से कुछ नहीं होगा. समस्याओं का निदान जरूरी है. योजनाओं से कुछ नहीं होता, योजनाओं को धरातल पर उतारना जरूरी है. नहीं तो कल के भविष्य कहीं गुमशुदा न हो जाए.

देखें पूरी खबर

स्कूल से जुड़े व्यवस्थाओं की रियलिटी टेस्ट
इस चुनावी समर में ईटीवी भारत ने राजधानी रांची से महज दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक प्राइमरी स्कूल का पड़ताल किया है. साथ ही इसकी दुर्दशा के लिए जिम्मेदार कौन है यह भी जानने की कोशिश की है. हमारी टीम ने इस स्कूल से जुड़े व्यवस्थाओं की रियलिटी टेस्ट कर कई चौंकाने वाले सच को सामने लाया है.

ये भी पढ़ें- माओवादियों ने पूर्व नक्सली को घोषित किया 'गद्दार', कहा- कुंदन पाहन है गद्दार, वोट का करें बहिष्कार

शिक्षा के मंदिर में भी अशिक्षा का माहौल
कई सरकारें आई और गईं, लेकिन परेशानियां बरकरार रही. आखिर इस ओर ध्यान देगा कौन. सरकार, आमजन, स्थानीय लोगों की भागीदारी या फिर जनप्रतिनिधि. अंतिम व्यक्ति तक लाभ पहुंचाना तमाम नेताओं का अब एक स्लोगन बन गया है, लेकिन जिम्मेदार कौन है और योजनाएं क्यों धरातल पर नहीं उतारी जा रही हैं. इसके पीछे के कारण को जानने की कोशिश नहीं की जा रही है. अशिक्षा इस कदर हावी है कि शिक्षा के मंदिर में भी अशिक्षा का माहौल दिखा.

इस स्कूल की हालत है दयनीय
बरियातू और चिरौंदी के बीच हिल क्षेत्र में स्थित इस प्राथमिक स्कूल में मिड डे मील की व्यवस्था है. बच्चों को मेनू के हिसाब से खाना भी दिया जाता है. 55 बच्चे इस स्कूल में पढ़ाई करते हैं. इनके लिए 2 शिक्षकों की व्यवस्था शिक्षा विभाग ने मुकम्मल की है. एक रसोइया है जो मिड डे मील बनाती है. इस स्कूल में शौचालय तो है, लेकिन शौच जाने की स्थिति में नहीं है.

ये भी पढ़ें- ETV BHARAT से हेमंत सोरेन की खास बातचीत, कहा- केंद्र सरकार भी मानती है आरक्षण जरूरी, हम कर रहे सालों से मांग

अभिभावकों को भी कोई मतलब नहीं
वहीं, अब शिक्षा व्यवस्था में आते हैं. यहां की शिक्षिका को इस चुनावी मौसम के बावजूद यह नहीं पता है कि राज्य की शिक्षा मंत्री कौन हैं, झारखंड की राज्यपाल कौन हैं. जबकि इस शिक्षिका को चुनावी काम में भी जिला प्रशासन की ओर से बीएलओ के रूप में नियुक्त किया गया है, तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां के बच्चे सीखते हैं क्या और पढ़ते हैं क्या. वहीं आइए जागरूक समाज की भी बात कर लेते हैं. इसके पीछे समाज भी कम जिम्मेदार नहीं है. एक तो अशिक्षित और रहा सहा कसर शराब ने पूरी कर रखी है. इस स्कूल के तमाम छोटे और नन्हे बच्चों से हमारी टीम ने बातचीत की है इन तमाम बच्चों के अभिभावक शराब के आदि हैं.

रांची: जरा इधर भी सुनिए नेताजी, चुनावी समर में लोक लुभावन वादा करने से कुछ नहीं होगा. समस्याओं का निदान जरूरी है. योजनाओं से कुछ नहीं होता, योजनाओं को धरातल पर उतारना जरूरी है. नहीं तो कल के भविष्य कहीं गुमशुदा न हो जाए.

