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तमिलनाडु में फंसे 14 प्रवासी बंधुआ मजदूरों को मिली आजादी, बिना वेतन काम करने को मजबूर थे श्रमिक - Migrant bonded labours rescued

तमिलनाडु के मदुरै जिले के अलंगानल्लूर में फंसे 14 प्रवासी बंधुआ मजदूरों को आजाद करा लिया गया है. ये मजदूर पिछले 10 महीने से यहां फंसे हुए थे. मजदूरों का कहना है कि उन्हें बहला-फुसलाकर यहां लाया गया था.

14 Migrant bonded labours rescued from alanganallur Madurai
प्रवासी बंधुआ मजदूर
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Published : Apr 30, 2020, 7:33 PM IST

रांचीः तमिलनाडू के मदुरै जिले के अलंगानल्लूर में बोरवेल कंपनी में फंसे महाराष्ट्र, झारखंड और छत्तीसगढ़ के रहने वाले 14 प्रवासी बंधुआ मजदूरों को छुड़ा लिया गया है. सभी मजदूर अनुसूचित जनजाति समुदाय के हैं. ये मजदूर लगभग 10 महीने से अलंगानल्लूर के बोरवेल कंपनी में काम कर रहे थे. उनका कहना है कि उन्हें बहला-फुसलाकर यहां लाया गया था.

ये भी पढ़ें-गिरिडीहः डेढ़ माह से मधुबन में फंसे हैं 200 तीर्थयात्री, जैन संस्थाओं द्वारा की जा रही है सेवा

बता दें कि पीपुल्स वॉच ऑर्गेनाइजेशन की मदद से मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने बोरवेल के बंधुआ मजदूरों को बचाया है. जहां एक ओर राज्य सरकार ने कोरोना वायरस संक्रमण के लिए धारा 144 लागू किया है वहीं, इसके बावजूद ये मजदूर उनके लिए काम करने को मजबूर थे.

वहीं, मजदूरों का कहना है कि उन्हें प्रति माह 10,000 रुपये के वेतन पर लाया गया था, लेकिन कुछ महीने से कंपनी का मालिक पैसे मांगने पर टालमटोल कर देता था. इस बीच लॉकडाउन की घोषणा के बाद मजदूरों का काम भी रूक गया. ठेकेदार काम छोड़कर अपने घर चले गए. बिना काम और खाना-पानी के उनकी हालत काफी खराब थी. जिसके बाद एक गैर सरकारी संस्था की मदद से उन्हें खाद्य सामग्री उपलब्ध कराई गई.

रांचीः तमिलनाडू के मदुरै जिले के अलंगानल्लूर में बोरवेल कंपनी में फंसे महाराष्ट्र, झारखंड और छत्तीसगढ़ के रहने वाले 14 प्रवासी बंधुआ मजदूरों को छुड़ा लिया गया है. सभी मजदूर अनुसूचित जनजाति समुदाय के हैं. ये मजदूर लगभग 10 महीने से अलंगानल्लूर के बोरवेल कंपनी में काम कर रहे थे. उनका कहना है कि उन्हें बहला-फुसलाकर यहां लाया गया था.

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बता दें कि पीपुल्स वॉच ऑर्गेनाइजेशन की मदद से मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने बोरवेल के बंधुआ मजदूरों को बचाया है. जहां एक ओर राज्य सरकार ने कोरोना वायरस संक्रमण के लिए धारा 144 लागू किया है वहीं, इसके बावजूद ये मजदूर उनके लिए काम करने को मजबूर थे.

वहीं, मजदूरों का कहना है कि उन्हें प्रति माह 10,000 रुपये के वेतन पर लाया गया था, लेकिन कुछ महीने से कंपनी का मालिक पैसे मांगने पर टालमटोल कर देता था. इस बीच लॉकडाउन की घोषणा के बाद मजदूरों का काम भी रूक गया. ठेकेदार काम छोड़कर अपने घर चले गए. बिना काम और खाना-पानी के उनकी हालत काफी खराब थी. जिसके बाद एक गैर सरकारी संस्था की मदद से उन्हें खाद्य सामग्री उपलब्ध कराई गई.

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