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गठन के 130 सालों के बाद भी नहीं सुधरी पलामू जिले की हालत, जानिए क्या है वजह - majestic king of the Chero dynasty

पलामू के गठन का आज (1 जनवरी 2022) 130 साल पूरा हो गया है. आज ही के दिन 1892 में पलामू का गठन हुआ था. पिछले 130 सालों में नक्सली हिंसा, पलायन, कुपोषण के लिए पहचान बना चुका ये जिला आज भी विकास की बाट जो रहा है.

130 years of Palamu
पलामू के 130 साल
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Published : Jan 1, 2022, 7:07 PM IST

पलामू: पहली जनवरी 2022 को पलामू जिला का 130 साल पूरा हो गया है. आज ही के दिन 1892 में इस जिले का गठन हुआ था. 23 लाख की आबादी वाला ये जिला अपने गठन से लेकर अब तक विकास की बाट जोह रहा है. पिछले 130 सालो में ये जिला नक्सल हिंसा, पलायन, कुपोषण, आदि के लिए चर्चित रहा है. हालत ये है कि देश के 115 पिछड़े जिलों और 35 अति नक्सल प्रभावित जिलों की सूची में इसका नाम भी शुमार है. हकीकत ये हैं कि 130 सालों के बाद भी ये जिला विकास के पैमाने पर अपनी अलग पहचान के लिए छटपटा रहा है.

ये भी पढें- पलायन की पीड़ा से जूझ रहा है पलामू का मनातू , रोजगार की तलाश में गांव से शहर गए सभी युवक

नक्सल हिंसा, बंधुआ मजदूरी, सुखाड़ इसकी पहचान

कहते हैं कि पलामू का इतिहास महान चेरो वंश से जुड़ा हुआ है. मेदिनीराय चेरो वंश के प्रतापी राजा हुआ करते थे. उनके समय में एक कहावत बहुत ही मशहूर थी धनी धनी राजा मेदनीया घर घर बाजे मथनिया. यह कहावत उस वक्त के पलामू के समृद्धि की गाथा बताती है. लेकिन धीरे-धीरे इसकी सूरत बदलने लगी. 70 के दशक में ये पूरे देश में बंधुआ मजदूरी मुक्ति आंदोलन का केंद्र बना. फिर यहां से नक्सल आंदोलन को गति मिली. पलामू देश भर में अकाल के लिए भी चर्चित हुआ. विधायक डॉ शशिभूषण मेहता की मानें तो इस इलाके की सबसे ज्यादा किसी बात के लिए चर्चा हुई तो वह थी नक्सल हिंसा. सता में जिस प्रकार सभी लोगो की भागीदारी होनी चाहिए थी वह नहीं हुई. आज भी कई इलाकों में सामंती प्रवृत्ति हावी है. उन्होंने बताया कि सभी लोगों के सहयोग से ही से इलाके का विकास हो सकता है.

देखें वीडियो

नक्सली गतिविधि ने बिगाड़ी छवि

पलामू एसपी चंदन कुमार सिन्हा बताते हैं कि निश्चित तौर पर पलामू का इतिहास गौरवशाली रहा है. नक्सल और अपराध बड़ी समस्या रही है. लेकिन पुलिस नक्सल और अपराध को रोकने के लिए लगातार अभियान चला रही है. उप विकास आयुक्त मेघा भारद्वाज बताती है कि पलामू के कई इलाके आज भी विकास से दूर हैं. उन इलाकों को मुख्यधारा में जोड़ने और विकास से जुड़ने के लिए प्रशासनिक अधिकारी लगे हुए हैं.

