रांची: झारखंड को गठन के साथ विरासत में नक्सलवाद मिला. जिस समय राज्य बना था यानि साल 2000 में इसके 8 जिले नक्सल प्रभावित थे, लेकिन जल्द ही ये आंकड़ा दोगुने से भी अधिक हो गया. नतीजा राज्य में नक्सल वारदातें बढ़ी और इसका सीधा नुकसान झारखंड पुलिस को उठाना पड़ा. झारखंड गठन के इन 20 सालो में 700 से अधिक जवानों और अधिकारियों ने नक्सलियो से लोहा लेते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी.
20 साल में 705 पुलिसकर्मी और 1795 आमलोग नक्सल हिंसा के शिकार
झारखंड गठन के बाद नक्सली वारदातों में 705 पुलिसकर्मी और 1795 आमलोग मारे गए हैं. वहीं, झारखंड पुलिस ने साल 2001-20 के बीच 915 नक्सलियों को भी मुठभेड़ में मार गिराया है. भाकपा माओवादियों के हुए बड़े हमलों में पाकुड़ के एसपी अमरजीत बलिहार, डीएसपी स्तर के अधिकारी बुंडू में डीएसपी प्रमोद कुमार, पलामू में देवेंद्र राय, चतरा में विनय भारती नक्सली हमले में शहीद हुए हैं. झारखंड गठन के ठीक पहले लोहरदगा एसपी रहे अजय कुमार सिंह भी नक्सली हमले में शहीद हो गए थे. झारखंड सरकार के मंत्री रामेश्वर उरांव जो झारखंड के एडीजी के पद से इस्तीफा देकर राजनीती में आये, वो भी झारखंड के नक्सल इतिहास की बखूबी हर जानकारी रखते हैं. रामेश्वर उरांव के अनुसार बिहार के आरा से झारखंड की तरफ नक्सलवाद पनपा जो आगे चलकर नासूर बन गया.
2000-2010 तक झारखंड पुलिस को उठाना पड़ा काफी नुकसान
अगर आंकड़ों की बात करें, तो राज्य बनने के बाद यानी साल 2000 से लेकर जून 2010 तक कुल 400 जवानों ने नक्सलियों से लोहा लेते अपनी प्राणों का बलिदान दिया. हालांकि ये तो सिर्फ झारखंड में शहीद हुए हुए जवानों की संख्या है, लेकिन अगर इनमें झारखंड के रहने वाले लेकिन दूसरे राज्यों के पुलिस फोर्स में शामिल पुलिसकर्मियों की बात करें, तो झारखंड के शहीदों की संख्या हजार तक पहुंच जाएगी. साल 2011 तक झारखंड में पुलिस जवानों के खून से झारखंड की धरती लाल होती रही है. इस दौरान कई बड़े पुलिस संहार का गवाह भी ये राज्य बना है. राज्य के 2 एसपी, 3 डीएसपी, 8 इंस्पेक्टर, 50 दरोगा स्तर के पुलिस अधिकारी शहीद हो चुके हैं. झारखंड पुलिस एसोसिएसन के अध्यक्ष योगेंद्र पुलिस संहार को याद कर सिहर जाते हैं. वो बताते हैं की राज्य के निर्माण के बाद 10 साल तक कैसे नक्सलियों ने उत्पात मचाया था.
आंकड़ा डराने वाला
पुलिस संहार के अगर इतिहास और आंकड़ों पर नजर डालें तो काफी भयावाह है. आंकड़े यह बताते हैं कि किस तरह झारखंड की धरती को नक्सलियों ने जब चाहा लाल किया.
- 01 जून 2001, हजारीबाग के चुरचू में 13 पुलिसकर्मियों की हत्या ( बारूदी सुरंग से उड़ाकर )
- 20 दिसंबर 2002, मनोहरपुर के बिठकलसोय में 16 जवानों की हत्या
- 11 अप्रैल 2003, हजारीबाग के अम्झारिया घाटी में 11 पुलिसकर्मियों की हत्या
- 13 अप्रैल 2003, गिरिडीह के बागोदर में 5 पुलिसकर्मियों की हत्या
- 07 अप्रैल 2004, मनोहरपुर के गुआ में 39 पुलिसकर्मियों की हत्या
- 03 फरवरी 2005, विधानसभा चुनाव के दौरान छतरपुर थानाप्रभारी समेत 6 जवानों की विस्फोट में मौत
- 17 मार्च 2006, पांकी में 3 जवानों की हत्या
- 1 जून 2006, चतरा में 12 सीआरपीएफ जवानों की हत्या
- 30 जून 2007, बुंडू डीएसपी समेत 5 पुलिसकर्मियों की हत्या
- 30 अक्टूबर 2008, घाटशिला के बुरुडीह में 11 जवानों की हत्या
- 10 जून 2009, चाईबासा के गोईलकेरा में 10 पुलिसकर्मियों की हत्या
- 17 जनवरी 09, मनिका के पटकी जंगल में 5 पुलिसकर्मियों की हत्या
- 10 जुलाई 2010, स्पेशल ब्रांच इन्स्पेक्टर फ्रांसिस इन्दवार की हत्या
- 8 नवम्बर 2010, पलामू में झारखंड पुलिस के 2 जवानों की हत्या
- दिसंबर 2010, लैंड माइंस विस्फोट में बोकारों में 1 जवान की हत्या
पुलिस ने बदली रणनीति
नक्सलियों के खिलाफ साल 2012 के अंत में ऑपरेशन ग्रीन हंट की शुरुआत हुई और इसके बाद झारखंड में नक्सलियों के खिलाफ बड़े पैमाने पर सीआरपीएफ को राज्य पुलिस के सहयोग के लिए जंगलो में उतारा गया. नतीजा साल 2020 आते-आते नक्सलियों की शक्ति बेहद कमजोर हो गई. हालांकि इस दौरान भी उनके हमले कम नहीं हुए.
