पलामू: झारखंड के चेरो और चेरो राजवंश का इतिहास करीब 400 वर्ष पुराना है. इन 400 वर्षों में चेरो आदिवासी राजा से रंक हो गए. कभी पलामू समिति पूरे झारखंड में शासन करने वाले चेरो को सरकार ने आज संरक्षक की श्रेणी में डाल दिया है.
चेरो जाति आदिवासी है जो पलामू के नदी और जंगली क्षेत्रों में बसे हुए हैं. चेरो शासन का समृद्ध इतिहास रहा है हालांकि इससे जुड़ी हुई बहुत की कम किताबें हैं. कुछ इतिहासकारों ने ही चेरो और उनके शासन के बारे में लिखा है. चेरो राजवंश की बात करें तो एक कहावत पूरे देश मे मशहूर है.'धन धन राजा मेदनिया घर-घर बाजे मथनिया' यह कहावत चेरो राजवंश की समृद्धता को बताता है.
1613 में स्थापित हुआ था चेरो राजवंश
चेरो राजवंश की शुरुआत 1613 ई से हुई थी. इसका उल्लेख अंग्रेजों द्वारा लिखित इतिहास में है, जबकि मुगलों के लिखित इतिहास में 1585 से चेरो राजवंश की शुरुआत बताई गई है. चेरो राजवंश के इतिहासकार राजेश्वर सिंह बताते हैं कि अंग्रेजों द्वारा लिखित इतिहास अधिक तथ्यात्मक है, जबकि अन्य इतिहासकारों ने भी अंग्रेजों के लिखित इतिहास को माना है. राजेश्वर सिंह इस बात को बताते हैं कि चेरो आदिवासी की उत्पत्ति काफी लंबी है. चेरो आदिवासी कुमाऊं से होते हुए शाहाबाद उसके बाद पलामू पंहुचे थे. आज चेरो जनजाति की 90 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे है.
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भगवंत राय ने रखी थी चेरो साम्राज्य की नींव
चेरो राजवंश का साम्राज्य झारखंड, बिहार और मध्य प्रदेश तक फैला था. इतिहासकार राजेश्वर सिंह चेरो राजवंश पर किताब लिख रहे हैं और सारे तथ्यों को एक जगह जमा कर रहे हैं. वह बताते हैं 1613 ई में भगवंत राय ने चेरो साम्राज्य की नींव रखी थी. वर्तमान में तरहसी के अमानत नदी के किनारे मानगढ़ में भगवंत राय ने चेरो राजवंश की शुरुआत की थी. भगवंत राय ने राजा मान सिंह के परिवार की हत्या कर शासन को स्थापित किया था. वह बताते हैं कि चेरो हिंदू हैं, वे अंतरजातीय विवाह नहीं करते हैं. वे बताते हैं कि चेरो राजवंश के प्रतापी राजा राजा मेदनीराय के वक्त में चेरो साम्राज्य साम्राज्य वर्तमान के हजारीबाग, छतीसगढ़ के सरगुजा, बिहार के शेरघाटी और लोहरदगा तक फैला हुआ था. चेरो राजा राजा से जमींदार जमींदार से किसान और किसान से बनिहार हो गए.
उदार प्रवृत्ति, आपसी मतभेद और मतभेद के कारण साम्राज्य का हुआ पतन
चेरो राजवंश के शासक उदार प्रवृति के थे, जिस कारण उन्हें नुकसान होता गया. इतिहासकार राजेश्वर बताते हैं कि राजवंश के बीच आपसी मतभेद कई बार हुआ और जिस कारण संघर्ष भी हुआ था. राजवंश के गौरव की कहानी बताते हुए वे कहते हैं कि राजाओं के परिवार के बीच आपसी मतभेद अधिक थे, अशिक्षा भी साम्राय के पतन का एक बड़ा कारण बना. चेरो शासकों का जमींदारों पर नियंत्रण बेहद कमजोर था.