पलामू: किसी जमाने में झारखंड खैर के जंगल का बड़ा केंद्र हुआ करता था लेकिन आज विलुप्ति के कगार पर है. कई सालों से पेड़ों की अवैध कटाई और तस्करी से जंगल में खैर के पेड़ का नामोनिशान मिटते जा रहे हैं. यूपी, हरियाणा, दिल्ली और दक्षिण भारत के कई राज्यो में इस पेड़ की लकड़ी की तस्करी झारखंड से धड़ल्ले से जारी है. तस्करी रोकने के काफी प्रयासों के बावजूद इस पर लगाम लगता नहीं दिख रहा है.
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खैर की लकड़ी से बनता है कत्था और गुटखा
खैर की लकड़ी से कत्था और गुटखा बनने के कारण यह तस्करों के बीच हॉटकेक के नाम से मशहूर है. लालच में इसकी बड़े पैमाने पर कटाई की जा रही है. पर्यावरणविदों के मुताबिक पलामू, चतरा, गढ़वा, लातेहार और लोहरदगा के इलाके में कुछ साल पहले इस पेड़ के घने जंगल थे. लेकिन अब यह इलाका वीरान हो गया है. पूरे इलाके में खैर के कितने पेड़ थे इसका आंकड़ा वन विभाग के पास तो मौजूद नहीं है. लेकिन विभाग ये स्वीकार करता है कि खैर के जंगल 80 प्रतिशत तक कम हो गए हैं. पर्यावरणविद कौशल किशोर जायसवाल बताते हैं कि यह काफी गंभीर मामला है. पलामू रेगिस्तान नहीं है लेकिन पेड़ों के काटे जाने से यहां काफी समस्याएं उत्पन्न होने लगी हैं.
लकड़ी तस्करों के खिलाफ कार्रवाई
खैर की लकड़ी की तस्करी को लेकर प्रशासन भी कार्रवाई में जुटी है. हाल के दिनों में पुलिस ने तस्करों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की है. पलामू के एसपी चंदन कुमार सिन्हा ने बताया कि खैर की लकड़ी से काफी मुनाफा होता है. तस्कर इलाके से 6 से 8 रुपया प्रति किलो के हिसाब से खैर की लकड़ी को खरीदते हैं, जबकि बाहर के राज्यों में 16 से 18 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचा जाता है. एसपी चंदन कुमार के मुताबिक पुलिस इलाके में नजर रखे हुए है और सूची तैयारी कर एक-एक तस्करों के खिलाफ सख्त कदम उठाया जा रहा है. वहीं पलामू डीएफओ अमरनाथ सिंह ने बताया कि इलाके में विभाग की पेट्रोलिंग जारी है और कार्रवाई की जा रही है. उन्होंने बताया कि जब्त हुई लकड़ियों को कॉरपोरेशन के माध्यम से बेचवाया जाता है.