रांची: लोगों ने पहाड़ों की खूबसूरती ज्यादातर उत्तराखंड या हिमाचल प्रदेश में देखी होगी. पहाड़ी इलाकों का नाम लेते ही अक्सर लोग शिमला मनाली को याद करते होंगे लेकिन हम बताना चाहेंगे कि पहाड़ की सुंदरता झारखंड में इससे ज्यादा देखने को मिलेगी. प्राकृतिक संपदा से भरपूर झारखंड खूबसूरत राज्य है लेकिन ज्यादा लोगों को इस राज्य की खूबसूरती के बारे में पता ही नहीं है, तो आइए आज अद्वितीय झारखंड की सैर करते हैं.
नेतरहाट में उगते सूरज का नजारा बेहद आकर्षक
झारखंड में एक ऐसी ही जगह है नेतरहाट. इस जगह के बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं. नेतरहाट में आदिवासियों की संख्या ज्यादा है और इसके अधिकतर हिस्से में घने जंगल का फैलाव है. कहते हैं कि इस जगह को प्रकृति ने बहुत ही खूबसूरत ढंग से संवारा है. यह समुद्र तल से 3,622 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. रांची से यह करीब 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. अगर आपको उगते सूरज का आकर्षक नजारा देखना हो तो नेतरहाट से खूबसूरत जगह और कहीं नहीं मिलेगी. उगते सूरज का नजारा ऐसा होता है कि मानो आंखों के सामने कोई दृश्य स्थिर हो गया हो. नेतरहाट के घने जंगल के बीच सूर्योदय देखने के लिए यहां सुबह और शाम को पर्यटकों का मेला लग जाता है. और हां ढलता सूरज देखना है तो नेतरहाट का मंगोलिया प्वाइंट इस दृश्य के लिए भी मशहूर है.
बेतला नेशनल पार्क यानी जानवरों का संसार
बेतला नेशनल पार्क, झारखंड के लातेहर और पलामू जिले में स्थित है. 980 वर्ग किमी में फैला हुआ ये नेशनल पार्क 1974 में स्थापित भारत के सबसे पुराने टाइगर रिजर्व में से एक है. जिसे पहले पलामू टाइगर रिजर्व के नाम से जाना जाता था. यहां बड़ी संख्या में बाघ, तेंदुआ, जंगली भालू, बंदर, सांभर, नीलगाय, मोर और चीतल आदि जानवर पाए जाते हैं. यहां अलग-अलग पौधों की प्रजातियां, घास, औषधीय पौधे मौजूद हैं. साल, पलाश, महुआ, आंवला, आम और बांस पलामू की खास वनस्पतियां हैं, जो जंगल में रहने वाले हाथियों, गौर और भी कई जानवरों का भोजन हैं. इसके अलावा छोटे जीवधारियों की तो यहां इतनी प्रजातियां हैं जिन्हें गिन पाना बहुत ही मुश्किल है. गौर, चीतल, हाथी, टाइगर, पैंथर, स्लोथ, जंगली भालू, सांबर, नीलगाय, काकर को देख पाना आम है. बेतला नेशनल पार्क घूमने के लिए नवंबर से मार्च का महीना बिल्कुल परफेक्ट है. यहां बड़ी संख्या में देश-विदेश के सैलानी आते हैं.
मिनी लंदनः ब्रितानियों का चमन
झारखंड राज्य का एक छोटा पहाड़ी शहर है मिनी लंदन, जो रांची के उत्तर-पश्चिम में लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है. इस शहर में किसी समय में एक महत्वपूर्ण एंग्लो-इंडियन समुदाय हुआ करता था. इसे मिनी लंदन के नाम से भी जाना जाता है. पहाड़ों के बीच बसा यह कस्बा अब भी पर्यटकों, पत्रकारों, फिल्म निर्माताओं के लिए आकर्षण का केंद्र है. 1932-33 के दौरान कोलकाता के एंग्लो इंडियन व्यवसायी ईटी मैकलुस्की ने अपनी जमात के लोगों को यहां बसाया था. मैक्लुस्की यहां शिकार खेलने आया करते थे. यहां के जंगल, पहाड़, नदियां, महुआ, कटहल, आम, कदंब, अमरूद, सखुआ, करंज आदि के पेड़ इतने भाये कि यही चमन बसाने का निर्णय कर लिया. मैक्लुस्कीगंज में एंग्लो इंडियन केटी टेक्सरा जिसे लोग किटी मेम साहब के नाम से जानते हैं. आने वाले अधिकतर सैलानी उनसे मिलना भी चाहते हैं.
