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250 वर्ष पहले 1 जुलाई को पलामू पर हुआ था अंग्रेजों का कब्जा, हुई थी करद राजा की शुरुआत - इतिहासकार राजेश्वर सिंह

इतिहास के पन्नों में 1 जुलाई पलामू (Palamu) के लिए काफी महत्वपूर्ण दिन है. आज ही के दिन करीब 250 साल पहले पलामू की धरती पर अंग्रेजों (Britishers) का कब्जा हुआ था. इसी दिन से जिला में करद राजा की शुरुआत की थी.

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करद राजा
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Published : Jul 1, 2021, 11:07 PM IST

पलामूः इतिहास के पन्नों में 1 जुलाई पलामू के लिए काफी महत्वपूर्ण दिन है. 250 वर्ष पहले आज ही के दिन अंग्रेजों (Britishers) ने पलामू पर कब्जा करते हुए शासन की शुरुआत की थी. एक जुलाई को ही इतिहास के पन्नों मे एक नया शब्द करद राजा जुड़ा था.

इसे भी पढ़ें- 400 वर्षों में राजा से रंक हो गए चेरो, राजवंश की उदार प्रवृत्ति, मतभेद और अशिक्षा बना साम्राज्य के पतन का कारण

आज के ही दिन चेरो राजवंश (Chero Dynasty) की सत्ता का अंत हुआ था और अंग्रेजों का शासन शुरू हुआ. सन 1771 में पलामू के प्रतापी राजा मूवी राय के अंतिम उत्तराधिकारी चित्रजीत राय (Chitrajeet Rai) की लड़ाई उनके चचेरे भाई गोपाल राय के साथ हुई. गोपाल राय (Gopal Rai) को अंग्रेजों के कमांडर जैकब कैमक (British Commander Jacob Camac) ने साथ दिया था, इस लड़ाई में जैकब कैमक की जीत हुई थी. एक जुलाई को ही कमांडर जैकब कैमक ने पलामू किला पर कब्जा जमाया था.

चेरो इतिहासकार राजेश्वर सिंह बताते हैं कि पलामू किला (Palamu Fort) पर कब्जा जमाने के बाद अंग्रेजों ने करद राजा की शुरुआत की थी, करद राजा का मतलब कर देने वाला राजा है. अंग्रेजों ने पलामू किला पर कब्जा जमाने के बाद गोपाल राय को राजगद्दी पर बैठाया. राजेश्वर सिंह के गोपाल राय करद राजा बने जो अंग्रेजों को कर देते थे. अंग्रेजों ने पलामू किला को खाली करवा दिया था, उसके बाद गोपाल राय पलामू के शाहपुर में किला बनाकर करद राजा के रूप में शासन किया.

चेरो राजवंश का 400 वर्षों का इतिहास
चेरो और चेरो राजवंश का इतिहास करीब 400 वर्ष पुराना है. कभी पलामू समिति पूरे झारखंड में शासन करने वाले चेरो को सरकार ने आज संरक्षक की श्रेणी में डाल दिया है. चेरो जाति आदिवासी हैं, जो पलामू के नदी और जंगली क्षेत्रों में बसी हुई है. चेरो शासन का समृद्ध इतिहास रहा है, हालांकि इससे जुड़ी हुई बहुत की कम किताबें हैं. कुछ इतिहासकारों ने ही चेरो और उनके शासन के बारे में लिखा है. चेरो राजवंश की बात करें तो एक कहावत पूरे देश मे मशहूर है... 'धन-धन राजा मेदनिया घर-घर बाजे मथनिया' यह कहावत चेरो राजवंश की समृद्धता को बताता है.

इसे भी पढ़ें- विश्व आदिवासी दिवस: कभी झारखंड में था चेरो आदिवासी का शासन, आज राजा से बन चुके हैं रंक


1613 में स्थापित हुआ था चेरो राजवंश, आज 90 प्रतिशत से अधिक आबादी गरीबी रेखा से नीचे
चेरो राजवंश की शुरुआत सन 1613 से हुई थी. इसका उल्लेख अंग्रेजों की लिखित इतिहास में है, जबकि मुगलों के लिखित इतिहास में 1585 से चेरो राजवंश की शुरुआत बताई गई है. इतिहासकार राजेश्वर सिंह बताते हैं कि अंग्रेजों की लिखित इतिहास अधिक तथ्यात्मक है, जबकि अन्य इतिहासकारों ने भी अंग्रेजों के लिखित इतिहास को माना है. राजेश्वर सिंह यह भी बताते हैं कि चेरो आदिवासी की उत्पत्ति काफी लंबी है, चेरो आदिवासी कुमाऊं से होते हुए शाहाबाद उसके बाद पलामू पंहुचे थे. आज चेरो जनजाति के 90 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे है.

