पलामू: पेट की भूख और परिवार की चिंता हर डर को समाप्त कर देती है. यही कारण है कि हजारों मजदूर कोरोना के इस खौफनाक काल में भी अपना घर छोड़ने को मजबूर हैं. बात अगर पलामू की करें तो इसका पलायन से पहले से ही गहरा संबंध है. हजारों की संख्या में मजदूर बड़े शहरों की तरफ रुख कर रहे है. नतीजा है कि कई गांव में सिर्फ बुजुर्ग, महिला और बच्चे ही नजर आते है. पलामू के अतिनक्सल प्रभावित इलाके के कई गांव पुरुषों की आबादी से खाली हो गए है. ईटीवी भारत ने एक ऐसे ही गांव चिड़ी, जशपुर, गौरवा गांव का जायजा लिया जंहा गांव में पुरुषों की आबादी बेहद ही कम नजर आती है. इन इलाकों में ना तो मंत्री ,ना ही विधायक ,ना ही कोई बड़ा अधिकारी पहुंचता है. नतीजा है कि यह इलाका पलायन के साथ-साथ मानव तस्करी का भी बड़ा केंद्र बनता जा रहा है.
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मजबूरी में सभी युवा कर गए पलायन
झारखंड की राजधानी रांची से करीब 250 किलोमीटर दूर पलामू मनातू के डुमरी पंचायत के चिड़ी खुर्द गांव में 48 घरों की आबादी है. इस गांव में सिर्फ आठ घरों में ही पुरुष हैं .बाकी के घरों के पुरूष नौकरी और काम की तलाश में पलायन कर गए हैं. पूरे गांव में सिर्फ महिला बुजुर्ग और बच्चे ही नजर आते हैं. गांव की महिला कुंती देवी बताती हैं कि उन्हें काम मिले तो बच्चे बाहर नहीं जाएंगे गांव में ही काम करेंगे और उनके नजरों के सामने रहेंगे. मजबूरी में सभी बाहर निकल गए हैं. इसी तरह गांव की महिला सविता देवी बताती हैं कि कि वोट लेने के वक्त सभी आते हैं उसके बाद गांव में कोई नजर नहीं आता है. उनके लिए गांव में कोई भी काम उपलब्ध नहीं है जिस कारण उनके घर के पुरुष बाहर निकल गए हैं. गांव में खेती के लिए भी जमीन नही है.