पतरातू घाटी
रांची से 45 किमी दूर पतरातू घाटी झारखंड के मुख्य पर्यटन केंद्र के रूप में स्थापित हो चुका है. झारखंड के अलग-अलग जगहों से लोग इस बेहतरीन दृश्य का लुफ्त उठाने के लिए आते हैं और अपने कैमरों में इस दुर्लभ तस्वीर को कैद कर ले जाते हैं. पतरातू घाटी में रोजाना सैकड़ों पर्यटक घूमने के लिए पहुंचते हैं. पिठोरिया थाना के बाद खूबसूरत घाटी शुरू होती है. पूरी घाटी में करीब 15 किलोमीटर लंबी घुमावदार सड़कें पर्यटकों को रोमांचित कर देती है. इस घाटी में ऊंचे-उंचे पहाड़ों के बीच से रास्ता निकाली गई है, रास्ते से गुजरने पर दिलकश नजारा दिखता है. रास्ते में कई जगह ऐसे हैं, जहां पर रुक कर प्रकृति को निहारा जा सकता है. लोग इन यादों को अपने मोबाइल या कैमरे में संजोकर घर ले जाते हैं. पर्यटक सेल्फी स्पॉर्ट और फोटो शूट्स का लुप्त उठाते हैं.
पतरातू डैम
घाटी के खत्म होते ही पतरातू डैम पिकनिक स्पॉट है. जहां बच्चे, बुजुर्ग और युवा यानी की हर उम्र के लोग खुशी का अनुभव कर सकते हैं. यहां वॉटर पार्क में विभिन्न प्रकार के वॉटर स्पोर्ट्स, जैसे जेट स्कीइंग, हाई स्पीड मोटरबोट, पड़ले बोट, कस्ती और पैरासेलिंग का अनुभव किया जा सकता है.
धनबाद में मैथन डैम
धनबाद जिला मुख्यालय से 42 किलोमीटर दूर बसा प्राकृतिक स्वर्ग कहे जाने वाला मैथन डैम है. झारखंड के लिए आकर्षण का केंद्र है. यहां लाखों की संख्या में सैलानी हर साल आते हैं. नए साल आगमन को लेकर मैथन डैम को दुल्हन की तरह सजाया जाता है ताकि ज्यादा से ज्यादा पर्यटक मैथन डैम की ओर आकर्षित हो सकें. वैसे तो मैथन डैम में सालों भर पर्यटक का आना जाना लगा रहता है लेकिन दिसंबर और जनवरी माह में ज्यादा से ज्यादा सैलानी मैथन डैम आते हैं. मैथन डैम झारखंड और पश्चिम बंगाल की सीमा पर स्थित है. देश के दूसरे राज्यों से भी लोग मैथन डैम घूमने आते हैं. प्रकृति का अद्भुत नजारा मैथन डैम में देखने को मिलता है. मैथन डैम में पर्यटकों को लुभाने के लिए यहां नौका विहार, सुंदर-सुंदर फूलों का बगीचा और मीलों दूर तक पानी ही पानी देखने को मिलता है. इसके कारण पर्यटक मैथन डैम की ओर आकर्षित होते हैं.
दशम फॉल
रांची से करीब 34 किलोमीटर दूर दक्षिण पूर्व में कांची नदी पर स्थित दशम फॉल जलप्रपात. करीब 144 फीट की ऊंचाई से गिरती पानी की कल कल आहट को देखना और महसूस करना एक अलग अनुभूति देता है. जंगलों से घिरे झरनों और चट्टानी नदियों का क्षेत्र अनायास ही मन मोह लेता है. इन्हीं प्राकृतिक छटाओं के बीच स्थित है. दशम फॉल जलप्रपात. मुंडारी में पानी को दाअ और स्वच्छ को सोअ कहते हैं और यहां की पानी शीशे की तरह साफ और स्वच्छ है. भारत के विभिन्न राज्यों के अलावे देश-विदेश से आए सैलानी भी इस जलप्रपात की खूबसूरती को देखकर प्रशंसा करते नहीं थकते. वन विभाग और सरकार ने इस जलप्रपात में भ्रमण को सुरक्षित बनाने की हर संभव कोशिश की गई है. पर्यटकों को सावधान करने के लिए जगह-जगह हिदायतें दी गई है. जलप्रपात की धारा में नहीं जाने की सलाह दी जाती है. इसके साथ ही ऊंचे चट्टानों पर चढ़ना भी मनाही है क्योंकि दशम फॉल के चट्टानों को काफी खतरनाक भी माना जाता है.
हुंडरू फॉल
रांची से लगभग 28 किलोमीटर दूर सुवर्णरेखा नदी पर स्थित है. यह प्रपात झारखंड राज्य का प्रसिद्ध जलप्रपात है. वर्षा ऋतु में इस झरने को देखने के लिए पर्यटकों की यहां भारी भीड़ उमड़ती है. यह सुंदर झरना रांची-पुरुलिया मार्ग पर स्थित है. हुंडरू जलप्रपात 98 मीटर यानी करीब 320 फीट की उंचाई से गिरता है. यह झारखंड का सबसे ऊंचा जलप्रपात है, जिसकी छटा देखते ही बनती है. वर्षा के दिनों में इस जलप्रपात की धारा मोटी हो जाती है. इन दिनों में तो इसका दृश्य और भी सुंदर और मनमोहक हो जाता है. इसी जलप्रपात से सिकीदरी में पनबिजली का उत्पादन किया जाता है. सैलानी झरने के उद्गम और नीचे की तलहटी, दोनों तरफ से जलप्रपात की गिरती स्वच्छ-धवल जलराशि देखने का आनंद उठाते हैं.