देखें पूरी खबर

स्कूल से जुड़े व्यवस्थाओं की रियलिटी टेस्ट
इस चुनावी समर में ईटीवी भारत ने राजधानी रांची से महज दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक प्राइमरी स्कूल का पड़ताल किया है. साथ ही इसकी दुर्दशा के लिए जिम्मेदार कौन है यह भी जानने की कोशिश की है. हमारी टीम ने इस स्कूल से जुड़े व्यवस्थाओं की रियलिटी टेस्ट कर कई चौंकाने वाले सच को सामने लाया है.

ये भी पढ़ें- माओवादियों ने पूर्व नक्सली को घोषित किया 'गद्दार', कहा- कुंदन पाहन है गद्दार, वोट का करें बहिष्कार

शिक्षा के मंदिर में भी अशिक्षा का माहौल
कई सरकारें आई और गईं, लेकिन परेशानियां बरकरार रही. आखिर इस ओर ध्यान देगा कौन. सरकार, आमजन, स्थानीय लोगों की भागीदारी या फिर जनप्रतिनिधि. अंतिम व्यक्ति तक लाभ पहुंचाना तमाम नेताओं का अब एक स्लोगन बन गया है, लेकिन जिम्मेदार कौन है और योजनाएं क्यों धरातल पर नहीं उतारी जा रही हैं. इसके पीछे के कारण को जानने की कोशिश नहीं की जा रही है. अशिक्षा इस कदर हावी है कि शिक्षा के मंदिर में भी अशिक्षा का माहौल दिखा.

इस स्कूल की हालत है दयनीय
बरियातू और चिरौंदी के बीच हिल क्षेत्र में स्थित इस प्राथमिक स्कूल में मिड डे मील की व्यवस्था है. बच्चों को मेनू के हिसाब से खाना भी दिया जाता है. 55 बच्चे इस स्कूल में पढ़ाई करते हैं. इनके लिए 2 शिक्षकों की व्यवस्था शिक्षा विभाग ने मुकम्मल की है. एक रसोइया है जो मिड डे मील बनाती है. इस स्कूल में शौचालय तो है, लेकिन शौच जाने की स्थिति में नहीं है.

ये भी पढ़ें- ETV BHARAT से हेमंत सोरेन की खास बातचीत, कहा- केंद्र सरकार भी मानती है आरक्षण जरूरी, हम कर रहे सालों से मांग

अभिभावकों को भी कोई मतलब नहीं
वहीं, अब शिक्षा व्यवस्था में आते हैं. यहां की शिक्षिका को इस चुनावी मौसम के बावजूद यह नहीं पता है कि राज्य की शिक्षा मंत्री कौन हैं, झारखंड की राज्यपाल कौन हैं. जबकि इस शिक्षिका को चुनावी काम में भी जिला प्रशासन की ओर से बीएलओ के रूप में नियुक्त किया गया है, तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां के बच्चे सीखते हैं क्या और पढ़ते हैं क्या. वहीं आइए जागरूक समाज की भी बात कर लेते हैं. इसके पीछे समाज भी कम जिम्मेदार नहीं है. एक तो अशिक्षित और रहा सहा कसर शराब ने पूरी कर रखी है. इस स्कूल के तमाम छोटे और नन्हे बच्चों से हमारी टीम ने बातचीत की है इन तमाम बच्चों के अभिभावक शराब के आदि हैं.

Intro:रांची।

जरा इधर भी सुनिए नेताजी चुनावी समर में लोकलुभावन वादा करने से कुछ नहीं होगा. समस्याओं का निदान जरूरी है. योजनाओं से कुछ नहीं होता योजनाओं को धरातल पर उतारना जरूरी है. नहीं तो कल के भविष्य कहीं गुमशुदा ना हो जाए .इस चुनावी समर में ईटीवी भारत , झारखंड की राजधानी रांची सिटी से महज 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक प्राइमरी स्कूल का पड़ताल किया है .साथ ही इसकी दुर्दशा के लिए जिम्मेदार कौन है यह भी जानने की कोशिश की गई है .हमारी टीम ने इस स्कूल से जुड़े व्यवस्थाओं की रियलिटी टेस्ट कर कई चौंकाने वाले सच को सामने लाया है.