भगवंत राय ने रखी थी चेरो साम्राज्य की नींव, झारखंड, एमपी और बिहार तक फैला था साम्राज्य
चेरो इतिहासकार राजेश्वर सिंह चेरो राजवंश पर किताब लिख रहे हैं और सारे तथ्यों को एक जगह जमा कर रहे हैं. वह बताते हैं 1613 ईस्वी में भगवंत राय ने चेरो साम्राज्य की नींव रखी थी. वर्तमान में तरहसी के अमानत नदी के किनारे मानगढ़ में भगवंत राय ने चेरो राजवंश की शुरुआत की थी. भगवंत राय ने राजा मान सिंह के परिवार की हत्या कर शासन को स्थापित किया था. वह बताते हैं कि चेरो हिंदू हैं वो अंतरजातीय विवाह नहीं करते हैं.

इतिहासकार बताते है कि चेरो राजवंश के प्रतापी राजा मेदिनीराय (Raja Medinirai) के वक्त में चेरो साम्राज्य साम्राज्य वर्तमान के हजारीबाग, छतीसगढ़ के सरगुजा, बिहार की शेर घाटी और लोहरदगा तक फैला हुआ था. आज चेरो राजा, राजा से जमींदार, जमींदार से किसान और किसान से बनिहार हो गए.

इसे भी पढ़ें- लोहरदगा नगरपालिका@133: अंग्रेज अधिकारी थे पहले चेयरमैन, तब से अब तक का सफर


उदार प्रवृत्ति, आपसी मतभेद और मतभेद के कारण साम्राज्य का हुआ पतन
चेरो राजवंश के शासक उदार प्रवृति के थे, जिस कारण उन्हें नुकसान होता गया. इतिहासकार राजेश्वर सिंह (Historian Rajeshwar Singh) बताते है कि राजवंश के बीच आपसी मतभेद कई बार हुआ और जिस कारण संघर्ष भी थी. राजवंश के गौरव की कहानी बताते हुए कहते हैं कि राजाओं के परिवार के बीच आपसी मतभेद अधिक थे, अशिक्षा भी एक बड़ा कारण बना साम्राय के पतन का था. चेरो शासकों का जमींदारों पर नियंत्रण बेहद कमजोर था.

पलामूः इतिहास के पन्नों में 1 जुलाई पलामू के लिए काफी महत्वपूर्ण दिन है. 250 वर्ष पहले आज ही के दिन अंग्रेजों (Britishers) ने पलामू पर कब्जा करते हुए शासन की शुरुआत की थी. एक जुलाई को ही इतिहास के पन्नों मे एक नया शब्द करद राजा जुड़ा था.

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आज के ही दिन चेरो राजवंश (Chero Dynasty) की सत्ता का अंत हुआ था और अंग्रेजों का शासन शुरू हुआ. सन 1771 में पलामू के प्रतापी राजा मूवी राय के अंतिम उत्तराधिकारी चित्रजीत राय (Chitrajeet Rai) की लड़ाई उनके चचेरे भाई गोपाल राय के साथ हुई. गोपाल राय (Gopal Rai) को अंग्रेजों के कमांडर जैकब कैमक (British Commander Jacob Camac) ने साथ दिया था, इस लड़ाई में जैकब कैमक की जीत हुई थी. एक जुलाई को ही कमांडर जैकब कैमक ने पलामू किला पर कब्जा जमाया था.

चेरो इतिहासकार राजेश्वर सिंह बताते हैं कि पलामू किला (Palamu Fort) पर कब्जा जमाने के बाद अंग्रेजों ने करद राजा की शुरुआत की थी, करद राजा का मतलब कर देने वाला राजा है. अंग्रेजों ने पलामू किला पर कब्जा जमाने के बाद गोपाल राय को राजगद्दी पर बैठाया. राजेश्वर सिंह के गोपाल राय करद राजा बने जो अंग्रेजों को कर देते थे. अंग्रेजों ने पलामू किला को खाली करवा दिया था, उसके बाद गोपाल राय पलामू के शाहपुर में किला बनाकर करद राजा के रूप में शासन किया.

