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अफ्रीकन स्वाइन फीवर का बीएयू सूकर अनुसंधान क्षेत्र पर मंडरा रहा खतरा, लगातार हो रही मौत

रांची के बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के सूकर अनुसंधान प्रक्षेत्र पर अफ्रीकन स्वाइन फीवर (African swine fever) का खतरा मंडरा रहा है. इससे रोजाना सूकरों की मौत हो रही है. स्थिति यह है कि अनुसंधान प्रक्षेत्र में 120 सूकरों में से सिर्फ 20 सूकर बच गए हैं.

African swine fever
अफ्रीकन स्वाइन फीवर का बीएयू सूकर अनुसंधान क्षेत्र पर मंडरा रहा खतरा
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Published : Sep 29, 2022, 5:36 PM IST

Updated : Sep 29, 2022, 6:16 PM IST

रांचीः राज्य में जुलाई माह से वायरल डिजीज अफ्रीकन स्वाइन फीवर (African swine fever) लगातार विकराल रूप लेता जा रहा है. कांके स्थित झारखंड सरकार के सूकर प्रजनन प्रक्षेत्र में सूकरों की लगातार मौत हो रही है. इससे सूकरों की संख्या काफी घट गई है. अब इस वायरस का खतरा बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के सूकर अनुसंधान प्रक्षेत्र पर मंडराने लगा है. सूकर अनुसंधान प्रक्षेत्र में प्रत्येक दिन बड़ी संख्या में सूकरों की मौत हो रही है.

यह भी पढ़ेंः सूकर प्रजनन प्रक्षेत्र में अज्ञात बीमारी से जानवरों की मौत, अफ्रीकन स्वाइन फीवर की आशंका

मिली जानकारी के अनुसार सूकर अनुसंधान प्रक्षेत्र में सूकरों की संख्या 120 थी, जो अब सिर्फ 20 के करीब बची हैं. बीएयू के शैक्षणिक एवं शोध प्रक्षेत्र के कर्मचारी रोहित और सनी हर दिन हो रही सूकरों की मौत से उदास हैं. उन्होंने कहा कि जानवर खाना छोड़ देता है और फिर कुछ देर में उसकी मौत हो जाती है.

देखें स्पेशल स्टोरी


बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के सूकर शोध प्रक्षेत्र के हेड डॉ रविंद्र कुमार कहते हैं कि अफ्रीकन स्वाइन फीवर पहुंच गया है. इसकी पुष्टि भी भोपाल लैब से हो गयी है. उन्होंने कहा कि 90 प्रतिशत सूकरों की मौत हो गई है. अब सिर्फ 20 सूकर बचे हैं. उन्होंने कहा कि इस बीमारी का अभी तक कोई इलाज नहीं है. लक्षण के आधार पर दवाएं दी जाती है. उन्होंने कहा कि बीमार जानवरों को तत्काल अलग कर दिया जाता है. इसके साथ ही साफ सफाई की पूरी व्यवस्था की गई है. इसके बावजूद प्रत्येक दिन सूकरों की मौत हो रही है. उन्होंने कहा कि सूकर नहीं रहने से विश्वविद्यालय में छात्रों की पढ़ाई और अनुसंधान दोनों प्रभावित होगी.



अफ्रीकन स्वाइन फीवर घरेलू और जंगली सूकरों में होनेवाली वायरल संक्रामक है, जिसका मोर्टेलिटी रेट अधिकतम है. पशु चिकित्सकों के अनुसार संक्रमित सूकरों का तापमान बढ़ जाता है और वह सुस्त होकर खाना पीना छोड़ देता है. इसके बाद सूकरों में उल्टी, दस्त, त्वचा पर लाल या काला धब्बे, गर्भपात, रक्तस्राव के साथ सूकरों की मौत हो जाती है. विशेषज्ञों के अनुसार विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन के पशु स्वास्थ्य कोड में सूचीबद्ध एक बीमारी है. राहत की बात यह है कि इस बीमारी का वायरस सूकरों से इंसान में नहीं फैलता है.

यह भी पढ़ेंः झारखंड में अफ्रीकन स्वाइन फीवर और लंपी वायरस का खतरा, अब तक 1261 सूकर और दो पशुओं की हो चुकी है मौत

झारखंड सरकार के पशुपालन विभाग के तहत चल रहे सूकर प्रजनन प्रक्षेत्र में 1350 से अधिक सूकरों की मौत हो चुकी हैं. इसके साथ ही अफ्रीकन स्वाइन फीवर से हर दिन 5-7 सूकरों की जान जा रही है. वायरल डिजीज अफ्रीकन स्वाइन फीवर की वजह से राज्य में अब सूकरों का प्रजनन प्रक्षेत्र खतरे में है. इसके साथ ही बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में सूकरों पर होने वाली पढ़ाई और रिसर्च भी प्रभावित होने वाली है.

क्या कहते हैं कृषि मंत्री

कृषि और पशुपालन मंत्री बादल पत्रलेख ने कहा कि अफ्रीकन स्वाइन फीवर और लंपी बीमारियों से पूरा देश जूझ रहा है. इन दोनों बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए सरकार गंभीर हैं, ताकि पशुपालकों को कम से कम आर्थिक क्षति हो. उन्होंने कहा कि पशुपालकों को क्या राहत दी जाए. इसको लेकर पशुपालन निदेशक के साथ साथ सभी जिला पशुपालन अधिकारी से रिपोर्ट मंगा की गई है. कृषि मंत्री बालद पत्रलेख ने कहा कि जिन पशुपालकों की पशुओं की मौत बीमारी की वजह से होगी, उन्हें मुख्यमंत्री पशुधन योजना के तहत 75 प्रतिशत अनुदान पर दो पशु देने की योजना बनाई गई है.