- 26 जून 2018 को गढ़वा और लातेहार एसपी के द्वारा संयुक्त अभियान बूढ़ापहाड़ पर चलाया जा रहा था. अभियान के दौरान जगुआर के एसाल्ट ग्रुप को माओवादियों ने टारगेट किया. इस दौरान छह जवान शहीद हुए
- आठ अप्रैल 2017 को सिमडेगा में पुलिस-उग्रवादी मुठभेड़ में बानो थानेदार विद्यापति सिंह और 1 जवान शहीद
- 28 जून 2016 को पलामू में लैंड माइंस ब्लास्ट में 7 जवान शहीद और 7 घायल हुए
- 2 जुलाई 2013 को दुमका डीआईजी की बैठक से लौटने के दौरान काठीकुंड में पाकुड़ एसपी अमरजीत बलिहार समेत 6 पुलिसकर्मियों को माओवादियों ने मार दिया.
- 21 जनवरी 2012 को गढ़वा में भंडरिया में 13 पुलिसकर्मी शहीद
- दिसंबर 2011 लातेहार के गारू में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी के काफिले पर हमले में 12 जवान शहीद
शहीद हुए प्रमुख पुलिस अधिकारी
- अक्टूबर 2000, लोहरदगा के एसपी अजय कुमार की हत्या
- अप्रैल 2000, चतरा में अवर निरीक्षक वशिष्ठ सिंह की हत्या
- जून 2002, डीएसपी देवेन्द्र कुमार राय और पुलिस निरीक्षक वरुण कुमार की हत्या
- फरवरी 2006, लातेहार में दरोगा सिद्धेशवर प्रसाद की हत्या
- अगस्त 2006, पलामू में थाना प्रभारी अशोक पासवान की हत्या
- 30 जून 2008, रांची के बुंडू में डीएसपी प्रमोद मिश्रा की हत्या
- 2 जुलाई 2013, पाकुड़ एसपी अमरजीत बलिहार की हत्या
अब क्या हैं हालात
वर्तमान परिस्थिति की बात करें, तो फिलहाल झारखंड पुलिस नक्सलियों पर हावी है. बेहतर तकनीक बेहतर ट्रेनिंग और सरकार की शहीदों के परिजनों के प्रति बढ़ रही जिम्मेदारी की वजह से नक्सल अभियान में लगे जवानों के मंसूबे हाई लेवल पर हैं. झारखंड की में शहीद होने वाले जवानों के परिजनों को बेहतर सुविधाएं प्रदान की जाती हैं.
- क्या क्या मिलता है शहीद के परिजनों को
- परिवार के 1 सदस्य को नौकरी
- शहीद जवान की नौकरी की पूरी सैलरी
- 25 लाख रुपए
इसके अलावा नौकरी के दौरान मिलने वाली तमाम सुविधाएं परिजनों को दी जाती हैं इसी दौरान झारखंड पुलिस एसोसिएशन के पहल के बाद राज्य सरकार ने शहीदों के परिजनों के लिए एक और पहल की. दरअसल, कई बार ऐसा देखा गया कि शहीद होने वाले जवान की पत्नी दूसरा विवाह कर लेती है. ऐसे में शहीद के माता-पिता को काफी तकलीफें झेलनी पड़ती हैं. यही वजह है कि अब शहीदों के परिजनों को मिलने वाली धनराशि में पत्नी और मां बाप दोनों को पैसे देने का प्रावधान कर दिया गया है. इसमें 25% मां-बाप को पैसे दिए जा रहे हैं.
झारखंड पुलिस के पूर्व एडीजी और वर्तमान में झारखंड सरकार के मंत्री रामेश्वर उरांव की मानें, तो शहीद जवानों को दिए जाने वाली हर सुविधा को कम ही आंका जाएगा. रामेश्वर उरांव की इच्छा है कि शहीदों के परिजनों को घर की भी व्यवस्था की जाए, क्योंकि अधिकांश शहीद होने वाले पुलिस के छोटे कैडर पोस्ट होते हैं. जिनके पास अपना रहने का कोई ठिकाना नहीं होता. ऐसे में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से इस संबंध में बात करके शहीदों के परिजनों को घर दिलाने की व्यवस्था भी करवाएंगे.