चेरो राजवंश का 400 वर्षों का इतिहास
चेरो और चेरो राजवंश का इतिहास करीब 400 वर्ष पुराना है. कभी पलामू समिति पूरे झारखंड में शासन करने वाले चेरो को सरकार ने आज संरक्षक की श्रेणी में डाल दिया है. चेरो जाति आदिवासी हैं, जो पलामू के नदी और जंगली क्षेत्रों में बसी हुई है. चेरो शासन का समृद्ध इतिहास रहा है, हालांकि इससे जुड़ी हुई बहुत की कम किताबें हैं. कुछ इतिहासकारों ने ही चेरो और उनके शासन के बारे में लिखा है. चेरो राजवंश की बात करें तो एक कहावत पूरे देश मे मशहूर है... 'धन-धन राजा मेदनिया घर-घर बाजे मथनिया' यह कहावत चेरो राजवंश की समृद्धता को बताता है.

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1613 में स्थापित हुआ था चेरो राजवंश, आज 90 प्रतिशत से अधिक आबादी गरीबी रेखा से नीचे
चेरो राजवंश की शुरुआत सन 1613 से हुई थी. इसका उल्लेख अंग्रेजों की लिखित इतिहास में है, जबकि मुगलों के लिखित इतिहास में 1585 से चेरो राजवंश की शुरुआत बताई गई है. इतिहासकार राजेश्वर सिंह बताते हैं कि अंग्रेजों की लिखित इतिहास अधिक तथ्यात्मक है, जबकि अन्य इतिहासकारों ने भी अंग्रेजों के लिखित इतिहास को माना है. राजेश्वर सिंह यह भी बताते हैं कि चेरो आदिवासी की उत्पत्ति काफी लंबी है, चेरो आदिवासी कुमाऊं से होते हुए शाहाबाद उसके बाद पलामू पंहुचे थे. आज चेरो जनजाति के 90 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे है.

भगवंत राय ने रखी थी चेरो साम्राज्य की नींव, झारखंड, एमपी और बिहार तक फैला था साम्राज्य
चेरो इतिहासकार राजेश्वर सिंह चेरो राजवंश पर किताब लिख रहे हैं और सारे तथ्यों को एक जगह जमा कर रहे हैं. वह बताते हैं 1613 ईस्वी में भगवंत राय ने चेरो साम्राज्य की नींव रखी थी. वर्तमान में तरहसी के अमानत नदी के किनारे मानगढ़ में भगवंत राय ने चेरो राजवंश की शुरुआत की थी. भगवंत राय ने राजा मान सिंह के परिवार की हत्या कर शासन को स्थापित किया था. वह बताते हैं कि चेरो हिंदू हैं वो अंतरजातीय विवाह नहीं करते हैं.

इतिहासकार बताते है कि चेरो राजवंश के प्रतापी राजा मेदिनीराय (Raja Medinirai) के वक्त में चेरो साम्राज्य साम्राज्य वर्तमान के हजारीबाग, छतीसगढ़ के सरगुजा, बिहार की शेर घाटी और लोहरदगा तक फैला हुआ था. आज चेरो राजा, राजा से जमींदार, जमींदार से किसान और किसान से बनिहार हो गए.

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उदार प्रवृत्ति, आपसी मतभेद और मतभेद के कारण साम्राज्य का हुआ पतन
चेरो राजवंश के शासक उदार प्रवृति के थे, जिस कारण उन्हें नुकसान होता गया. इतिहासकार राजेश्वर सिंह (Historian Rajeshwar Singh) बताते है कि राजवंश के बीच आपसी मतभेद कई बार हुआ और जिस कारण संघर्ष भी थी. राजवंश के गौरव की कहानी बताते हुए कहते हैं कि राजाओं के परिवार के बीच आपसी मतभेद अधिक थे, अशिक्षा भी एक बड़ा कारण बना साम्राय के पतन का था. चेरो शासकों का जमींदारों पर नियंत्रण बेहद कमजोर था.

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