अफ्रीकन स्वाइन फीवर या लंपी डिजीज से होनेवाली पशुओं की मौत को लेकर कृषि एवं पशुपालन मंत्री ने पशुपालक और सूकर पालकों से अपील की है और कहा कि पशुओं की मौत होने पर तत्काल जिला पशुपालन अधिकारी को सूचना दें. मृत पशुओं का पोस्टमार्टम जरूर कराए, ताकि पशुपालकों को राहत उपलब्ध कराने में सरकार को सुविधा होगी.

रांचीः राज्य में जुलाई माह से वायरल डिजीज अफ्रीकन स्वाइन फीवर (African swine fever) लगातार विकराल रूप लेता जा रहा है. कांके स्थित झारखंड सरकार के सूकर प्रजनन प्रक्षेत्र में सूकरों की लगातार मौत हो रही है. इससे सूकरों की संख्या काफी घट गई है. अब इस वायरस का खतरा बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के सूकर अनुसंधान प्रक्षेत्र पर मंडराने लगा है. सूकर अनुसंधान प्रक्षेत्र में प्रत्येक दिन बड़ी संख्या में सूकरों की मौत हो रही है.

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मिली जानकारी के अनुसार सूकर अनुसंधान प्रक्षेत्र में सूकरों की संख्या 120 थी, जो अब सिर्फ 20 के करीब बची हैं. बीएयू के शैक्षणिक एवं शोध प्रक्षेत्र के कर्मचारी रोहित और सनी हर दिन हो रही सूकरों की मौत से उदास हैं. उन्होंने कहा कि जानवर खाना छोड़ देता है और फिर कुछ देर में उसकी मौत हो जाती है.

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बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के सूकर शोध प्रक्षेत्र के हेड डॉ रविंद्र कुमार कहते हैं कि अफ्रीकन स्वाइन फीवर पहुंच गया है. इसकी पुष्टि भी भोपाल लैब से हो गयी है. उन्होंने कहा कि 90 प्रतिशत सूकरों की मौत हो गई है. अब सिर्फ 20 सूकर बचे हैं. उन्होंने कहा कि इस बीमारी का अभी तक कोई इलाज नहीं है. लक्षण के आधार पर दवाएं दी जाती है. उन्होंने कहा कि बीमार जानवरों को तत्काल अलग कर दिया जाता है. इसके साथ ही साफ सफाई की पूरी व्यवस्था की गई है. इसके बावजूद प्रत्येक दिन सूकरों की मौत हो रही है. उन्होंने कहा कि सूकर नहीं रहने से विश्वविद्यालय में छात्रों की पढ़ाई और अनुसंधान दोनों प्रभावित होगी.



अफ्रीकन स्वाइन फीवर घरेलू और जंगली सूकरों में होनेवाली वायरल संक्रामक है, जिसका मोर्टेलिटी रेट अधिकतम है. पशु चिकित्सकों के अनुसार संक्रमित सूकरों का तापमान बढ़ जाता है और वह सुस्त होकर खाना पीना छोड़ देता है. इसके बाद सूकरों में उल्टी, दस्त, त्वचा पर लाल या काला धब्बे, गर्भपात, रक्तस्राव के साथ सूकरों की मौत हो जाती है. विशेषज्ञों के अनुसार विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन के पशु स्वास्थ्य कोड में सूचीबद्ध एक बीमारी है. राहत की बात यह है कि इस बीमारी का वायरस सूकरों से इंसान में नहीं फैलता है.

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झारखंड सरकार के पशुपालन विभाग के तहत चल रहे सूकर प्रजनन प्रक्षेत्र में 1350 से अधिक सूकरों की मौत हो चुकी हैं. इसके साथ ही अफ्रीकन स्वाइन फीवर से हर दिन 5-7 सूकरों की जान जा रही है. वायरल डिजीज अफ्रीकन स्वाइन फीवर की वजह से राज्य में अब सूकरों का प्रजनन प्रक्षेत्र खतरे में है. इसके साथ ही बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में सूकरों पर होने वाली पढ़ाई और रिसर्च भी प्रभावित होने वाली है.

क्या कहते हैं कृषि मंत्री

कृषि और पशुपालन मंत्री बादल पत्रलेख ने कहा कि अफ्रीकन स्वाइन फीवर और लंपी बीमारियों से पूरा देश जूझ रहा है. इन दोनों बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए सरकार गंभीर हैं, ताकि पशुपालकों को कम से कम आर्थिक क्षति हो. उन्होंने कहा कि पशुपालकों को क्या राहत दी जाए. इसको लेकर पशुपालन निदेशक के साथ साथ सभी जिला पशुपालन अधिकारी से रिपोर्ट मंगा की गई है. कृषि मंत्री बालद पत्रलेख ने कहा कि जिन पशुपालकों की पशुओं की मौत बीमारी की वजह से होगी, उन्हें मुख्यमंत्री पशुधन योजना के तहत 75 प्रतिशत अनुदान पर दो पशु देने की योजना बनाई गई है.

अफ्रीकन स्वाइन फीवर या लंपी डिजीज से होनेवाली पशुओं की मौत को लेकर कृषि एवं पशुपालन मंत्री ने पशुपालक और सूकर पालकों से अपील की है और कहा कि पशुओं की मौत होने पर तत्काल जिला पशुपालन अधिकारी को सूचना दें. मृत पशुओं का पोस्टमार्टम जरूर कराए, ताकि पशुपालकों को राहत उपलब्ध कराने में सरकार को सुविधा होगी.

Last Updated : Sep 29, 2022, 6:16 PM IST
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