रांची: राज्य की जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक सरयू राय ने बुधवार को पिछली सरकार की लागू की गई योजनाओं के भौतिक सत्यापन की मांग की है. इसके साथ ही पिछली सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करते हुए उन्होंने कहा कि संसाधनों का सही उपयोग तब होगा जब उसे लागू करने वाली प्रशासनिक व्यवस्था सही तरीके से काम करे.
नौकरशाही पर खड़ा हुआ सवाल
सरयू राय ने कहा कि पिछली सरकार में कई ऐसे उदाहरण हैं जो नौकरशाही पर सवाल खड़ा करती है. राय ने कहा कि सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों के लिए अधिकारियों ने नौकर की तरह काम किया. दो घटनाओं का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि 15 मई 2016 को उनके पुराने विधानसभा इलाके में एक बस की आगजनी मामले में एक राजनीतिक कार्यकर्ता के खिलाफ कथित रूप मामला दर्ज किया गया. हालांकि, इसको लेकर उन्होंने जिले के अधिकारी से मामले की जांच की मांग की. उन्होंने कहा कि इस बाबत डीजीपी ने भी एसएसपी को डायरेक्शन दिया, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा.
सरयू राय ने कहा कि जब इस मामले की जांच के लिए दबाव बनाया गया तो एसएसपी ने साफ तौर पर कहा कि जिनके खिलाफ मामला दर्ज है वह इस मामले में शामिल नहीं है. राय ने कहा कि अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि उसके पीछे किसका हाथ था.
सरयू राय ने एक घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि सीतारामडेरा थाना में पत्रकारों की कथित पिटाई के एक मामले की जांच के लिए होम सेक्रेट्री ने तत्कालीन डीसी को सात दफा रिमाइंडर दी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. हैरत की बात यह है कि सीतारामडेरा थाना में पत्रकारों के ऊपर लाठीचार्ज किया गया. इसकी जांच की मांग उन्होंने की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई.
उन्होंने तत्कालीन एडवोकेट जनरल के ऊपर भी अनप्रोफेशनल कंडक्ट का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि विभाग के एक मामले में उन्होंने कोर्ट का हवाला देकर विभाग को कन्विंस करने की कोशिश की, जबकि कोर्ट ने ऐसा कोई डायरेक्शन ही नहीं दिया. सबसे बड़ी बात यह है कि पीआरडी, जनसंवाद, स्किल डेवलपमेंट डिपार्टमेंट में हजारों लोगों को रोजगार देने का दावा किया गया, लेकिन इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि 2,000 से अधिक लोगों को रोजगार नहीं मिला.
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सरयू राय ने कहा कि स्पेशल ऑडिट सरकार चाहे तो अपने स्तर से करा सकती है या सीएजी को भी इसके लिए कोई सदस्य लिख सकता है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने व्हाइट पेपर जारी करने की बात कही है. यह अच्छी बात है, लेकिन साथ ही फाइनेंसियल ऑडिट के साथ अगर सरकारी योजनाओं का भौतिक सत्यापन हो तो साफ पता चलेगा कि सरकार की योजनाएं कहां तक जमीन पर उतरी हैं.