Body:एक तरफ जहां पूरा झारखंड अपना भविष्य बेहतर हो इसे लेकर एकमत होकर मतदान के लिए जागरूक हो रहा है तो वहीं इस देश का कल अंधकार के जिंदगी में जीने को विवश है .इसका एक नजारा सामने आया है .जनकल्याणकारी योजनाएं दम तोड़ रही है .इस स्कूल के इर्द-गिर्द स्वच्छ भारत अभियान ,शिक्षा का अधिकार ,खुले में शौच से मुक्त भारत का सपना चकनाचूर होता दिख रहा है .कहते हैं अशिक्षा दीमक की तरह एक सभ्य समाज को खा जाती है और आज शिक्षा के मंदिर में अशिक्षा मानो गर्व से मुस्कुरा रही हो. वहीं दूसरी तरफ झारखंड विधानसभा चुनाव 2019 में भी एक बार फिर तमाम राजनीतिक दलों का लोकलुभावन वादे ,लंबे चौड़े श्वेत पत्र घोषणा पत्र एक के बाद एक प्रकाशित हो रहे हैं .बड़े-बड़े मंच के माध्यम से नेतागण जनता को अपने पक्ष में मतदान करने की अपील कर रहे हैं और यह सिलसिला अरसे से जारी है .कई सरकारे आई -गई लेकिन परेशानियां बरकरार रही. आखिर इस ओर ध्यान देगा कौन. सरकार ,आमजन, स्थानीय लोगों की भागीदारी या फिर जनप्रतिनिधि. अंतिम व्यक्ति तक लाभ पहुंचाना तमाम नेताओं का अब एक स्लोगन बन गया है .लेकिन जिम्मेदार कौन है और योजनाएं क्यों धरातल पर नहीं उतारी जा सक रही है. इसके पीछे के कारण को जानने की कोशिश नहीं की जा रही है .अशिक्षा इस कदर हावी है कि शिक्षा के मंदिर में भी अशिक्षा का माहौल दिखा.

इस स्कूल की हालत है दयनीय:

हम बात कर रहे हैं राजधानी रांची से महज 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बरियातू और चिरौंदी के बीच हिल क्षेत्र में स्थित इस प्राथमिक स्कूल की. इस स्कूल में मिड डे मील की व्यवस्था है. बच्चों को मेनू के हिसाब से खाना भी दिया जाता है .55 बच्चे इस स्कूल में पढ़ाई करते हैं .इनके लिए 2 शिक्षकों की व्यवस्था शिक्षा विभाग ने मुकम्मल की है .एक रोसैया है जो मिड डे मील बनाती है. इस स्कूल में शौचालय है लेकिन शौच जाने की स्थिति में नहीं है .बच्चे भी विवश है .बच्चे झाड़ी में कहीं भी पहुंच जाता है और शौच करते हैं .जगह नहीं मिली तो स्कूल के ठीक सामने एक पक्का सेप्टिक टैंक में बैठकर बच्चे शौच करते हैं और इस नजारे के साथ ही स्वच्छ भारत का सपना और ओडीएफ नाम की चिड़िया का सच्चाई पता चलता है. वहीं अब शिक्षा व्यवस्था में आते हैं यहां के शिक्षिका को इस चुनावी मौसम के बावजूद यह नहीं पता है कि राज्य की शिक्षा मंत्री कौन है कौन है झारखंड के राज्यपाल कौन हैं .जबकि इस शिक्षिका को चुनावी काम में भी जिला प्रशासन द्वारा बीएलओ के रूप में नियुक्त किया गया है .तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां के बच्चे सीखते हैं क्या और पढ़ते हैं क्या. वहीं आइए जागरूक समाज की भी बात कर लेते हैं इसके पीछे समाज भी कम जिम्मेदार नहीं है एक तो अशिक्षित और रहा सहा कसर शराब ने पूरी कर रखी है .इस स्कूल के तमाम छोटे और नन्हे बच्चों से हमारी टीम ने बातचीत की है इन तमाम बच्चों के अभिभावक शराबी है.





Conclusion:तो अब यह एक बड़ा सवाल है कि इसके पीछे दोषी आखिर कौन हैं . सिस्टम ,अशिक्षा ,शराब, समाज वह शिक्षिका, हम आप या फिर ये बच्चे. सवाल बड़ा है इसका जबाव ढूंढने में शायद वक्त लग सकता है लेकिन यह सवाल जायज जरूर है.


बाइट- सुशीला देवी रसिया ,चिरौंदी प्राथमिक स्कूल।

बाइट- लक्ष्मी मिंज, शिक्षिका।
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