कृषि पर निर्भर है यहां की आबादी

21 प्रखंड और 27 थानों वाला पलामू जिला आय के लिए कृषि पर निर्भर है. यहां की 80 प्रतिशत आबादी कृषि उत्पादों पर आय के लिए निर्भर है. औद्योगिक क्षेत्र के नाम पर सिर्फ आदित्य बिरला केमिकल इंडिया लिमिटेड का एक फैक्ट्री और राजहरा में एक कोल माइंस है. पलामू के छतरपुर के इलाके में स्टोन की माइनिंग है. ये जिला बिहार के औरंगाबाद और गया से सटा हुआ है. पलामू से सोन, कोयल, औरंगा ,अमानत जैसी नदियां होकर गुजरती है.

पलामू: पहली जनवरी 2022 को पलामू जिला का 130 साल पूरा हो गया है. आज ही के दिन 1892 में इस जिले का गठन हुआ था. 23 लाख की आबादी वाला ये जिला अपने गठन से लेकर अब तक विकास की बाट जोह रहा है. पिछले 130 सालो में ये जिला नक्सल हिंसा, पलायन, कुपोषण, आदि के लिए चर्चित रहा है. हालत ये है कि देश के 115 पिछड़े जिलों और 35 अति नक्सल प्रभावित जिलों की सूची में इसका नाम भी शुमार है. हकीकत ये हैं कि 130 सालों के बाद भी ये जिला विकास के पैमाने पर अपनी अलग पहचान के लिए छटपटा रहा है.

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नक्सल हिंसा, बंधुआ मजदूरी, सुखाड़ इसकी पहचान

कहते हैं कि पलामू का इतिहास महान चेरो वंश से जुड़ा हुआ है. मेदिनीराय चेरो वंश के प्रतापी राजा हुआ करते थे. उनके समय में एक कहावत बहुत ही मशहूर थी धनी धनी राजा मेदनीया घर घर बाजे मथनिया. यह कहावत उस वक्त के पलामू के समृद्धि की गाथा बताती है. लेकिन धीरे-धीरे इसकी सूरत बदलने लगी. 70 के दशक में ये पूरे देश में बंधुआ मजदूरी मुक्ति आंदोलन का केंद्र बना. फिर यहां से नक्सल आंदोलन को गति मिली. पलामू देश भर में अकाल के लिए भी चर्चित हुआ. विधायक डॉ शशिभूषण मेहता की मानें तो इस इलाके की सबसे ज्यादा किसी बात के लिए चर्चा हुई तो वह थी नक्सल हिंसा. सता में जिस प्रकार सभी लोगो की भागीदारी होनी चाहिए थी वह नहीं हुई. आज भी कई इलाकों में सामंती प्रवृत्ति हावी है. उन्होंने बताया कि सभी लोगों के सहयोग से ही से इलाके का विकास हो सकता है.

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नक्सली गतिविधि ने बिगाड़ी छवि

पलामू एसपी चंदन कुमार सिन्हा बताते हैं कि निश्चित तौर पर पलामू का इतिहास गौरवशाली रहा है. नक्सल और अपराध बड़ी समस्या रही है. लेकिन पुलिस नक्सल और अपराध को रोकने के लिए लगातार अभियान चला रही है. उप विकास आयुक्त मेघा भारद्वाज बताती है कि पलामू के कई इलाके आज भी विकास से दूर हैं. उन इलाकों को मुख्यधारा में जोड़ने और विकास से जुड़ने के लिए प्रशासनिक अधिकारी लगे हुए हैं.

कृषि पर निर्भर है यहां की आबादी

21 प्रखंड और 27 थानों वाला पलामू जिला आय के लिए कृषि पर निर्भर है. यहां की 80 प्रतिशत आबादी कृषि उत्पादों पर आय के लिए निर्भर है. औद्योगिक क्षेत्र के नाम पर सिर्फ आदित्य बिरला केमिकल इंडिया लिमिटेड का एक फैक्ट्री और राजहरा में एक कोल माइंस है. पलामू के छतरपुर के इलाके में स्टोन की माइनिंग है. ये जिला बिहार के औरंगाबाद और गया से सटा हुआ है. पलामू से सोन, कोयल, औरंगा ,अमानत जैसी नदियां होकर गुजरती है.

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