दलमा अभ्यारण्य
दलमा अभ्यारण्य झारखंड के जमशेदपुर, रांची और पश्चिम बंगाल के पुरुलिया के बीच बसा पूर्वी भारत का एक प्रमुख वन्य जीव अभ्यारण्य है. इस अभ्यारण्य को खास तौर पर हाथियों के संरक्षण के लिए चुना गया है. यह झारखंड का दूसरा सबसे बड़ा पक्षी अभ्यारण्य है और इसका नाम विहंग है. यहां डेढ़ सौ से ज्यादा हाथी हैं. यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या में लगातार वृदि्ध हो रही है. दलमा अभ्यारण्य का कोर एरिया 59.27 वर्गमील, बफर एरिया 133.95 व टूरिज्म एरिया 13.94 वर्गमील है. यहां जंगली जानवरों के अलावा कई कीमती लकड़ियां और गुणकारी औषधीय पेड़-पौधे भी हैं.
साहिबगंज का उधवा पक्षी अभ्यारण्य
झारखंड का सबसे बड़ा पक्षी अभ्यारण्य साहिबगंज जिले में उधवा लेक सेंक्चुरी के नाम से है. इस विहंग पक्षी अभ्यारण्य में पूरे साल ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, कनाडा, वियतनाम, इंडोनेशिया, बलूचिस्तान आदि देशों के अत्यंत दुर्लभ प्रवासी पक्षियों का आना-जाना लगा रहता है. मध्य एशिया से आने वाले प्रवासी साइबेरिन पक्षियों के कलरव से यहां की प्राकृतिक छंटा में चार चांद लग जाता है लेकिन आश्रयणी का विकास नहीं होने और सुरक्षा के अभाव में पर्यटक यहा नहीं पहुंच पाते हैं. पक्षी आश्रयणी का क्षेत्रफल 565 हेक्टेयर है. इसमें पतौड़ा झील का 155 और बरहेल या ब्रह्म जमालपुर झील का 410 हेक्टेयर क्षेत्र शामिल है. झील को गंगा नदी में नाला के माध्यम से पानी आता है. साल के 9 महीने उधवा पक्षी आश्रयणी में पानी भरा रहता है. गरमी के दिनों में पानी बहुत कम हो जाता है. उधवा पक्षी आश्रयणी में देशी व प्रवासी 83 प्रजाति के पक्षियों का बसेरा है. इसमें स्पूनबिल, एकटेट, किगफिशर, गोल्डन, औरियो, बेकटेल, ग्रेट आउल, स्ट्रोक जैसे प्रवासी पक्षी हैं.
चांडिल डैम
प्रकृति की गोद में बसा चांडिल डैम हमेशा से ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है. सुवर्णरेखा नदी पर स्थित चांडिल बांध सुंदर सुंदरता का एक स्थान है. यह बांध झारखंड की सबसे ज्यादा देखी गई जगहों में से एक है. चांडिल बांध के पास स्थित संग्रहालय में चट्टानों पर लिखी गई लिपियां हैं, जो 2000 वर्ष पुरानी हैं. बहुउद्देश्यीय चांडिल बांध दोनों नदियों की बैठक के दौरान बनाया गया था. बांध ऊंचाई 220 मीटर है और इसके पानी के स्तर की ऊंचाई अलग-अलग जगहों से 190 मीटर है जो देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले पर्यटकों को नौकायन और बांध के आसपास और आसपास की प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेती हैं. चांडिल अपने क्षेत्र के महत्व के लिए प्रसिद्ध है. वहीं, झारखंड के विभिन्न जिलों के अलावा पड़ोसी राज्य ओडिशा, पश्चिम बंगाल और बिहार से सैलानी यहां खींचे चले आते हैं.
त्रिकुट रोपवे
देवघर-दुमका सड़क मार्ग पर त्रिकुट पर्वत पर रोपवे है. झारखंड का यह एक मात्र रोप वे है. यह सतह से 800 मीटर की उंचाई पर है. इस पर सफर करने का आनंद रोमांचक होता है. कारण, यह 90 डिग्री पर उंचाई की ओर जाता है. प्राकृतिक छटा से घिरा होने के कारण रोपवे का सफर बहुत ही मजेदार हो जाता है. सतह से टॉप पर बने स्टेशन तक पहुंचने में 8 मिनट का समय लगता है.