रांची: लॉकडाउन की वजह से हर कुछ थम सा गया है. लेकिन कोरोना बंदी की परेशानी से न सिर्फ जीवित बल्कि वह भी परेशान हैं, जो अब इस दुनिया में नहीं रहे. दरअसल, सनातन धर्म में मौत के बाद मृतकों की अस्थि को गंगा में विसर्जित करने की परंपरा रही है. लेकिन रांची चुकी गंगा नदी से काफी दूर है. जिसके कारण लॉकडाउन में अस्थि कलश को ले जाना संभव नहीं हो पा रहा है. यही वजह है कि राज्य के गौशाला में बना अस्थि कलश का लॉकर पूरी तरह से फुल हो चुका है. अब अस्थि रखने की भी जगह नहीं है. मोक्ष प्राप्ति करना भी अब मुश्किल हो गया है.
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दाह संस्कार के बाद अस्थि विसर्जित करने की परंपरा
एक प्रक्रिया के तहत हिंदू धर्म में दाह संस्कार करने के बाद अस्थियों को गंगा में बहाने की परंपरा है. इससे पहले मुक्तिधाम और क्रियाकर्म करने वाले स्थान में लॉकर में अस्थियों को रखा जाता है. समय मिलते ही तिथि निर्धारण होने के बाद गंगा या पवित्र जल में अस्थियों को बहा दिया जाता है. लेकिन लॉकडाउन के कारण लोग कहीं जा नहीं पा रहे और अस्थियां वहीं रखी हैं.
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सभी लॉकर्स फुल
राजधानी रांची के गौशाला में 16 मुख्य लॉकर हैं और उसके बाद बना टेंपरेरी लॉकर भी पूरी तरह से फुल हो गए हैं. जिसे देखते हुए अब जो लोग आ रहे हैं उनके लिए पैकेट की व्यवस्था की गई है. जिस पर वह अपना नाम लिखकर पूरी विधि पूर्वक अस्थियों को रख रहे हैं. गौशाला में 1904 से स्थापित इन लॉकर्स की देखभाल कर रहे पंडित घनश्याम पांडेय ने इसकी पूरी जानकारी दी है.
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हरमू मुक्तिधाम में भी 1913 से लॉकर की है व्यवस्था
वहीं, हरमू मुक्तिधाम में भी 1913 में लॉकर की व्यवस्था की गई थी. हरमू मुक्तिधाम में अब तक 40 अस्थि कलश जमा हुए हैं. लेकिन उन्हें विसर्जित करने का उपाय किसी को भी नहीं समझ आ रहा है. जब तक लॉकर से अस्थियां निकालकर विसर्जित नहीं की जाती, तब तक लॉकर खाली नहीं किया जा सकता है.